देशविरोधी 'कश्मीर की आज़ादी' वाले 'प्रोजेक्ट' को लेकर सवालों के घेरे में TISS की साख! सोशल मीडिया तीखी आलोचना
    22-जून-2021
 
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टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टीस) हैदराबाद की एक थीसिस में जम्मू-कश्मीर को लेकर देश विरोधी प्रोपेगेंडा फैलाने की कोशिश की गई है। इतना ही नहीं भारतीय सेना और जम्मू-कश्मीर के इतिहास को लेकर भी गलत तथ्यों को फैलाने की कोशिश की गई है। दरअसल इस थीसिस को टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टीस) हैदराबाद कैंपस की ‘वीमेंस स्टडीज’ में एमए करने वाली अनन्या कुंडू ने तैयार किया है। वहीं ‘स्कूल और जेंडर स्टडीज’ की अस्सिस्टेंट प्रोफेसर डॉक्टर नीलांजना रे ने इसे तैयार करने में अनन्या कुंडू की गाइड के तौर पर मदद की थी। वहीं सोशल मीडिया पर लगातार यूजर्स प्रोफेसर और छात्रा के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रहे हैं।
 
 



इस रिसर्च के माध्यम से एक प्रोपेगेंडा फैलाने की कोशिश की गई है। इस रिसर्च में जम्मू-कश्मीर को ‘भारत के कब्जे वाला जम्मू कश्मीर कहा गया है,वहां पर सैन्यकरण, संघर्ष और लॉकडाउन के दौरान घरेलू हिंसा’ पर बातें की गई हैं। इसमें भारत पर भी कश्मीरियों की आवाज़ दबाने का आरोप लगाया गया है। वहीं कश्मीरी महिलाओं को ‘पितृसत्तात्मक और सोसाइटी’ से पीड़ित बताया गया है। इसके अलावा बिना किसी तथ्य के लिखा गया है कि आज़ादी के समय बड़ी संख्या में कश्मीरी पाकिस्तान में जाना चाहते थे। हालांकि चौतरफा विरोध प्रदर्शन के बाद  टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टीस) प्रशासन ने इस मामले को लेकर जांच के आदेश दिए हैं।

थीसिस में जम्मू-कश्मीर को लेकर एक प्रोपेगेंडा फैलाने की कोशिश

इस थीसिस के मुताबिक  जम्मू कश्मीर को भारतीय सोच ने ‘नेशनलिस्ट प्राइड’ और गर्मी की छुट्टियों का पर्यटन स्थल का विषय बना दिया है। इस थीसिस में 2019 में अनुच्छेद-370 के प्रावधानों को निरस्त किए जाने के दौरान लगे कर्फ्यू की बात करते हुए इसके असर पर बात करने का दावा किया गया है। लेकिन थीसिस पढ़ने पर समझ में आएगा कि इसे एक प्रोपेगेंडा के तहत तैयार किया गया है। थीसिस के मुताबिक अनुच्छेद 370 निरस्त होने के बाद जम्मू कश्मीर में अब तक का सबसे बड़ा ‘कम्युनिकेशन ब्लैकआउट’ हुआ था। लेकिन गौर करने वाली बात ये है कि थीसिस में कश्मीर के इतिहास की बात करते समय वहां के हिन्दुओं पर हुए अत्याचार का जिक्र नहीं किया गया है। वहीं सिख और डोगरा राजाओं को विदेशी बताया गया है। डोगरा राजाओं पर कश्मीरियों की चिंता ना करते हुए जनता से ज्यादा टैक्स लेने के आरोप लगाए गए हैं। राजा हरि सिंह को निरंकुश बताते हुए छात्रा अनन्या कुंडू ने पाकिस्तान की मदद से जम्मू कश्मीर को भारत से अलग करने की कोशिश करने वालों को ‘स्वतंत्रता सेनानी’ बताया है। पाकिस्तान अधिक्रांत जम्मू-कशमीर (पीओजेके) को पाकिस्तान द्वारा दिए गए नाम ‘आज़ाद कश्मीर’ को अनन्या कुंडू ने ‘विदेशी सत्ता के खिलाफ जनता की लड़ाई का प्रतीक’ करार दिया है। जम्मू-कश्मीर के अंतिम राजा हरि सिंह को लेकर छात्रा अनन्या ने बेबुनियादी आरोप लगाते हुए कहा है कि एक ऐसे राजा  जो खुद हार कर भाग रहा था, उसने एक पूरे क्षेत्र और वहां की जनता का विलय एक ऐसे देश में कर दिया था। जिसका उस पर कोई अधिकार ही नहीं था। भारतीय सेना ने पाकिस्तानी फौज और स्वतंत्रता सेनानियों के साथ युद्ध कर के एक बड़े क्षेत्र पर कब्ज़ा कर लिया। जम्मू कश्मीर की स्वायत्तता को सुरक्षित रखने का भारत का कोई इरादा ही नहीं था, क्योंकि इसने जनमत संग्रह का वादा पूरा नहीं किया। थीसिस में ध्यान देने वाली बात है कि जनमत संग्रह से भारत नहीं, पाकिस्तान भागा था। भारत को कश्मीर का ‘कॉलोनाइजर’ बताया गया है। यानी  ब्रिटिश आक्रांताओं से भारत की तुलना की गई है। थीसिस में लिखा है कि भारत ने चुनाव परिणाम में गड़बड़ी की, क्रूर हिंसा का प्रयोग किया और क्षेत्र पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए विरोधी आवाज़ों को दबा दिया है। 1986 के बाद से इस आंदोलन को समर्थन मिलने लगा। 1987 में कॉग्रेस ने चुनाव में गड़बड़ी की, जिससे कश्मीरी नाराज़ हुए थे। थीसिस में नागरिकों की हत्या, रेप, शोषण और अवैध गिरफ़्तारी की बात करते हुए जबरन भारतीय सेना पर इन सबका आरोप मढ़ा गया है। मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप लगाए गए हैं। भारतीय सेना पर कुछ तत्वों को प्रशिक्षण देकर उनसे कश्मीरियों पर अत्याचार कराने का आरोप लगाया गया है। बता दें कि थीसिस के नाम पर भारतीय सेना के खिलाफ ऐसे शब्दों का प्रयोग किया गया है, जो शायद पाकिस्तान भी करने से डरता है। इतना ही नहीं थीसिस में लिखा है कि न्यायपालिका के अभाव में ऐसे वारदात छिपे रह गए। इसके अलावा भारत के नागरिकों को कश्मीरियों के खिलाफ ‘मानवाधिकार हनन’ पर चुप्पी साधने का जिम्मेदार ठहराया गया है।

