#Exclusive जम्मू कश्मीर का परिसीमन घोटाला: जनगणना आंकड़ों में फर्जीवाड़ा; पार्ट-01
    06-अक्तूबर-2021
 
Jammu and Kashmir delimit
 
5 अगस्त 2019 के बाद जम्मू कश्मीर में पिछले 70 साल की लगभग तमाम गलतियों को सुधारने का काम हो चुका है। नतीजा जम्मू कश्मीर में तेजी से बदलाव दिखाई देने लगा है।
 
“अब किसी भी आम जम्मू कश्मीरी के साथ कोई भेदभाव नहीं बचा, एक नागरिक, एक मतदाता होने के नाते सब बराबर का हक रखते हैं।”
 
अगर आप भी ऐसा सोचते हैं, तो ठहरिये.. जम्मू कश्मीर में अभी भी एक ऐसे पॉलिटिकल स्कैम का खुलासा होना बाकी है, जिसके जरिये 70 सालों में आम जम्मू कश्मीरी के साथ भेदभाव होता रहा। सत्ता पर चंद लोगों का कब्जा रहे, इसके लिए इस हथियार का बेजा इस्तेमाल होता रहा। ये है भारत के इतिहास में सबसे बड़ी राजनीतिक धोखाधड़ी यानि डीलिमिटेशन यानि जम्मू कश्मीर विधानसभा सीटों का परिसीमन।
 
यहीं वो हथियार था, जिसके जरिये आंकड़ों में हेर-फेर और फर्जीवाड़ा कर ऐसी विधानसभा का ऐसा व्यूह रचा गया जिसमें जम्मू कश्मीर की बड़ी आबादी के साथ धोखाधड़ी की गयी, ताकि सत्ता छोटी आबादी के पास रहे। डेमोक्रेसी का ऐसा प्रपंच रचा गया, जिसमें माइनोरिटी, मेजोरिटी पर भारी रही। कैसे...? सुनेंगे तो आपके भी होश फाख्ता हो जायेंगे... जेके नाउ एक-एक कर इस राजनीतिक धोखाधड़ी की परतें उधेड़कर आपके सामने रखेगा।
 
 
 
तो सबसे पहले बात Population Data Scam की। लेकिन उससे पहले आप जम्मू कश्मीर की मौजूदा विधानसभा सीटों के तंत्र यानि उसकी composition को समझिये.... जम्मू कश्मीर विधानसभा की 1 अक्टूबर 2019 से पहले 111 सीटें थी। जिसमें 24 सीटें पाकिस्तान अधिक्रांत जम्मू कश्मीर के लिए आरक्षित थीं। यानि सिर्फ 87 सीटों पर ही चुनाव होता था और सत्ता के लिए बहुमत का जादुई आंकड़ा था.. 44 सीट। तो हुआ यूं कि शेख अब्दुल्ला के जमाने से ही एक ऐसी व्यूह रचना की गयी कि सत्ता की चाबी कश्मीर के हाथ में रहे। यानि धोखाधड़ी जम्मू संभाग के साथ हुई, जहां शेख अब्दुल्ला या फिर बाद की कश्मीरी पार्टियों का कोई खास जनाधार नहीं था। जहां कश्मीरी पार्टियों की अलगाववादी राजनीति को कोई भाव देने वाला नहीं था। लिहाजा राज्य की सत्ता पर कश्मीर क्षेत्र और कश्मीरी नेताओं का ही कब्जा रहे ये सुनिश्चित किया गया परिसीमन के जरिये, फर्जी, मनगढंत आंकड़ों के आधार पर। खेल इस कदर खेला गया कि न सिर्फ जम्मू को सत्ता से दूर रखा जाये, बल्कि कश्मीर में भी किस इलाके को वेटेज देनी है और किसको नहीं...ये भी सुनिश्तित किया गया।
 
तो हुआ ये कि 87 में से कश्मीर घाटी को 46 सीटें दी गयी, क्षेत्रफल और आबादी में ज्यादा होने के बावजूद भी जम्मू को मात्र 37 और 4 सीट विशाल क्षेत्रफल वाले लद्दाख को।
 
