थागला रिज 1962 की लड़ाई के नायक जोगिंदर सिंह की शौर्यगाथा, जिनकी पलटन ने सैकड़ों चीनी सैनिकों को किया था ढेर
भारतीय सेना ने 1962 में चीन के साथ कई मोर्चों पर कठिन परिस्थितियों में भीषण युद्ध लड़ा था। ऐसा ही एक मोर्चा था बुम ला। अरुणाचल प्रदेश में चीन सीमा पर स्थित बुम ला मोर्चे की लड़ाई भारत के वीर सपूतों की अनेक गाथाओं में एक महत्वपूर्ण अध्याय जोड़ती है। बुम ला की लड़ाई में सबसे मुख्य भूमिका सूबेदार जोगिंदर सिंह ने निभाई थी। उस कठिन परिस्थिति में भी जोगिंदर सिंह ने युद्ध कौशल्य का परिचय देते हुए घायल जवानों को फिर से खड़ा किया था। उन्होंने खाली बंदूकों पर बेयोनेट यानी चाकू बांध दिये। इसके बाद जोगिंदर सिंह के नेतृत्व में भारतीय सैनिकों ने ‘जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल’ का नारा लगाते हुये चीनी सैनिकों पर धावा बोल दिया था। बंदूक में लगे चाकू से एक के बाद एक कई चीनी सैनिक मारे गये थे। उस युद्ध में जोगिंदर सिंह और उनके साथियों ने चीनी सेना का डटकर सामना किया था।
भारत-चीन युद्ध 1962
8 सितंबर 1962 को प्रधानमंत्री नेहरू राष्ट्रमंडल प्रधानमंत्रियों के सम्मेलन के लिए लंदन में थे। 9 सितंबर को रक्षा मंत्री कृष्ण मेनन द्वारा भारत में आयोजित एक बैठक में थागला रिज के चीनी दक्षिण को बेदखल करने का निर्णय लिया गया था। पीएम नेहरू को घटनाक्रम की जानकारी दी गई थी और उन्होंने निर्णय का समर्थन किया। भारतीय सेना की नई गजराज कॉर्प्स ने इस असंभव काम के लिए टुकड़ियों को इकट्ठा किया। कॉर्प्स 1961 में बनाई गई भारतीय सेना का एक सैन्य क्षेत्र है। उससे पहले 20 अक्टूबर, 1962 को नमखा चू सेक्टर और लद्दाख समेत पूर्वी सीमा की बहुत सारी जमीनों पर कब्जा कर लिया था। इसी दिन यानी 20 अक्टूबर, 1962 को ही भारत-चीन युद्ध की अधिकृत घोषणा हुई थी। अब चीनी धोला-थगला की ओर बढ़ने लगे थे। क्योंकि चीन को तवांग पर कब्ज़ा करना था, जो उसकी सबसे बड़ी चाहत थी। भारत के सामने अब चीनी सैनिकों को रोकना एक चुनौती बन गई थी। इस समस्या से लड़ने के लिए और चीनियों को तवांग पर नियंत्रण करने से रोकने के लिए भारतीय सेना ने अपनी पहली सिख बटालियन को भेजा था। जिसका नेतृत्व सूबेदार जोगिंदर सिंह को सौंपा गया था।
चीनी सैनिकों का हमला
जोगिंदर सिंह पूरी तैयारी के साथ अपनी पलटन को लेकर चीनियों को रोकने के लिए निकल पड़े। उस समय चीनी सेना का एक पूरा डिवीज़न बमला इलाके में जमा हो चुका था, जहाँ से तवांग सिर्फ 26 किलोमीटर की दूरी पर था। जोगिंदर ने अपनी सिख बटालियन की एक डेल्टा कंपनी को लेकर ट्विन पीक्स से एक किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में टॉन्गपेंग ला पर बेस बनाया था। क्योंकि ट्विन पीक्स से खड़े होकर मैकमोहन लाइन तक चीन की हर हरक़त पर नजर रखी जा सकती थी। अब दुश्मन को बमला से ट्विन पीक्स तक पहुँचने से रोकना था। इन दोनों के बीच एक महत्वपूर्ण जगह थी आईबी रिज, जहाँ कमांडर लेफ्टिनेंट हरीपाल कौशिक की डेल्टा कंपनी की 11वीं प्लाटून तैनात थी। सिखों की इस पलटन को तोपों और गोलाबारी से कवर देने के लिए 7वीं बंगाल माउंटेन बैटरी भी वहीं पहुँच चुकी थी। 20 अक्टूबर, 1962 की सुबह बॉर्डर के पार सैकड़ों की तादाद में चीनी फौज जमा होने लगे थे। असम राइफल्स की बमला आउटपोस्ट के एक जेसीओ ने जब चीनी सैनिकों को जमा होते देख, तो तुरंत उसने 11वीं प्लाटून को इसकी जानकारी दी। जोगिंदर सिंह ने भी हलवदार सुचा सिंह के नेतृत्व में एक सेक्शन बमला पोस्ट भेजा। फिर उन्होंने अपने कंपनी हेडक्वार्टर से सेकेंड लाइन गोला-बारूद मुहैया कराने के लिए कहा। 