गिलगित-बल्तिस्तान पर The Wire और सुधींद्र कुलकर्णी की प्रोपगैंडा सीरिज़ का सच: #Expose Part-2
   30-सितंबर-2020
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-डॉ. शिव पूजन प्रसाद पाठक
 
सुधींद्र कुलकर्णी The Wire में प्रकाशित लेख श्रृंखला के भाग दो में दावा करते हैं कि जम्मू और कश्मीर राज्य एक कृत्रिम राज्य था। महाराजा हरि सिंह एक अलोकप्रिय शासक थे। गिलगित-बल्तिस्तान के लोग महराजा के विरोध में विद्रोह कर पाकिस्तान से मिल गए।
 
 
1- जम्मू और कश्मीर एक नैसर्गिक राज्य है
 
 
अपने लेख में सुधींद्र कुलकर्णी ने वो प्रोपगैंडा स्थापित करने की कोशिश की है, जो भाषा पाकिस्तान और अब चीन से सुनाई देती है। सुधींद्र के लेख के मुताबिक जम्मू और कश्मीर एक कृत्रिम राज्य है । जिसमें पाँच भाग है । जम्मू, कश्मीर, लद्दाख, गिलगित और बल्तिस्तान। इन पाचों क्षेत्रों में कोई आपसी समानता नहीं थी और केवल महाराजा गुलाब सिंह के कारण इकठ्ठआ थे। जम्मू हिन्दू बाहुल्य, कश्मीर कुछ हिन्दू और सिख के साथ सुन्नी मुस्लिम बाहुल्य, लद्दाख में बौद्ध , गिलगित- बल्तिस्तान में शिया और इस्माइली थे । इस सबकी भाषाएँ अलग-अलग थीं। जम्मू का डोगरा शासन अन्य भाग में अप्रिय था। ब्रिटिश उपनिवेशवाद की तरह ही डोगरा शासन का उपनिवेशवाद था।
 
 
ऐसे में अगर कुलकर्णी के इस तर्क को एक क्षण के लिए माना भी जाये तो सबसे अधिक कृत्रिम देश भारत होगा। तत्कालीन भारत में एक भी राज्य या रियासत ऐसी नहीं थी जो बहुधर्मी, बहुभाषी और भौगोलिक विभिन्नता वाली न हो। भारत जैसी विविधिता शायद ही दुनिया में किसी भी देश में हो। हम लगता है कि भारत की विविधिता के आयाम और प्रकार पूरे यूरोप से अधिक होगा। क्षेत्रीय विविधिता के आधार पर जम्मू और कश्मीर राज्य को कृत्रिम राज्य कहना गलत होगा। भारत के एकता के आधार सांस्कृतिक है। भारत की विविधिता के आधार पर राज्य का निर्माण होता तो भारत सैकड़ों देश होते। भारत की एकता उसके विविधिता में ही है ।
 
 

2- जम्मू कश्मीर राज्य की स्थापना और गुलाब सिंह
 
अपने प्रोपगैंडा लेख में सुधींद्र कुलकर्णी का कहना है कि 1839 में महाराजा रणजीत सिंह के मृत्यू के बाद सिख साम्राज्य का विघटन हो गया और प्रथम सिख युद्ध (1845-46) में ब्रिटिश ने जीत इसे लिया। 9 मार्च 1946 को अंग्रेजों और सिखों के बीच लाहौर संधि हुई जिसके अनुसार अंग्रेजों ने क्षतिपूर्ति के रूप में सिखों से 75 लाख नानक शाही की मांग की गयी। लाहौर दरबार ने इस क्षतिपूर्ति देने में असमर्थता जतायी तो अंग्रेजों ने 16 मार्च 1946 को अमृतसर संधि के माध्यम से जम्मू और कश्मीर को गुलाब सिंह के हाथों बेंच दिया ।
 