लेकिन ये खेल कैसे खेला गया... कैसे जम्मू कश्मीर और अन्य भारत के लोगों की आंख में धूल झोंकी गयी। सुनिए...।
 
दरअसल ये खेल हुआ फर्जी आंकड़ों के आधार पर.. ये तो आप जानते ही हैं कि सीटों का परिसीमन मुख्यत: 4-5 आयामों को ध्यान में रखकर किया जाता है।
 
Population
 
Facilities of communication,
 
Connectivity,
 
Geographical features and s
 
Such other relevant factors in each region
 
ऐसे में अगर इन आयामों के आंकडें ही फर्जी गढ़ लिये जायें, ऑन पेपर हरेक मामले में कश्मीर अव्वल दिखा दिया जाये, तो फिर परिसीमन तो मनमाफिक हो ही सकता है।
 
बस यहीं खेल हुआ...। बात सबसे पहले Population डाटा स्कैम की। Population परिसीमन का सबसे महत्वपूर्ण फैक्टर है। ऐसे में अगर हम कश्मीर के किसी भी random जिले की जनसंख्या का सर्वे करें तो एक अंधे को भी जनसंख्या के आंकड़ों में भारी गड़बड़ी नजर आ जायेगी। जब हमने 1981, 2001 और 2011 की जनगणना के आंकड़ों का अध्ययन किया तो पहली ही नजर में भारी गड़बड़ियां सामने दिखाई दीं। कुछ ऐसे unnatural growth patterns सामने आयें... जोकि सामान्य परिस्थितयों में संभव नहीं है। मसलन—
 
 

Table-01

 

District Ganderbal

Village

1981

2001

Variance

Growth %

2001

2011

Variance

Growth %

Barwalah

466

1,228

762

163.51

1,228

1,337

109

8.85

Berna Bugh

1,096

2,232

1136

103.6

2,232

3,006

774

34.6

Forest Block

1,611

13,343

11732

728.2

13,343

16,432

3089

23.1

FrawHaknar

1,185

2,448

1263

106.5

2,448

2,918

470

19.1

Gund Ari

94

666

572

608.5

666

713

47

7.0

Gund Momin

83

899

816

983.1

899

743

-156

-17.35

Kangan

1,837

4,027

2190

119.2

4,027

5,985

1958

48.6

Lari

313

790

477

152.3

790

889

99

12.5

Said PoraHamchi

34

274

240

705.8

274

 

NA

NA

Saloora

1,331

2,248

917

68.89

2,248

 

N.A

N.A

Sonamarg

463

932

469

101.2

932

1,051

119

12.7

SumbalBala

770

1,652

882

114.5

1,652

2,415

763

46.18

Thune

1,700

3,529

1829

107.5

3,529

4,020

491

13.91

Table 1-Population growth data of District Ganderbal, Source- Census Reports

 
 
कश्मीर संभाग के गांदरबल जिले के बरवाला गांव में 1981 से 2001 के बीच 20 सालों में आबादी में करीब 164 फीसदी बढोत्तरी हुई। जबकि 2011 की जनगणना में यानि अगले 10 सालों में मात्र 9 फीसदी। (देखिये टेबल-01) ऐसे ही गांदरबल के फोरेस्ट ब्लॉक में 1981 से 2001 के बीच 728 फीसदी आबादी बढ़ी, जबकि अगले 10 सालों में मात्र 23 फीसदी। ऐसे ही unnatural growth pattern बेरना बाग, गुंड आरि, कंगन, सोनामर्ग समेत तमाम क्षेत्रों में देखने को मिला। जबकि एक इलाके गुंड मोमिन में तो 1981 से 2001 के बीच 983 फीसदी आबादी बढ़ी, लेकिन 2011 की जनगणना के मुताबिक यहां कि जनसंख्या 17.35 फीसदी कम हो गयी। क्यों... ऐसा कैसे संभव है।