थीसिस में कहा गया है कि भारत ने कश्मीर पर कब्जा करने के लिए यहाँ के आवाजों को दबाया और नैरेटिव को नियंत्रित किया है। कश्मीर की कहानी कश्मीर नहीं, भारत ने लिखी है। आज जिस कश्मीर को हम जानते हैं, वो भारतीय सोच के हिसाब से ही है। महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा हुई। पितृसत्तात्मक भारतीय सेना कश्मीरी समाज को तोड़ने के लिए महिलाओं के शरीर को निशाना बनाती है। ये सैन्यीकरण और युद्ध का परिणाम ही है कि महिलाओं के खिलाफ यौन और शारीरिक हिंसा आम हो गई। भारत ने अगस्त 2019 में अनुच्छेद-370 हटा कर उसका विशेष राज्य का दर्ज छीन लिया। फिर लंबा कम्यूनिकेशन ब्लैकआउट हुआ। फिर कोरोना आपदा आई और वहां की महिलाओं के हालात और भी बदतर हो गए हैं।


 थीसिस में भारतीय सेना पर ‘आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पॉवर्स ऐक्ट ऑफ 1958’ का उल्लंघन करने का आरोप लगाते हुए लिखा है कि जिसने भी भारत के खिलाफ बोलने की कोशिश की, उसके यहाँ अवैध सैन्य छापेमारी हुई, यौन हिंसा हुई, गिरफ़्तारी हुई, हत्या हुई और उन्हें प्रताड़ित किया गया है। वहां आतंकियों के खिलाफ सुरक्षा बलों को मिले विशेषाधिकार का भी विरोध किया गया है। लॉकडाउन के दौरान घरेलू हिंसा बढ़ने की बात करते हुए इसे भी भारत सरकार के मत्थे ही मढ़ दिया गया है। इस रिसर्च को महिलाओं की दुर्दशा और उनके साथ होने वाली घरेलू हिंसा के नाम पर तैयार किया गया है। लेकिन इस थीसिस को  पढ़ने के बाद यह साफ हो जाता है कि यह एक पाकिस्तानी प्रोपेगेंडा से प्रभावित थिसिस है। क्योंकि इसमें वो सब कुछ है जो पाकिस्तान सोची समझी साजिश के तहत एक गलत तथ्य फैलाने की कोशिश करता है।  


बता दें कि टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टीस) का मुख्य कैम्पस मुंबई में है। इसकी स्थापना 1936 में ‘सर दोराबजी टाटा स्कूल ऑफ सोशल वर्क’ के रूप में हुई थी। इसे 1964 में भारत सरकार ने ‘डीम्ड यूनिवर्सिटी’ का दर्जा दिया था। सामाजिक कार्य के लिए स्थापित ये भारत का पहला शैक्षिक संस्थान है। हैदराबाद में भी टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टीस) का एक कैंपस है।