जम्मू-कश्मीर में हिंदी भी अब आधिकारिक भाषा, केंद्र सरकार ने लगाई मुहर
   03-सितंबर-2020
 
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केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर में स्थानीय भाषाओं के सरंक्षण के लिए एक बड़ा अहम फैसला लिया है। जिसके बाद अब हिंदी भी जम्मू-कश्मीर की आधिकारिक भाषा होगी। इस फैसले को बुधवार को केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में मंजूरी दे दी गई है। प्रदेश में अब कश्मीरी, डोगरी, हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू भाषाओं को राजभाषा का दर्जा दिया गया है। सरकार के मुताबिक  इसे अब लागू करने के लिए संसद के सत्र में एक विधेयक लाया जायेगा। यह सत्र 14 सितंबर से शुरू होने को है। बता दें कि बीते साल 5 अगस्त 2019 के बाद से ही राज्य में इन भाषाओं को आधिकारिक राजभाषा बनाने की मांग जारी थी।




कैबिनेट मीटिंग के बाद केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने मीडिया को बताया कि कैबिनेट ने संसद में जम्मू-कश्मीर आधिकारिक भाषा विधेयक 2020 को लाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी है। इसमें उर्दू, कश्मीर, डोगरी, हिंदी और अंग्रेजी राज्य की आधिकारिक भाषा होगी। सरकार ने यह फैसला जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन के बाद राज्य में समानता लाने के संदेश के साथ किया है।
 
जम्मू कश्मीर में उर्दू का इतिहास:
 
6 जनवरी 1957 को जब जम्मू कश्मीर में राज्य का संविधान लागू किया गया। तो उसी के साथ उर्दू को राज्य की आधिकारिक भाषा घोषित कर दिया गया। जबकि पूरे राज्य में उर्दू बोलने वालों की संख्या गिनी-चुनी थी। हालांकि महाराजा प्रताप सिंह 1889 में ही उर्दू को आधिकारिक दर्जा दे दिया था। जिसका इस्तेमाल अंग्रेजों के साथ आधिकारिक पत्रचार में होता था। लेकिन इसके बावजूद भी पूरे राज्य में उर्दू बोलने वालों की संख्या 0.01 फीसदी भी नहीं थी। फिर भी जम्मू कश्मीर की संविधान सभा ने अन्य स्थानीय भाषाओं को नज़रअंदाज करते हुए उर्दू को ही आधिकारिक भाषा का दर्जा दे दिया।
 
इसके बाद करीब 6 दशक बीत जाने के बावजूद भी जम्मू कश्मीर में उर्दू बोलने वालों की संख्या 1 फीसदी भी नहीं हो पायी है, बल्कि जनगणना 2011 के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक जम्मू कश्मीर में सिर्फ 19,956 लोग यानि 0.16 फीसदी लोग ही उर्दू बोलते हैं।
 
2011 जनगणना के आधार पर जम्मू कश्मीर और भाषा से जुड़े तथ्य और आंकड़े
 
भारतीय जनगणना भारत के लोगों की विभिन्न विशेषताओं पर विभिन्न सांख्यिकीय जानकारी का सबसे बड़ा एकल स्रोत है। 130 से अधिक वर्षों के इतिहास के साथ, यह विश्वसनीय, अभ्यास हर 10 वर्षों में आंकड़ों का एक स्रोत रहा है। निर्णायक जनगणना के संचालन की जिम्मेदारी भारत सरकार के गृह मंत्रालय के अधीन रजिस्ट्रार जनरल और जनगणना आयुक्त, भारत के कार्यालय के साथ रहती है। इसलिए, यह एक प्रामाणिक दस्तावेज है जिस पर हम इस विषय पर अपनी राय आकर्षित कर सकते हैं। नीचे जनगणना 2011 के कुछ आंकड़े हैं जो हमारे लिए प्रासंगिक हैं:
 
A. जम्मू एवं कश्मीर और मातृभाषा की भाषाएं प्रमुख भाषा के अंतर्गत आती हैं:
 
 
जम्मू और कश्मीर के प्रमुख 

 भाषा मातृभाषा/समूह
 डोगरी डोगरी
 
हिंदी 
 1. हिंदी
2. Bhadrawahi
3. गोजरी / Gujjari / गुजर
4. पहाड़ी
कश्मीरी * 
 
 1. Dardi
2. कश्मीरी
3. किश्तवाड़ी
4. Siraji
5. अन्य
 
पंजाबी 
 
1. बागड़ी
2. Bhateali
3. बिलासपुरी कहलूरी
4. पंजाबी
5. अन्य
 
उर्दू 
 
1. Bhansari
2. उर्दू
3. अन्य
 
 
A. J & K में भाषा द्वारा 10,000 व्यक्तियों का वितरण: 
• अनुसूचित भाषाओं के कुल वक्ता = 10,000 में से 9727
• गैर-अनुसूचित भाषाओं के कुल वक्ता = 10,000 में से 273
 
 अनुसूचित भाषा बोलने वालों की संख्या
 डोगरी  2004
 हिंदी  2083
कश्मीरी *  5327
 पंजाबी  175
 उर्दू  16
 अन्य 17  भाषाएँ 395
 
