
श्रीनगर के शंकराचार्य मंदिर में गुरुवार को महाशिवरात्रि पर्व पर सैकड़ों श्रद्धालुओं ने बाबा भोलेनाथ के दर्शन किये हैं। महाशिवरात्रि पर्व के लिए शंकराचार्य मंदिर को खास लाइटों से सजाया गया था, जिसे देखने के लिए बीते बुधवार की रात से ही श्रद्धालु मंदिर पहुंच रहे थे। श्रीनगर के ऐतिहासिक शंकराचार्य मंदिर के अलावा हनुमान मंदिर और गणपत्यार मंदिर समेत अन्य मंदिरों को भी सजाया गया है। बता दें कि कश्मीरी पंडितों के लिए महाशिवरात्रि का पर्व एक बड़ा त्योहार होता है। देश के अन्य हिस्सों की अपेक्षा इसे यहां ज्यादा धूमधाम से मनाया जाता है। कश्मीरी पंडित इस पर्व को 'हेरथ' के रूप में मनाते हैं। हेरथ शब्द संस्कृत भाषा से लिया गया है जिसका हिंदी अर्थ हररात्रि या शिवरात्रि होता है। हेरथ को कश्मीरी संस्कृति के आंतरिक और सकारात्मक मूल्यों को संरक्षित रखने का पर्व भी माना जाता है। इसके साथ ही यह लोगों को जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बता दें कि कश्मीरी पंडित महाशिवरात्रि पर भगवान शिव समेत उनके परिवार की स्थापना अपने घरों में करते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से वटुकनाथ घरों में मेहमान बनकर रहते हैं। इसके लिए कश्मीर पंडित एक महीने पहले से ही तैयारियां शुरू कर देते हैं।
जानिए कैसे करते हैं कश्मीरी हिंदू हेरथ पर्व पर पूजा-अर्जना
कश्मीरी पंडित महाशिवरात्रि का पर्व पूरे 3 दिन मनाते हैं। इस खास पूजा के लिए वह कलश सजाते हैं जोकि भगवान शिव के बारातियों के रूप में होते हैं। कई लोग पीतल तो कई लोग मिट्टी के कलश रखते हैं। इसके साथ ही भगवान शिव, पार्वती और बरातियों की पूजा की जाती हैं। कलश और गागर में अखरोट भरे जाते हैं। जिसे चार वेदों का प्रतीक माना जाता है। इसके साथ ही इस दिन भगवान शिव को रूप में सोनिपतुल की पूजा होती है। इसके बाद भगवान शिव को पंचामृत से स्नान कराने के बाद महिमनापार के साथ बेलपत्र, फूल, धतूरा आदि चढ़ाते हैं। इसके बाद धूप-दीपक करने के बाद कलश में रखे हुए अखरोट को प्रसाद के रूप में सबको बांटते हैं। वहीं शिवरात्रि की रात को घर का एक सदस्य देवताओं को खिलाए खाने को छिपकर नीचे डालकर आता है। ऐसा माना जाता है कि उस समय सभी देवता घर में प्रवेश कर चुके होते हैं। अगले दिन सभी एक-दूसरे को हेरथ मुबारक कहकर शिवरात्रि की शुभकामनाएं देते हैं। शिवरात्रि के चौथे दिन को डून मावस कहते हैं। इस दिन चावल के आटे की रोटियां, अखरोट और सब्जी में कमल ककड़ और गांठगोभी मुख्य होती हैं। इसे जम्मू-कश्मीर में मोंजी और नदरू नाम से जानते हैं।

photo courtesy - Aditya Raj Kaul