 
यह आरोप सरासर कोरा झूठ है। गुलाब सिंह को महाराजा रणजीत सिंह ने 1922 में ही महाराजा बना दिया था। गुलाब सिंह के सेनापति जोरावर सिंह ने जम्मू और कश्मीर का एकीकरण कर गिलगित-बाल्टिस्तान पर अधिकार कर लिया था। महाराजा गुलाब सिंह ने विशाल जम्मू साम्राज्य बहुत परिश्रम से बनाया था। उसकी सीमा अफगानिस्तान तक स्वतन्त्र हो गयी थी। कश्मीर को विदेशी अभियानों से मुक्त कराके वहा भारत का केसरिया धवज लहराया था, लेकिन वह अब ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा हो जाना था। महराजा गुलाब सिंह ने कम्पनी के सामने तब युद्ध क्षतिपूर्ति का प्रस्ताव रखा । इस प्रकार अंग्रेजों ने तब लाहौर दरबार के प्रधानमंत्री गुलाब सिंह से 16 मार्च 1846 को एक संधि हुई, जिसके अनुसार जम्मू कश्मीर का शासक गुलाब सिंह को स्वीकार कर लिया क्योंकि गुलाब सिंह जी युध्द हर्जाना देने के लिए तैयार हो गए । लेकिन अंग्रेज पहले से ही यह निश्चित कर चुके थे कि कश्मीर के ऊपर पहाड़ी वाला भाग नही लेना है । 75 लाख रुपये के बदले में कांगड़ा से ऊपर वाला भाग गुलाब सिंह जी को दे दिया गया । जबकि रावी व व्यास के बीच वाला भाग अंग्रेजों ने अपने पास रख लिया । इस प्रकार जम्मू कश्मीर स्वतंत्र राज्य के रूप में बना, जो पहले लाहौर राज्य महाराजा रणजीत सिंह के राज्य का एक भाग था । अमृतसर की सन्धि के हिसाब से यह भाग गुलाब सिंह व उनके पीढ़ियों के लिए समर्पित कर दिया गया । इस प्रकार गुलाब सिंह जम्मू, कश्मीर, लद्दाख़, गिलीगत, चिलास और बाल्टिस्तान के स्वतंत्र व संप्रभु राजा बन गए ।
 
 
कुलकर्णी ने महाराजा गुलाब सिंह के विषय में लार्ड हार्डिंग को उद्धृत करते हुए कहते हैं कि वह एशिया का सबसे पाजी (ग्रेटेस्ट रास्कल ऑफ एशिया) व्यक्ति था। यह प्रथम आंग्ल-सिख युद्ध के समय की है । आप सोच सकते हैं कि गुलाब सिंह के विषय में किस प्रकार की भ्रांतियाँ फैलाई गयी होगी।
 

3- गिलगित-बाल्टिस्तान को पाकिस्तान में रहे यह ब्रिटिश सरकार के षड्यंत्र का हिस्सा था और वे अब तक सफल रहें
 
 
द वायर के लेख के अनुसार मेजर ब्राउन पाकिस्तान का साथ इसलिए दिया क्योंकि गिलगित, हुंजा में महाराजा के विरुद्ध असंतोष था और बाल्तिस्तान पहले से पाकिस्तान में विलय कर चुका था।
 
जबकि सच ये है कि स्वतन्त्रता के समय इस क्षेत्र के सुरक्षा का दायित्व गिलगित स्काउट के पास थी, जिसके अधिकारी मेजर ब्रॉउन थे । मेजर ब्राऊन ने साजिश के अंतर्गत अंग्रेज अधिकारियों के साथ मिलकर गिलगित बल्तिस्तान में एक सैन्यविद्रोह करवा कर के तख्ता पलट करवा दिया, जिससे यह क्षेत्र पाकिस्तान के कब्जे में चला गया । यह रक्तहीन तख्तापलट के खेल का नाम मेजर ब्रॉउन ने 'दत्त खेल' दिया था । इसलिए गिलगित में कोई जन विद्रोह नहीं था बल्कि ब्रिटिश कुचक्र का परिणाम था।
 