A. वक्ताओं की संख्या द्वारा जम्मू और कश्मीर में 22 अनुसूचित भाषाओं का वितरण इस तरह से समझाया जा सकता है:
 
 
 
official language in Jamm
 
 
 अनुसूचित भाषा जम्मू और कश्मीर में कुल संख्या (1,21,99,484)
 डोगरी25,13,712
 हिंदी 26,12,631
 कश्मीरी * 66,80,837
 पंजाबी  2,19,193
 उर्दू  19,956
 बाकी अनुसूचित भाषाएँ (संख्या में 17)  1,53,155
 
 
A. जम्मू और कश्मीर की प्रमुख गैर-अनुसूचित भाषाएं उनके बोलने वालों की संख्या के साथ: 
 
 
भाषा वक्ता -  – जम्मू- कश्मीर
बाल्टी 13,774 12,399
अफगानी / काबुली / पश्तो 21,677 17,942
अंग्रेज़ी 2,59,678 967
लद्दाखी 14,952 7638
शिना 32,347 32,027
तिब्बती 1,82,685 1,00,499
 भारत वक्ताजम्मू- कश्मीर 
   
   
   
   
   
   
 
 
जम्मू कश्मीर में उर्दू की वास्तविक स्थिति:
 
जनगणना 2011 के आंकड़ों के विश्लेषण से यह स्पष्ट है कि उर्दू ऐसी भाषा नहीं है, जो विशेष रूप में जम्मू-कश्मीर में हर जगह बोली जाती है। जनगणना 2011 के मुताबिक जम्मू कश्मीर में उर्दू भाषा बोलने वालों की संख्या 1% भी कम है।
 
इसका उपयोग केवल कनिष्ठ ज़िला न्यायालय स्तर तक, कनिष्ठ पुलिसिंग यानि पुलिस स्टेशन तक में किया जाता है। इसके अलावा कनिष्ठ राजस्व कार्यालयों में (तहसील स्तर तक) या फिर डारेक्टोरेट्स, सेक्रेटरिएट्स या उच्च न्यायालय के किसी भी विभाग में उर्दू का प्रयोग नहीं किया जाता है।
 
एक अन्य महत्वपूर्ण कारक जो आधिकारिक भाषा के रूप में हिंदी लिए बहुत अधिक वज़न रखता है, अनुच्छेद 370 के उन्मूलन के साथ, जम्मू और कश्मीर यू.टी. को यहां निवेश करने के लिए कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों को आकर्षित करने की उम्मीद है। उर्दू आधिकारिक भाषा बनी हुई है, यह ऐसे निवेशकों को हतोत्साहित कर सकती है क्योंकि भारत की कुल जनसंख्या का केवल 4.19% हिस्सा ही भारत की जनगणना 2011 के अनुसार उर्दू बोलता है। ऐसे में सिर्फ उर्दू को आधिकारिक भाषा बनाये रखना किसी तरह से उचित नहीं था।
 
जम्मू में तो उर्दू का इस्तेमाल न के बराबर है, यहां तक कि कश्मीर क्षेत्र में भी उर्दू, अन्य भाषाओं पंजाबी, भद्रवाही, गोजरी, पहाड़ी, बालती, कश्मीरी, अंग्रेजी, डोगरी, हिन्दी, आदि की तरह बोली जाने वाली भाषा के रूप में भी उपयोग नहीं किया जाती है।
 
जम्मू और कश्मीर में बोली जाने वाली सभी भाषाओं में से, बोलने वालों की संख्या के मूल क्रम में मूल लिपि वाली भाषाएँ इस प्रकार हैं: हिंदी, डोगरी , पंजाबी और उर्दू।
 
इन कारकों को ध्यान में रखते हुए, हम एक आधिकारिक भाषा के रूप में उर्दू के साथ जारी नहीं रख सकते। इसके अलावा, हम कश्मीरी को एक आधिकारिक भाषा नहीं बना सकते क्योंकि एक आधिकारिक भाषा बनने के लिए एक अपनी लिपि आवश्यक है।
 
इस प्रकार, हिंदी एक आधिकारिक भाषा के लिए सबसे व्यवहार्य विकल्प बन जाती है । हिन्दी को राज्य में प्रथम भाषा के रूप में लागू करना, शेष भारत के साथ संघ राज्य क्षेत्र के पूर्ण एकीकरण के लिए भी आवश्यक है । इसके अलावा, हम अनुबंध II में जनगणना के आंकड़ों से देख सकते हैं कि हिंदी भारत की सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है, और जेएंडके में भी व्यापक रूप से बोली जाती है। इसलिए, हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाने से न केवल जम्मू-कश्मीर, बल्कि देश को भी फायदा होगा।
 
इस प्रकार, जम्मू और कश्मीर के संघ शासित प्रदेश के लिए आधिकारिक भाषा हिंदी होनी चाहिए । हालांकि, नागरिकों को आठवें अनुच्छेद में सम्मलित भाषाओं में से किसी में भी खुद को प्रतिनिधित्व करने की अनुमति दी जा सकती है।