जयंती विशेष; 'नौशेरा के शेर' ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान की कहानी, पाकिस्तान ने रखा था 50 हजार का इनाम
   15-जुलाई-2021

 Brigadier Mohammad Usman
 
पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ जंग की साजिश 1947 में आजादी के समय ही कर ली थी। आजादी के वक्त दोनों देशों के बीच कई मुद्दों के बीच अहम मुद्दा कश्मीर ही था, जो 1947,1965 और 1999 कारगिल युद्ध की वजह था। यही कारण था कि अगस्त 1947 में भारत ने दुनिया के सामने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा करने के साथ ही यह भी घोषणा की थी कि भारत देश पाकिस्तान से किसी भी हमले से जम्मू-कश्मीर की रक्षा करेगा। आजादी के तुरंत बाद से ही पाकिस्तान ने भारत पर कई मोर्चों पर हमला करना शुरू कर दिया था। उस दौरान नौशेरा सेक्टर में एक ऐसा मोर्चा बन रहा था, जहां हमलावर भारतीय पिकेट के लिए अपना रास्ता बनाने में कामयाब रहे। हालांकि 1 फरवरी 1948 के दिन भारतीय सेना के 50 पैरा ब्रिगेड ने दुश्मन से नौशेरा सेक्टर को वापस जीत लिया और पाकिस्तान को भारी नुकसान का सामना करना पड़ा था। अक्टूबर 1947 में जब क़बाइलियों ने पाकिस्तानी सेना की मदद से कश्मीर पर हमला बोला था, तब भारत ने उन्हें कने के लिए अपने सैनिकों को भेजने का फ़ैसला किया था। लेकिन 7 नवंबर को कबाइलियों ने राजौरी पर क़ब्ज़ा कर लिया था और बहुत बड़ी संख्या में महिलाओं का बलात्कार और वहाँ रहने वाले लोगों का क़त्लेआम किया था। हालांकि 50 पैरा ब्रिगेड के कमांडर ब्रिगेडियर उस्मान नौशेरा में डटे तो हुए थे, लेकिन पाकिस्तानी क़बाइलियों ने उसके आसपास के इलाक़ों ख़ासकर उत्तर में नियंत्रण बना रखा था। उस्मान कबालइलियों को हटाकर चिंगास तक का रास्ता साफ़ कर देना चाहते थे, लेकिन उनके पास पर्याप्त संख्या में सैनिक नहीं थे। इसलिए उन्हें सफलता नहीं मिल पाई थी।
 

 Brigadier Mohammad Usman 
नौशेरा पर हमला
 
लेकिन उसके बाद 24 दिसंबर को क़बाइलियों ने अचानक हमला कर झंगड़ पर क़ब्ज़ा कर लिया था, इसके बाद उनका अगला लक्ष्य नौशेरा था। 4 जनवरी, 1948 के दिन उस्मान ने अपनी बटालियन को आदेश दिया कि वो झंगड़ रोड पर भजनोआ से पाकिस्तानी क़बाइलियों को हटाकर रास्ता साफ करना शुरू करे। हालांकि भारतीय सेना ने ये हमला बग़ैर तोपो के किया था। लेकिन ये असफल हो गया और क़बाइली अपनी जगह से टस से मस नहीं हुए थे। लेकिन कबाइलियों ने उसी शाम नौशेरा पर हमला बोल दिया था। हालांकि उस्मान के नेतृत्व में भारतीय सैनिकों ने उस हमले को नाकाम कर दिया था। दो दिन बाद कबाइलियों ने उत्तर पश्चिम से दूसरा हमला किया था। लेकिन भारतीय जवानों ने फिर से उनके हमले को नाकामयाब कर दिया था। लेकिनफिर उसी शाम क़बाइलियों ने 5000 लोगों और तोपखाने के साथ एक और हमला नौशेरा पर किया था। ब्रिगेडियर उस्मान के नेतृत्व में सैनिकों ने अपना पूरा ज़ोर लगाकर तीसरी बार भी क़बाइलियों को नौशेरा पर कब्ज़ा नहीं करने दिया था।
 