23 अक्टूबर, 1962 की तड़के 4 बजकर 30 मिनट पर चीनी सेना ने मोर्टार और एंटी-टैंक बंदूकों से हमले की तैयारी शुरू कर दी थी। जिससे भारतीय बंकर नष्ट किये जा सके। सुबह 6 बजे तक चीनियों ने असम राइफल्स की पोस्ट पर हमला कर दिया और सुचा सिंह ने उनका जमकर मुक़ाबला किया। जब स्थिति उनके हाथ से निकलने लगी, तो वे आईबी रिज की पलटन में लौट आये । अगले दिन यानी 24 अक्टूबर, 1962 की सुबह चीनी सेना ने ट्विन पीक्स पर कब्ज़ा करने के लिए आईबी रिज पर आक्रमण कर दिया। जोगिंदर सिंह भी पूरी योजना से साथ ट्विन पीक्स पर तैनात थे। उन्हें यहाँ की भौगोलिक स्थिति की बहुत अच्छे से समझ थी और स्थानीय संसाधनों का अच्छा प्रयोग करना जानते थे। आईबी रिज पर उन्होंने पहले से ही चतुर प्लानिंग के साथ बंकर और खंदकें बना ली थीं। उनकी पलटन के पास सिर्फ चार दिन का राशन था। उन लोगों के जूते और कपड़े सर्दियों और उस स्थान के अनुकूल नहीं थे। हिमालय की ठंड रीढ़ में सिहरन दौड़ाने वाली थी। लेकिन उसके बावजूद जोगिंदर ने अपने साथियों में जोश भरा और लड़ने के लिए तैयार किया। सूबेदार जोगिंदर के अच्छे नेतृत्व की वजह से वह सभी नये सिपाही चीनी सैनिकों (पीपुल्स लिबरेशन आर्मी) को मार गिराने के लिए तैयार थे। सूबेदार जोगिंदर सिंह को ये पता था कि चीनी फौज बमला से तीखी चढ़ाई करके आ रही है और वे लोग अधिक मजबूत आईबी रिज पर बैठे हैं। यानी सिख पलटन अपनी पुरानी ली एनफील्ड 303 राइफल्स से भी दुश्मन को कुचल सकती है। इसके अलावा उनके पास गोलियाँ भी कम थीं, इसलिए जोगिंदर सिंह ने अपने सैनिकों से कहा, ‘हर गोली का हिसाब होना चाहिए, जब तक दुश्मन रेंज में न आए, तब तक फायर रोक कर रखो और उसके बाद चलाओ।’

लड़ाई शुरू हो गई। 200 चीनी सैनिक सिख पलटन के सामने थे, परंतु जोगिंदर सिंह और उनके साथियों ने चीनी सेना का बुरा हाल कर दिया। यद्यपि उनके बहुत सारे सैनिक घायल हो गए। उनका जवाब इतना प्रचंड था कि चीनी सेना को पहले छुपना पड़ा और उसके बाद उसे पीछे हटने को विवश होना पड़ा। इसके बाद जोगिंदर ने टॉन्गपेंग ला के कमांड सेंटर से और गोला-बारूद भिजवाने के लिए कहा, परंतु जब तक मदद मिलती, तब तक और 200 चीनी सैनिक आ गए और उन्होंने सिख पलटन पर हमला कर दिया। भीषण गोलीबारी हुई। जोगिंदर को चीनी सैनिकों द्वारा मशीन गन से की जा रही गोलीबारी में एक गोली जांघ में लगी। वे एक बंकर में घुस गए। घालय होने के बाद भी जोगिंदर साथियों को चिल्ला-चिल्ला कर निर्देश देते रहे। जब उनका गनर शहीद हो गया, तो उन्होंने 2 इंच वाली मोर्टार खुद ले ली और चीनी सैनिकों पर कई राउंड गोलीबारी की। जोगिंदर की पलटन के ज्यादातर साथी शहीद हो चुके थे या बुरी तरह घायल थे। उसी दौरान डेल्टा कंपनी के कमांडर लेफ्टिनेंट हरीपाल कौशिक ने आने वाला खतरा भाँपते हुए रेडियो पर संदेश भेजा, जिसे रिसीव करके सूबेदार जोगिंदर सिंह ने ‘जी साब’ कहा, ये उनके अंतिम शब्द थे। उनकी पलटन के पास बारूद ख़त्म हो चुका था। सूबेदार जोगिंदर सिंह ने अपनी पलटन के बचे-खुचे सैनिकों को तैयार किया और अंतिम आक्रमण करने के लिए अपनी-अपनी बंदूकों पर बेयोनेट यानी चाकू लगा कर, ‘जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल’ के नारे लगाते हुए चीनी सैनिकों पर हमला कर दिया और कइयों को काट डाला। संख्या में अधिक होने कारण चीनी सैनिक आते गए और अंतत: घायल सूबेदार जोगिंदर सिंह को उन्होंने युद्ध बंदी के रूप में ग़िरफ्तार कर लिया। सूबेदार जोगिंदर सिंह का 23 अक्टूबर, 1962 को चीनी युद्ध बंदी के रूप में ही निधन हो गया। भारत सरकार ने सूबेदार जोगिंदर सिंह के अदम्य साहस के लिए उन्हें सर्वोच्च वीरता पुरस्कार ‘मरणोपरांत परमवीर चक्र’से सम्मानित किया गया था।