ब्रिटिश सेना के उकसावे पर जम्मू कश्मीर की सेना के मुस्लिम अधिकारियों व जवान भी इस विद्रोह में भाग लिया । इस समय गिलगित स्काउट की सेना गिलगित में आगे बढ़ी और वहाँ के गवर्नर घनसारा सिंह को उनके निवास स्थान पर करीब 100 लोगों ने घेर लिया । जम्मू कश्मीर की पुलिस के मुस्लिम अधिकारियों ने भी इस समय कपट किया और मेजर ब्राउन के साथ मिल गए । घनसारा सिंह के घर घेरने में एक डिप्टी एसपी अब्दुल हामिद भी था। ब्रिगेडियर घनसारा सिंह को उस समय आत्म समर्पण करने को बाध्य होना पड़ा जब मेजर ब्राऊन ने चेतावनी दी कि अगर आत्मसपर्ण नही किया तो गिलगित एजेंसी के सारे गैर मुसलमानों को मार दिया जाएगा ।
 
 
मित्र कर्नल मजीद को भी बंदी बना लिया गया। कर्नल मजीद 6वीं जम्मू कश्मीर इन्फैंट्री के अफसर थे । गवर्नर 30 अक्टूबर को घनसारा सिंह का समर्थन करने के लिए सेना के साथ बुंजी से गिलगित चले आये थे, उन्हें वहां स्थित ब्रिटिश-विरोधी गिलगित स्काउट्स की पाकिस्तान के प्रति वफादारी की आशंका थी। सेना के हिंदू और सिख सदस्यों का नरसंहार किया गया । सन् 1948 के अंत में संयुक्त राष्ट्र द्वारा गोलीबंदी घोषित की गई जिसके कारण गिलगित-बल्तिस्तान पाकिस्तान के कब्जे में ही रह गया। 2 नवम्बर 1947 को पाकिस्तान का झंडा मेजर ब्राऊन के द्वारा गिलगित में फहराया गया।
 

4- संपूर्ण जम्मू कश्मीर के एकमेव शासक थे महाराजा हरि सिंह
 
 
महाराजा हरि सिंह एक लोकप्रिय शासक थे। वास्तव में वे जननायक थे । उनके राजनीतिक व आर्थिक सुधार समय से आगे थे लेकिन इतिहासकारों ने इस जननायक को राजनीति के चलते खलनायक बनाने का प्रयास किया है । उनका प्रशासन प्रगतिवादी और जनकल्याणकारी था । 1929 में सोलह साल से कम आयु के किशोरों के लिए धूम्रपान निषेध कर दिया था । 1932 में समाज के सभी वर्ग के लिए मंदिर में प्रवेश का आदेश दे दिया था । 1933 में विधवा पुनर्विवाह को वैधानिक स्थिति प्रदान कर दी थी । वैश्यावृत्ति पर प्रतिबंध लगा दिया था । प्राथमिक शिक्षा के अनिवार्य करने के पक्षधर थे। राज्य में निष्पक्ष न्याय व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए 1928 में ही उच्च न्यायालय की स्थापना की । महाराजा हरि सिंह ने अपने शासनकाल में बेगार प्रथा को समाप्त किया और इस अपराध घोषित किया । जम्मू और कश्मीर सबसे पहले 1934 के संविधान अधिनियम के तहत लोकतान्त्रिक विधान मण्डल की स्थापना की । इसके दो भाग थे – राज्य परिषद और प्रजासभा । इस प्रकार महराजा जननायक थे लेकिन ब्रिटिश शासन, पंडित नेहरू और शेख अबुदल्ला के साजिश ने खलनायक बनाने का पूरा खेल खेला, लेकिन इतिहास का चक्र घूम चुका है ।
 
 
(लेखक आर्यभट्ट महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापक हैं)
 
 
कुलदीप चन्द्र अग्निहोत्री, जम्मू कश्मीर के जननायक महराजा हरिसिंह ,२०१६, प्रभात प्रकाशन, पृष्ठ संख्या- 208-226