जनवरी 1948 में पश्चिमी कमान का चार्ज लेने के बाद लेफ़्टिनेंट जनरल करियप्पा ने मेजर एसके सिन्हा के साथ नौशेरा का दौरा किया था। इस दौरे के दौरान करियप्पा ने ब्रिगेडियर उस्मान से कहा कि मैं चाहता हूँ कि आप नौशेरा के पास के सबसे ऊँचे इलाके कोट पर क़ब्ज़ा करें, क्योंकि दुश्मन वहां से नौशेरा पर हमला करने की योजना बना रहा है। कोट नौशेरा से 9 किलोमीटर उत्तर पूर्व में था। वहीं ये क़बाइलियों के लिए एक तरह से ट्राँसिट कैंप का काम करता था, क्योंकि वो राजौरी से सियोट के रास्ते में था। ब्रिगेडियर उस्मान ने कोट पर क़ब्ज़ा करने के ऑपरेशन को 'किपर' का नाम दिया था। बता दें कि लेफ्टिनेंट जरनल करियप्पा इसी नाम से सैनिक महकमों में जाने जाते थे। जिसके बाद 1 फरवरी 1948 को ब्रिगेडियर उस्मान ने कोट पर दो बटालियनों के ताथ दोतरफ़ा तरफ से हमला किया था। इस दौरान 3 पैरा ने दाहिनी तरफ़ से पथरडी और उपर्ला डंडेसर पर चढ़ाई की थी, वहीं 2/2 पंजाब ने बाईं तरफ़ से कोट पर हमला किया था। वहीं वायुसेना ने जम्मू एयरबेस से उड़ान भर कर एयर सपोर्ट दिया था। इस दौरान क़बाइलियों को ये आभास दिया गया कि हमला वास्तव में झंगड़ पर हो रहा है, इसके लिए घोड़े और खच्चरों का इंतज़ाम किया गया है। सभी भारतीय सैनिकों ने श्री छत्रपति शिवाजी महराज की जय' बोलते हुए क़बाइलियों पर हमला शुरू किया। 1 फरवरी की शाम तक कोट पर भारतीय सेना का दबदबा था। लेकिन बटालियन ने गाँव के घरों की अच्छी तरह से तलाशी नहीं ली थी और कुछ क़बाइलियों को पहचान नहीं पाए थे। इसी कारण थोड़ी देर के बाद कबाइलियों ने जवाबी हमला कर दिया था और आधे घंटे के अंदर क़बाइलियों ने कोट पर दोबारा क़ब्ज़ा कर लिया था। लेकिन उस्मान के नेतृत्व बनी रणनीति ने कबाइलियों को फिर से भागने और मरने पर मजबूर कर दिया था। क्योंकि उस्मान ने दो कंपनियां रिज़र्व में रख छोड़ी थीं। जिसके बाद उस्मान ने उन्हें तुरंत आगे बढ़ाया और भारी गोलाबारी और हवाई बमबारी के बीच रात के 10 बजे कोट पर भारतीय सेना ने दोबारा क़ब्ज़ा कर लिया गया था। इस लड़ाई में भारतीय सेना ने 156 कबाइलियों को मार गिराया था। वहीं 2/2 पंजाब के 7 जवान शहीद हुए थे।
 

 Brigadier Mohammad Usman
 
इसके बाद 6 फ़रवरी, 1948 के दिन कश्मीर युद्ध की सबसे महत्वपूर्ण लड़ाई लड़ी गई थी। क्योंकि उस दिन सुबह 6 बजे उस्मान कलाल पर हमला करने वाले थे, लेकिन तभी उन्हें पता चला कि कबाइली उसी दिन फिर से नौशेरा पर हमला करने वाले हैं। इस हमले के लिए 11 हजार क़बाइलियों का गुट शामिल है। कबाइलियों की तरफ से 20 मिनट तक गोलाबारी के बाद क़रीब 3 हजार कबाइलियों ने तेनधर पर हमला किया था और लगभग इतने ही लोगों ने कोट पर हमला किया था। इसके अलावा लगभग 5 हजार कबाइलियों ने कंगोटा और रेदियाँ को अपना निशाना बनाया था। 1 राजपूत की पलटन ने इस हमले को रोकने की पूरी कोशिश की थी। लेकिन 27 लोगों की टीम के करीब 24 जवान शहीद हो गए थे। वहीं बचे हुए तीन सैनिकों ने तब तक लड़ना जारी रखा था, जब तक उनमें से दो सैनिक शहीद नहीं हो गए। आखिरी में सिर्फ़ एक सैनिक बचा था। तभी वहां दूसरी बटालियन पहुंच गई थी और उन्होंने स्थिति को बदल दिया था। अगर भारतीय सैनिकों को वहाँ पहुंचने में कुछ मिनटों की भी देरी हो जाती, तो तेनधार भारत के हाथ से चला जाता। नौशेरा की लड़ाई के बाद ब्रिगेडियर उस्मान की चर्चा भारत में हर जगह होने लगी थी। जेएके डिवीज़न के जनरल ऑफ़िसर कमाँडिंग मेजर जनरल कलवंत सिंह ने एक प्रेस कान्फ़्रेंस कर नौशेरा की सफलता का पूरा श्रेष्य 50 पैरा ब्रिगेड के कमाँडर ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान को दिया था। हालांकि जब उस्मान को इसका पता चला तो उन्होंने कलवंत सिंह को अपना विरोध प्रकट करते हुए पत्र लिखा कि "इस जीत का श्रेय सैनिकों को मिलना चाहिए, जिन्होंने इतनी बहादुरी से लड़कर देश के लिए अपनी जान दी है। ना कि सिर्फ ब्रिगेड के कमांडर के रूप में उन्हें मिले।
 
