8 सितंबर, 1965 भारत-पाकिस्तान युद्ध: भारतीय सेना के पराक्रम 'असल उत्तर' की शौर्यगाथा

08 Sep 2020 15:28:23

1965_1  H x W:
 

भारत और पाकिस्तान के बीच असल उत्तर की लड़ाई इतिहास के पन्नों में आज भी दर्ज है। आज यानी 8 सितंबर 2020 से ठीक 55 साल पहले भारत ने “असल उत्तर” की लड़ाई में पाकिस्तानी सेना की साजिश को नाकाम करते हुये पाकिस्तान को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था। भारत-पाकिस्तान बॉर्डर पर पंजाब राज्य में एक जगह है 'असल उत्तर'। यहां के मैदान में आज से ठीक 55 साल पहले 8 सितंबर, 1965 के दिन असल उत्तर की लड़ाई शुरू हुई थी। जो तीन दिनों तक चली थी और 10 सितंबर 1965 के दिन पाकिस्तान की पराजय के साथ खत्म हुई थी। इस युद्ध में पाकिस्तान को करारी हार के साथ काफी नुकसान सहना पड़ा था। पाकिस्तानी सेना के करीब 99 टैंकों को भारतीय सेना ने बर्बाद कर दिया था। पाकिस्तानी सेना ने पूरी ताकत झोंककर पंजाब पर हमला किया था। लेकिन उसके बावजूद भारतीय सेना के पराक्रम के आगे पाकिस्तानियों को घुटना टेकना पड़ा था। लड़ाई में खेमकरण से 5 किलोमीटर दूर असल उत्तर पाकिस्तानी टैंकों का कब्रिस्तान बन गया था। जहां पर सिर्फ जले हुये बर्बाद पाकिस्तानी टैंक ही नजर आ रहे थे।


8 सितंबर 1965 युद्ध की शुरूआत


8 सितंबर को पाकिस्तान की 1 आर्मर्ड और 11 आर्मर्ड डिविजन ने अंतरराष्ट्रीय सीमा पार करते हुये भारतीय कस्बे खेमकरन पर कब्जा कर लिया था। जिसके बाद भारतीय सेना की 4 डिविजन के जीओसी मेजर जनरल गुरबख्श सिंह ने तुरंत भारतीय सेना को पीछे हटने और असल उत्तर के पास दुश्मन को जवाब देने का आदेश दिया। युद्ध की रणनीति के मुताबिक भारतीय सेना ने घोड़े की नाल के आकार का एक फंदा तैयार करके भारतीय टैंक और जवान असल उत्तर के पास गन्ने के खेतों में इस आकार में मोर्चा जमाकर बैठ गये, जैसे की घोड़े की नाल होती है। उस वक्त पाकिस्तान तकनीकी रूप से मजबूत स्थिति में था उसके पास तीसरी पीढ़ी के अमेरिकी पैटन टैंक थे, जिन्हें अजेय समझा जाता था। वहीं भारत के पास इन पैटन टैंकों का मुकाबला करने के लिए सिर्फ सेंचुरियन टैंक थे। जो ना तो मजबूत थे और ना ही ज्यादा दूरी तक मार कर सकते थे। वहीं पाकिस्तान 264 टैंकों के साथ आक्रमण करने के लिए मैदान में उतरा था। भारत को इन्हीं सेंचुरियन, शरमन और एएमएक्स टैंक से लड़ाई लड़नी थी। इतना ही नहीं भारतीय सेना की पूरी फौज भी असल उत्तर में नहीं थी, ज्यादातर सेना लाहौर के पास पाकिस्तान के अंदर घुस कर लड़ाई कर रही थी। इसलिए यह जरूरी था कि भारतीय सेना पाकिस्तान से मुकाबले करने के लिए युद्ध की अच्छी रणनीति के साथ साम, दाम, दंड और भेद का इस्तेमाल करें। रणनीति के तहत भारतीय सेना असल उत्तर के पास बहने वाले नालों को तोड़कर उसका पानी खुले मैदान में बहा दिया। जिसके बाद असल उत्तर का मैदान दलदल जैसा हो गया था। जहां पर पाकिस्तानी टैंकों को रास्ता बनाने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। टैंकों को बर्बाद कर देने वाली माइंस और दलदल ने पाकिस्तानी टैंकों की रफ्तार पर ब्रेक लगा दिया था।
 
 
1965_1  H x W:
 
