6 फरवरी 1948 - परमवीर चक्र विजेता नायक जदुनाथ सिंह की वीरता की कहानी, जिन्होंने घायल होने के बावजूद अकेले कई दुश्मनों को मार गिराया

पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ जंग की साजिश 1947 में आजादी के समय ही कर ली थी। आजादी के वक्त दोनों देशों के बीच कई मुद्दों के बीच अहम मुद्दा कश्मीर ही था, जो 1947,1965 और 1999 कारगिल युद्ध की वजह था। यही कारण था कि अगस्त 1947 में भारत ने दुनिया के सामने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा करने के साथ ही यह भी घोषणा की थी कि भारत देश पाकिस्तान से किसी भी हमले से जम्मू-कश्मीर की रक्षा करेगा। औपचारिक ऐलान 26 अक्टूबर 1947 के दिन किया गया था, जब जम्मू-कश्मीर रियासत के महाराजा हरि सिंह ने रियासत को भारत में मिलाने का फैसला लिया था। पाकिस्तान ने भारत पर कई मोर्चों पर हमला करना शुरू कर दिया था। उस दौरान नौशेरा सेक्टर में एक ऐसा मोर्चा बन रहा था, जहां हमलावर भारतीय पिकेट के लिए अपना रास्ता बनाने में कामयाब रहे। हालांकि 1 फरवरी 1948 के दिन भारतीय सेना के 50 पैरा ब्रिगेड ने दुश्मन से नौशेरा सेक्टर को वापस जीत लिया और पाकिस्तान को भारी नुकसान का सामना करना पड़ा था। लेकिन 6 फरवरी 1948 के तेनधर की लड़ाई ने जो इतिहास बनाया, वह भारतीय सेना के जवानों की वीरता और नेतृत्व का प्रदर्शन था। उस युद्ध के दौरान नायक जदुनाथ सिंह ने अदम्य साहस और वीरता का परिचय दिया था। उन्होंने अपनी जान की परवाह किये बगैर अपने सैन्य दल को नौशेरा सेक्टर को वापस जीतने में मदद की थी। जीवन परिचयजदुनाथ सिंह ने 21 नवंबर 1916 को उत्तर प्रदेश में शाहजहाँपुर जिले के खजूरी गाँव के किसान परिवार में जन्म लिया था। आठ भाई-बहनों में से एक जदुनाथ को परिवार एक अच्छी शिक्षा प्रदान करने में सक्षम नहीं था। इसलिए उन्होंने गाँव के एक स्कूल में शिक्षा ग्रहण की थी। हालाँकि जदुनाथ सिंह कुश्ती की क्षमताओं के लिए अपने गाँव में काफी जाने जाते थे। जदुनाथ सिंह ब्रिटिश सेना के राजपूत रेजिमेंट में 21 नवंबर 1941 के दिन भर्ती हुये थे। अपना प्रशिक्षण पूरा करने के बाद नायक जदुनाथ सिंह 1 राजपूत में शामिल हो गये और एक बहादुर सैनिक के रूप में अपनी बेहतरीन क्षमताओं को साबित करते हुये उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध में भाग लिया था। सेना में लगभग 6 साल की सेवा के बाद उन्हें अपना पहला प्रमोशन मिला और जुलाई 1947 में लांस नायक का पद मिला था।
तेनधर की लड़ाई, 1948
दिसंबर 1947 में पाकिस्तानी दुश्मनों से लड़ने के लिए नायक जदुनाथ सिंह की 1 राजपूत रेजिमेंट को जम्मू-कश्मीर में तैनात किया गया था। 5 फरवरी 1948 के दिन दुश्मनों ने इस क्षेत्र में तेनधर रिज के पिकेट पर आग लगाकर हमला किया था। उस वक्त पूरे रिज और आसपास की पहाड़ियाँ गोलियों और मोर्टार की आग के नीचे थी। दुश्मन अंधेरे में भारतीय पिकेट के लिए अपना रास्ता बनाने में कामयाब हुये थे। जिसके बाद 6 फरवरी की सुबह पोस्ट पर कब्जा करने के लिए दुश्मनों द्वारा बड़े पैमाने पर हमले किये गये थे। नायक जदुनाथ सिंह जिन्होंने पिकेट नं .2 की कमान संभाली थी। उन्होंने उस दौरान अदम्य साहस और वीरता का परिचय दिया था। उस दौरान वह अपनी टुकड़ी के साथ दुश्मनों को भ्रम में डालने में कामयाब हुये थे। दुश्मन की ओर से किये जा रहे हमले में उनकी टुकड़ी के के चार जवान घायल हो गये थे। लेकिन उन्होंने दूसरे हमले के लिए सेना को फिर से संगठित किया। घायल होने बावजूद टुकड़ी अपने पोस्ट की रक्षा करती रही। इस दौरान जदुनाथ का ब्रेन-गनर गंभीर रूप से घायल हो गया था, इसलिए उन्होंने खुद ब्रेन-गन को संभाला और दुश्मनों पर कार्रवाई जारी रखी। इसके बाद दुश्मनों ने तीसरी बार फिर भारतीय चौकी पर हमला किया। गंभीर रूप से घायल हो चुके जदुनाथ की वीरता ने एक बार फिर दुश्मनों को रूकने पर मजबूर कर दिया था। हालांकि इस दौरान जदुनाथ सिंह के सिर और सीने में दुश्मनों की गोलियां लगने से वीरगति को प्राप्त हो गये थे।
मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित
नायक जदुनाथ सिंह अपनी टुकड़ी में एकमात्र बचे होने के बावजूद दुश्मनों पर अपनी स्टेन-गन से हमला करने के दौरान शहीद हुये थे। दुश्मनों की गोलियों ने उसके सिर और छाती को छेद दिया, जिसके कारण नायक जदुनाथ सिंह ने अपनी अंतिम सांस ली थी। भारतीय सेना के बहादुर सैनिक को उनकी वीरता के लिए मरणोपंरात राष्ट्र के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार "परमवीर चक्र" से सम्मानित किया गया था।