सिंधु जल समझौता: नई दिल्ली में 23-24 मार्च को होगी भारत-पाकिस्तान सिंधु जल कमीशन की बैठक
भारत
पाकिस्तान के बीच 1960 में हुए सिंधु जल समझौते की इस साल की बैठक 23-24
मार्च को होगी। जानकारी के मुताबिक ये बैठक नई दिल्ली में होगी। दिल्ली में
होने वाली इस बैठक में भारतीय अधिकारियों के दल का प्रतिनिधित्व भारतीय
कमिश्नर प्रदीप कुमार सक्सेना करेंगे। वहीं पाकिस्तानी दल का नेतृत्व सैयद
मोहम्मद मेहर अली शाह करेंगे। बता दें कि सिंधु समझौते कमीशन कि पिछली
बैठक ढाई साल पहले पाकिस्तान के लाहौर शहर में अगस्त 2018 में हुई थी। वहीं
आगामी 23-24 मार्च को होने वाली यह बैठक भारत-पाकिस्तान सिंधु जल समझौती
की 116 वीं बैठक होगी।
गौरतलब
है कि पाकिस्तान की तरफ से बढ़ते आतंकवाद के बीच सितंबर 2016 में
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि “Blood and Water Cannot Flow
Together” मतलब खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते हैं।
क्या है सिंधु जल समझौता ?
1947
में देश के विभाजन के समय सिंधु और उसकी सहायक नदियों के मुख्य हिस्सा
भारत में आ गया था। जिसके बाद 1 अप्रैल 1948 को भारतीय पंजाब ने पाकिस्तान
को जाने वाली नहरों का पानी रोक दिया ताकि पूर्वी पंजाब के असिंचित
क्षेत्रों के लिये सिंचाई व्यवस्था की जा सके। इससे पाकिस्तानी पंजाब
क्षेत्र में पानी की भयानक तंगी के हालात पैदा हो गये थे। इसे देखते हुये
30 अप्रैल 1948 को पाकिस्तानी पंजाब को पानी बहाल कर दिया था। 4 मई 1948 को
इस मुद्दे पर बातचीत के लिये एक बैठक बुलाई गई थी। इस सम्मेलन में एक
समझौता हुआ, जिसमें पाकिस्तान ने भारतीय पंजाब के असिंचित क्षेत्रों के
विकास के लिये पानी की जरूरत की बात स्वीकार की और पाकिस्तानी पंजाब के
लिये पानी धीरे-धीरे कम करने पर सहमति जताई। लेकिन यह समाधान स्थायी साबित
नहीं हो सका। पाकिस्तान ने मामले को अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण में ले जाने
का सुझाव दिया, जिसको भारत ने अस्वीकार कर दिया। 1951 में प्रधानमंत्री
नेहरू ने टेनसी वैली अथॉरिटी के पूर्व प्रमुख डेविड लिलियंथल को भारत
बुलाया। लिलियंथल बाद में पाकिस्तान भी गये और वहां से वापस लौटकर अमेरिका
चले गये। अमेरिका जाकर उन्होंने भारत-पाकिस्तान जल विवाद के ऊपर एक लेख
लिखा, और विश्व बैंक से इस मामले में दखल देने के लिए अनुरोध किया। जिसके
बाद विश्व बैंक अध्यक्ष यूजीन रॉबर्ट ब्लेक ने भारत और पाकिस्तान के बीच
मध्यस्थता करना स्वीकार किया। इसके बाद भारत और पाकिस्तान के बीच बैठकों का
सिलसिला शुरु हो गया। हालांकि उस वक्त दोनों देशों ने यह मध्यस्थता तीन
सिद्धान्तों के आधार पर स्वीकार किया था।
1. सिंधु जल तंत्र के जल संसाधन वर्तमान और भविष्य की दोनों देशों की जरूरतों के लिये पर्याप्त हैं।
2.
पूरे सिंधु जल तंत्र क्षेत्र को एक इकाई मानकर, सहकारिता पूर्वक इन जल
संसाधनों को इस तरह विकसित किया जाये ताकि पूरे सिंधु जल तंत्र क्षेत्र का
आर्थिक विकास आगे बढ़ाया जा सके।
3.
सिंधु जल तंत्र क्षेत्र के जल संसाधनों के विकास और उपयोग की समस्या को
राजनीतिक धरातल से अलग हटकर व्यावहारिक धरातल पर हल किया जाये। इसमें पिछली
बातचीतों और राजनैतिक मुद्दों को दरकिनार रखा जाये।
इस
दौरान बैठकों का दौर करीब 1 दशक तक चला और आखिरकार 19 सितंबर 1960 को
कराची में भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति
अयूब खान ने सिंधु नदी समझौते पर हस्ताक्षर किये थे।