 पानी में फंसे पाकिस्तानी टैंक
 

वहीं गन्ने के खेतों में मोर्चा संभाले भारतीय सैनिक दुश्मनों का इंतजार कर रहे थे। 8 सितंबर की सुबह पाकिस्तान अपने टैंकों के साथ असल उत्तर की तरफ बढ़ने लगा। पाकिस्तान का प्लान था कि वह ग्रांट ट्रंक रोड पर कब्जा करके अमृतसर पर भी अपना कब्जा जमा ले। लेकिन भारतीय सेना की रणनीति के मुताबिक दलदल ने पाकिस्तानी टैंकों की रफ्तार कम कर दी थी। तो वहीं माइंस ने कई टैंकों के चीथड़े उड़ा दिये थे। पाकिस्तानी सेना पर तीन तरफ से हमला हो रहे थे, उन्हें खेमकर भिखीविंड से लेकर अमृतसर रोड तक पनाह लेने के लिए कोई भी जगह नहीं मिली थी। भारतीय सेना के जाबाज अब्दुल हमीद ने 8 सितंबर को दो पाकिस्तानी टैंकों को उड़ा दिया था। 10 सितंबर को जब फिर से पाकिस्तानी टैंक उनकी पोस्ट की तरफ बढ़ने लगे तो अब्दुल हमीद अपनी आर.सी.एल. जीप पर सवार होकर दुश्मन से मोर्चा लेने निकल पड़े। पाकिस्तानी टैंक लगातर गोले बरसा रहे थे, लेकिन अब्दुल हमीद ने इसकी परवाह नहीं की और फिर दो पाकिस्तानी टैंकों को बर्बाद कर दिया। लेकिन तभी तीसरे टैंक की नजर अब्दुल हमीद पर पड़ गई, उनके पास जगह बदलने के लिए वक्त नहीं था।  इसलिए वह अपने जगह से ही टैंक पर निशाना लगाना शुरू कर दिया। पाकिस्तानी टैंक और अब्दुल हमीद की आर.सी.एल. का गोला एक साथ एक-दूसरे के ऊपर गिरा। जिससे पाकिस्तानी टैंक बर्बाद हो गया। लेकिन पाकिस्तानी गोले का शिकार होने की वजह से अब्दुल हमीद भी शहीद हो गये। असल उत्तर की लड़ाई पूरी तरह से भारत के पक्ष में आ चुकी थी। युद्ध में भारत को कुल 10 टैंकों को नुकसान पहुंचा था, जबकि वहीं पाकिस्तान को 99 टैंकों का नुकसान झेलना पड़ा था। अच्छी युद्ध रणनीति और अदम्य साहस ने भारतीय सेना को असल उत्तर की लड़ाई में जीत दिलाई थी।
 


1965_1  H x W:
 
शहीद अब्दुल हमीद
 

असल उत्तर की लड़ाई के बाद
 
 

10 सितंबर को लड़ाई ख़त्म होने के बाद 4 ग्रेनेडियर्स के सैनिक चीमा गाँव पर ही रूके थे। तभी एक दिन भारतीय सैनिकों को सफ़ेद झंडा लिए कुछ पाकिस्तानी सैनिक आगे आते दिखाई दिये। उनके साथ सफ़ेद कपड़ा पहने एक महिला भी आ रही थी। पाकिस्तानी सैनिकों ने कहा कि यह महिला भारतीय सैनिकों से मिलना चाहती है। इस घटना का जिक्र करते हुये लेखिका रचना बिष्ट अपनी किताब '1965- स्टोरीज़ फ़्राम द सेकेंड इंडोपाक वार' में लिखती है कि उस महिला ने रोते हुये भारतीय सैनिकों से कहा कि वह आर्टलरी कमांडर की विधवा है, जो भारत के साथ असल उत्तर की लड़ाई में मारे गये थे। महिला ने भारतीय सैनिकों से हाथ जोड़ते हुये कहा कि बहुत मेहरबानी होगी अगर मेरे पति का शव मुझे वापस कर दिया जाये। जिसके बाद भारतीय कमांडर ने कहा कि उनके उनके पति की मौत पर उन्हें बहुत अफ़सोस है। लेकिन अब वह उन्हें चाहकर भी शव नहीं सौंप सकते हैं। क्योंकि उनके पति समेत सभी मारे गये पाकिस्तानी सैनिकों को सम्मान के साथ दफ़नाया जा चुका है। भारतीय कमांडर ने सम्मानपूर्वक उस महिला को बैठाकर चाय पिलाई और उन्हें विदा किया।
Powered By Sangraha 9.0