पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ जंग की साजिश 1947 में आजादी के समय ही कर ली थी। आजादी के वक्त दोनों देशों के बीच कई मुद्दों के बीच अहम मुद्दा कश्मी्र ही था, जो 1947,1965 और 1999 कारगिल युद्ध की वजह था। 1965 के वक्त भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री थे। उस वक्त कश्मीर विवाद से अलग गुजरात में मौजूद कच्छ के रण की सीमा भी उस समय विवादित थी। इस सीमा पर पाकिस्तान ने जनवरी 1965 से गश्त शुरू की थी। इसके बाद यहां पर एक के बाद एक दोनों देशों के बीच आठ अप्रैल से पोस्ट्स का विवाद शुरू हो गया था। उस समय के ब्रिटिश पीएम हैरॉल्डट विल्सगन ने दोनों देशों के बीच इस विवाद को सुलझाने में बड़ी भूमिका निभाई थी। इस विवाद को खत्म करने के लिए एक ट्रिब्यूनल का गठन किया गया था। हालांकि विवाद सन् 1968 में जाकर सुलझा था, लेकिन उससे पहले ही दोनों देशों के बीच 1965 की जंग हुई थी। जिसमें पाकिस्तान को हार का सामना करना पड़ा था।
ऑपरेशन जिब्राल्टर
भारतीय सेना ने 5 अगस्त से 10 अगस्त 1965 के बीच कश्मीर घाटी में सैकड़ों घुसपैठियों की पहचान कर ली थी। वे सभी घुसपैठी साधारण वेश में कश्मीरी नागरिकों के साथ मिलकर भारत के खिलाफ विद्रोह शुरू करने की तैयारी में थे। लेकिन उससे पहले ही सेना ने उनमें से कई घुसपैठियों को गिरफ्तार करके उनसे पूछताछ शुरू कर दी थी। पूछताछ में यह खुलासा हुआ था कि पाकिस्तान की तरफ से 30 हजार से ज्यादा घुसपैठी कश्मीर कब्जा करने के मकसद से घुसपैठ कर रहे हैं। पाकिस्तान ने इस ऑपरेशन को ऑपरेशन जिब्राल्टर नाम दिया था। "जिब्राल्टर, स्पेन के पास एक छोटा सा टापू है। जिब्राल्टर असल में स्पैनिश शब्द है, अरबी के ‘जबल तारिक’ का स्पैनिश उच्चारण। इस पहाड़ का नाम तारिक इब्न जियाद नाम के एक मशहूर अरब लड़ाके के नाम पर पड़ा था। वो उत्तरी अफ्रीका लांघकर स्पेन गया था। जिन नावों की मदद से वो वहां तक पहुंचा, उन्हें उसने जला दिया था। ताकि किसी भी सूरत में उसकी सेना पैर पीछे करने का खयाल मन में ना लाये।" पाकिस्तान भी इस नाम को अपनी जीत समझकर ऑपरेशन का नाम जिब्राल्टर रखा था। गिरफ्तार कैदियों से पूछताछ में पता चला था कि ऑपरेशन जिब्राल्टर के लिए योजनाएं कच्छ के रण से एक महीने पहले मई 1965 में बनाई गई थी। हालांकि भारतीय सेना ने सूझबूझ के साथ कार्रवाई करते हुये सितंबर के पहले ही सप्ताह में पाकिस्तान के ऑपरेशन जिब्राल्टर को फेल कर दिया था।

तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री
ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम
ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम के तहत पाकिस्तानी राष्ट्रपति जनरल अयूब खान ने जबरन कश्मीर पर कब्जा करने की योजना बनाई थी। जानकारों का मानना है कि पाकिस्तान का यह हमला कश्मीर पर कब्जा करने के लिए सक्षम था। लेकिन जनरल अयूब खान ने भारतीय सेना और भारतीय वायु सेना की क्षमता के बारे में मालूम नहीं था। लिहाजा हमले के पहले घंटे में ही भारतीय वायुसेना की कार्रवाई से पाकिस्तान का पूरा प्लान फेल हो गया था।
पाकिस्तान ने कश्मीर के उरी और पुंछ जैसे इलाकों पर अपना कब्जा कर लिया था तो वहीं भारत ने पाकिस्तान के ऑपरेशन जिब्राल्टर को फेल करते हुये पीआजेके से करीब आठ किलोमीटर दूरी पर स्थित हाजी पीर पास को अपने कब्जे में कर लिया था। इसके बाद पाकिस्तान ने एक सितंबर 1965 को ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम के नाम से एक खास मिशन शुरू किया। इसका मकसद जम्मू के अखनूर सेक्टर को अपने कब्जे में लेना था। ताकि भारत को कश्मीर के साथ जोड़ने वाली इकलौती सड़क पाकिस्तान के कब्जे में आ जाये। इस तरह कश्मीर हमेशा-हमेशा के लिए भारत के हाथ से निकल जायेगा। पाकिस्तान की ये पूरी साजिश दो कल्पनाओं पर टिकी थी। एक तो ये कि जैसे ही पाकिस्तानी मुजाहिदीन कश्मीर घाटी पहुंचेंगे, वहां स्थानीय लोग उनके साथ मिलकर भारत के खिलाफ बगावत शुरू कर देंगे। दूसरा ये कि भारत मुंहतोड़ जवाब देने की स्थिति में नहीं है। पाकिस्तान को लगता था कि भारत अंतरराष्ट्रीय सीमा नहीं लांघेघा। हालांकि इस ऑपरेशन में भारतीय सेना को खासा नुकसान हुआ और पाकिस्तान ने कई सप्लाई रूट्स को क्षतिग्रस्त कर दिया था। लेकिन इसके बावजूद भारतीय सेना की कार्रवाई के आगे पाकिस्तान की ओर से चलाया गया ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम बुरी तरह से फेल हो गया था। पाकिस्तान ने अपने ऊपर बढ़ते हमलों को देखकर पंजाब को निशाना बनाना शुरू किया था, लेकिन इस बार भी उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। भारतीय सेना ने 6 सितंबर 1965 के दिन वेस्टर्न फ्रंट पर अंतरराष्ट्रीय सीमा को लांघते हुए आधिकारिक तौर पर युद्ध का बिगुल बजा दिया था। पाकिस्तान की हार के साथ यह युद्ध 23 सितंबर 1965 को खत्म हुआ था।
पाकिस्तान के पास आधुनिक अमेरिकी टैंक्स1965 युद्ध के दौरान पाकिस्तान के पास कई अमेरिकी टैंक्स मौजूद थे। विशेषज्ञों के मुताबिक भारत और पाकिस्तान के बीच हुई इस जंग में टैंकों का प्रयोग सेकेंड वर्ल्ड वॉर के बाद सबसे ज्यादा हुआ था। पाकिस्तान के पास उस समय अमेरिका में बने कई बेहतरीन टैंक्स थे जिनमें पैटन एम-47, एक-48 और एम-4 शैरमैन टैंक्स खासतौर पर शामिल थे। इन टैंक्स की वजह से पाकिस्तान ने शुरुआत में भारत पर हावी होने की कोशिश की थी। लेकिन भारतीय सेना के आगे पाकिस्तान का कोई सैनिक, टैंक नहीं टिका था।