10 मार्च, 1948 को मेजर जनरल कलवंत सिह ने झंगड़ पर पुन: क़ब्ज़ा करने के आदेश दिया था। जिसके बाद जब ब्रिगेडियर उस्मान ने अपने सैनिकों को आदेश दिया था कि पूरी दुनिया की निगाहें आप के ऊपर हैं। हमारे देशवासियों की उम्मीदें और आशाएं हमारे प्रयासों पर लगी हुई हैं। हमें उन्हें निराश नहीं करना चाहिए। हम बिना डरे झंगड़ पर क़ब्ज़ा करने के लिए आगे बढ़ेंगे। इस अभियान को 'ऑपरेशन विजय' का नाम दिया गया था। इसको 12 मार्च को शुरू होना था, लेकिन भारी बारिश के कारण इसको दो दिनों के लिए टाल दिया गया था। जब भारतीय सैनिकों ने क़बाइलियों के बंकर में पहुंचे थे, तो उन्होंने पाया कि वहाँ खाना पक रहा था और केतलियों में चाय उबाली जा रही थी। जिसके बाद भारतीय सेना की कार्रवाई के साथ ही 18 मार्च को झंगड़ भारतीय सेना के नियंत्रण में आ गया था।
 
ब्रिगेडियर उस्मान हर शाम साढ़े पाँच बजे अपने जवानों के साथ बैठक किया करते थे। लेकिन 3 जुलाई 1948 के दिन बैठक आधे घंटे पहले बुलाई गई और जल्दी समाप्त हो गई थी। जिसके बाद शाम 5.45 बजे क़बाइलियों ने ब्रिगेड मुख्यालय पर गोले बरसाने शुरू कर दिए थे। अचानक उस्मान ने मेजर भगवान सिंह को आदेश दिया कि वो तोप को पश्चिम की तरफ़ घुमाएं और प्वाएंट 3150 पर निशाना लगाए। भगवान ये आदेश सुन कर थोड़ा चकित हुए थे, क्योंकि दुश्मन तो दक्षिण की तरफ़ से फ़ायर कर रहे थे। लेकिन उन्होंने उस्मान के आदेश का पालन करते हुए अपनी तोपों के मुँह उस तरफ़ कर दिए थे। वहाँ पर कबाइलियों की 'आर्टलरी ऑब्ज़रवेशन पोस्ट' थी। उस्मान के निर्देश का नतीजा ये हुआ कि वहाँ से फ़ायर आना बंद हो गया था। गोलाबारी रुकने के बाद सिग्नल्स के लेफ़्टिनेंट राम सिंह अपने साथियों के साथ नष्ट हो गए एरियल्स की मरम्मत करने लगे थे। उस्मान भी ब्रिगेड कमांड की पोस्ट की तरफ़ बढ़ने लगे थे। लेकिन जब उस्मान कमांड पोस्ट के दरवाज़े पर पहुंचकर सिग्नल वालों से बात कर रहे थे। तभी एक गोला पास की चट्टान पर गिरा और उसके उड़ते हुए टुकड़े ब्रिगेडियर उस्मान के शरीर में धँस गए थे और वह शहीद हो गए थे। उस दिन पूरी रात गोलाबारी हुई और झंगड़ पर करीब 800 गोले दागे गए थे।
 
जीवन परिचय
 
 
भारतीय सेना के ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान का जन्म 15 जुलाई, 1912 को ब्रिटिश भारत के आजमगढ़, उत्तर प्रदेश में हुआ था। मोहम्मद उस्मान को 'नौशेरा के शेर के' रूप में जाने जाते है। द्वितीय विश्व युद्ध में अपने नेतृत्व के लिए प्रशंसा पाने वाले ब्रिगेडियर उस्मान उस 50 पैरा ब्रिगेड के कमांडर थे, जिसने नौशेरा में जीत हासिल की थी। मोहम्मद उस्मान भारत की आज़ादी के महज 11 महीने बाद पाकिस्तानी घुसपैठियों से जंग लड़ते हुए शहीद हो गए थे। वह भारतीय सेना के सर्वाधिक प्रतिष्ठित और साहसी सैनिकों में से एक थे। उन्हें महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था।