Table-02

District Pulwama

Village

1981

2001

Variance

Growth %

2001

2011

Variance

Growth %

Aramola

363

868

505

139.1

868

1,052

184

21.19

Gondi Bagh

136

287

151

111.02

287

354

67

23.3

Gwang

150

434

284

189.3

434

467

33

7.603

Hanji Khilu

137

316

179

130.6

316

272

-44

-13.9

Kochi Pora

158

677

519

328.4

677

903

226

33.38

Krancho

305

743

438

143.6

743

783

40

5.38

MugalPoraCherath

247

511

264

106.8

511

565

54

10.56

Naman

370

796

426

115.13

796

811

15

1.88

Pad Gam Pora

1,326

2,793

1467

110.6

2,793

1,420

-1373

-49.158611

RakhWatalPora

6

136

130

2166.6

136

53

-83

-61%

Sangrama

94

203

109

115.95

203

199

-4

-1.9

SatarGund

298

663

365

122.48

663

793

130

19.60

ShangarPora

117

273

156

133.3

273

446

173

63.36

Tantri Pora

296

609

313

105.7

609

793

184

30.2

Table 2- Population growth data of Dist Pulwama,Source Census Reports

इसी तरह हमें पुलवामा जिले के आंकड़ों में भी भारी अनियमितता दिखाई दीं। (देखिये टेबल-02) गवांग गांव में 1981 से 2001 के बीच 190 फीसदी आबादी बढ़ी, जबकि अगले 10 सालों में मात्र 7.6 फीसदी। वैसे ही कोचीपोरा में 20 सालों में 328 फीसदी आबादी में इजाफा हुआ, लेकिन 10 सालों में मात्र 33 फीसदी। ऐसा कैसे.. कैसे।
 
पदगामपोरा में तो हद ही हो गयी। यहां 1981 से 2001 के बीच 110.6 फीसदी आबादी बढ़ी, लेकिन अगले 10 सालों में लगभग आधी आबादी कम हो गयी। राखवातलपोरा में भी 20 सालों में 2166 फीसदी बढ़ोत्तरी थी, लेकिन 2001 से 2011 के बीच 10 सालों में आबादी फिर -61 फीसदी घट गयी।
 
आमतौर पर देशभर में आबादी के बढ़ने का मुख्य ट्रेंड ये रहा है कि शहरीकरण और विस्थापन के चलते ग्रामीण आबादी कम हुई शहरों की बढ़ी। लेकिन यहां कश्मीर में 1981 से 2001 के बीच आबादी में अंधाधुंध बढ़ोत्तरी हुई। जबकि यहां ध्यान देने गौर करने की बात ये है कि 1990 के दशक में इस्लामिक आतंकवाद के बाद लाखों कश्मीरी हिंदू विस्थापित हुए थे, जिसके चलते 1991 की जनगणना जम्मू कश्मीर में नहीं हो पायी थी। ऐसे में तो कश्मीर की जनसंख्या कम होनी चाहिए थी। बजाए अननेचुरली बढ़ने के। पहली नजर से शक गहराता है कि ये एक तरह का घोटाला था, औऱ फिर 2011 में इस घोटाले के दाग को साफ करने के लिए आबादी को बैलेंस करने की कोशिश भी की गयी। ताकि भविष्य में सवाल न खड़े हों। यहीं वजह है कि 2011 की जनगणना में फिर से अनियमित कमी देखने को मिली।
 
इसका नतीजा ये है कि 2011 की जनगणना के मुताबिक क्षेत्र में भारी अंतर होने के बावजूद भी कश्मीर की आबादी, जम्मू संभाग से कहीं ज्यादा है। आंकड़ों के मुताबिक कश्मीर संभाग में 68,88,475 जनसंख्या है, जबकि जम्मू में 53,50,811। यानि जम्मू की जनसंख्या कश्मीर से 15,37,644 कम है। यहीं जनसंख्या दोनों संभागों में अंतर सीटों के अंतर का भी कारण बताया जाता है।
 
ऐसे में स्पष्ट है कि 2011 जनगणना के आंकड़ें पूरी तरह से फर्जी और अनियमित हैं और जब जनसंख्या में ही अनियमितता हो, तो सीटों की परिसीमन में तो अनिय़मितता, गड़बड़ी सौ फीसदी तय है।
 
तो क्या मौजूदा परिसीमन आयोग को 2011 के आंकड़ों के आधार पर ही परिसीमन का निर्धारण करना चाहिए..?
 
जवाब जनता को, आप सब को पूछना चाहिए.. जारी…