जन्मदिन विशेष; कारगिल योद्धा कैप्टन विक्रम बत्रा की शौर्यगाथा से जुड़े तथ्य, “ये दिल मांगे मोर”
   07-जून-2021

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करगिल युद्ध भारतीय सैनिकों की बहादुरी का गौरवशाली अध्याय है। हजारों मीटर की ऊंचाई पर कब्जा जमाए बैठे दुश्मनों से लोहा लेना ही बहुत मुश्किल काम था लेकिन भारतीय सैनिकों ने अदम्य बहादुरी और शक्ति का प्रदर्शन करते हुए न सिर्फ करगिल को दुश्मन के कब्जों से मुक्त कराया बल्कि पाकिस्तानी घुसपैठियों को शर्मनाक शिकस्त भी दी। करगिल के युद्ध में जिन भारतीय सैनिकों ने अदम्य साहस का परिचय दिया, उनमें एक कैप्टन विक्रम बत्रा भी शामिल थे। कैप्टन विक्रम बत्रा का आज जन्मदिवस है।
 
करगिल के शेरशाह के नाम से प्रसिद्ध कैप्टन विक्रम बत्रा ने जून 1996 में इंडियन मिलिट्री अकैडमी जॉइन की। दिसंबर 1997 में वह सोपोर, जम्मू-कश्मीर में 13 जेएके राइफल्स में लेफ्टिनेंट के तौर पर शामिल हुए। परिवार में उनको 'लव' के नाम से पुकारा जाता था।
 
1 जून, 1999 को उनकी यूनिट करगिल सेक्टर की ओर कूच कर गई जहां युद्ध जैसी स्थिति पैदा हो गई थी। उनको जो पहला काम सौंपा गया था, वह 17000 फीट की ऊंचाई पर स्थित पॉइंट 5140 को दुश्मन के कब्जे से छुड़ाना था।
 
वहां पहुंचने पर रेडियो पर एक आतंकी कमांडर से उनकी तीखी बहस हुई। दुश्मन के कमांडर ने उनको चुनौती दी, 'तुम क्यों आए हो शेरशाह, तुम वापस नहीं जा पाओगे।' कैप्टन विक्रम भी भला कहां चूकने वाले थे। उन्होंने पूरे आत्मविश्वास के साथ जवाब दिया, 'ठीक है! एक घंटे बाद देखते हैं, कौन ऊपर रहता है।'
 
 


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थोड़े ही देर के अंदर कैप्टन विक्रम बत्रा और उनकी टुकड़ी ने दुश्मन के 8 सैनिक मार गिराए और एक हेवी-एंटी एयरक्राफ्ट मशीन गन को जब्त कर लिया। इसके साथ ही मिशन पॉइंट 5140 सफल हो गया। पॉइंट 5140 की जीत के तुरंत बाद उन्होंने अपने कमांडिंग ऑफिसर से रेडियो पर बात की और गर्व से कहा, 'यह दिल मांगे मोर'।
 
'यह दिल मांगे मोर' करगिल युद्ध की कैच लाइन बन गया।
पॉइंट 5140 की जीत के साथ ही श्रीनगर-लेह राजमार्ग साफ हो गया जिससे पॉइंट 5100, 4700 जंक्शन और टाइगर हिल पर कब्जे का रास्ता आसान हो गया।
 
कुछ दिनों के आराम के बाद उनको पॉइंट 4750 पर कब्जा करने के लिए भेजा गया जहां उनको जबर्दस्त लड़ाई का सामना करना पड़ा। दुश्मन के एक अधिकारी ने विक्रम को चुनौती दी, 'शेरशाह, तुम्हारा शव उठाने के लिए कोई नहीं बचेगा।' इसके जवाब में कैप्टन विक्रम ने कहा, 'तुम हमारी चिंता मत करो, अपनी सुरक्षा के लिए दुआ करो।' थोड़े ही समय में पॉइंट 4750 पर भी भारतीय सैनिकों का कब्जा हो गया।
 
इसके बाद उनको 17000 फीट की ऊंचाई पर स्थित पॉइंट 4875 पर कब्जा करने की जिम्मेदारी सौंपी गई। वह अपनी टुकड़ी के साथ मिशन पर रवाना हुए। इस मिशन के दौरान दुश्मन के कई सैनिक मारे गए। 5 जुलाई, 1999 को पॉइंट 4875 पर तिरंगा फहरा दिया गया। दुश्मन ने 7 जुलाई, 1999 को जोरदार जवाबी हमाल किया जिसका कैप्टन विक्रम बत्रा ने भी जोरदार जवाब दिया। इस मुहिम के दौरान उनके जूनियर ऑफिसर लेफ्टिनेंट नवीन घायल हो गए। उनके पैर बुरी तरह जख्मी हो गए थे।
 
अपने जूनियर नवीन को बचाने के लिए कैप्टन विक्रम आगे आए लेकिन नवीन ने जिद की कि उनको ही लड़ने दिया जाए। इस पर विक्रम बत्रा ने कहा, 'तू बाल-बच्चेदार है, हट जा पीछे।'
 

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इस मुहिम के दौरान दुश्मन के हमले में कैप्टन विक्रम बत्रा शहीद हो गए। जब वह आखिरी सांस ले रहे थे तो उनके मुंह से 'जय माता दी' निकल रहा था। दम तोड़ने से पहले उन्होंने दुश्मन के 5 और सैनिकों को मार गिराया।
 
उनकी गर्लफ्रेंड का डिंपल नाम था। 24 वर्षीय कैप्टन विक्रम बत्रा करगिल युद्ध से वापस आने के बाद उनसे शादी करने वाले थे लेकिन जब वह करगिल से वापस आए तो तिरंगे में लिपटकर। यह कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। डिंपल ने आजीवन शादी न करने का निर्णय लेते हुए पूरी जिंदगी शहीद विक्रम बत्रा की याद में बिताने का फैसला लेकर अपनी प्रेम कहानी को अमर कर दिया। 1995 में चंडीगढ़ की पंजाब यूनिवर्सिटी में विक्रम और डिंपल की पहली मुलाकात हुई थी। 4 सालों के उस खूबसूरत रिश्ते में दोनों ने एक दूसरे के साथ काफी कम समय बिताया, उस रिश्ते के एहसास को शब्दों में बयां करने की कोशिश में आज भी डिंपल की आंखें भर आती हैं। एक न्यूज वेबसाइट को इंटरव्यू देते हुए डिंपल ने बताया था कि जब एक बार उन्होंने विक्रम से शादी के लिए कहा तो विक्रम ने चुपचाप ब्लेड से अपना अंगूठा काटकर उनकी मांग भर दी थी।
 
करगिल युद्ध के दौरान आर्मी चीफ रहे जनरल वेद प्रकाश मलिक पीवीएसएम, एवीएसएम जब विक्रम बत्रा के घर गए थे उन्होंने उनके साहस की तारीफ की थी। जनरल मलिक ने विक्रम बत्रा के पिता से कहा था, 'अगर यह लड़का करगिल से जिंदा लौटा होता तो 15 सालों में वह मेरे पद पर होता।'
 
(लेखक-  पवन अवस्थी जी!  )