
अफगानिस्तान में तालिबानी शासन होने के बाद कयास लगाया जा रहा था कि जम्मू-कश्मीर का माहौल खराब करने के लिए तालिबान आतंकी संगठनों की मदद करेगा। लेकिन तालिबान ने एक बार फिर कहा है कि जम्मू-कश्मीर भारत का आतंरिक और द्विपक्षीय मसला है। हालांकि भारत ने इसके बावजूद कश्मीर में सुरक्षा व्यवस्था को ज्यादा सचेत करने का निर्णय लिया है। क्योंकि तालिबान पर भरोसा करना मुश्किल है। कई खुफिया रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तानी आईएसआई भी तालिबान की मदद कर रहा है। दरअसल अफगानिस्तान के काबुल समेत अन्य शहरों में तालिबान के साथ पाकिस्तानी आतंकी समूहों लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद समेत कुछ अन्य संगठनों के आतंकियों की मौजूदगी की भी सूचना मिली है। इतना ही नहीं इन आतंकी संगठनों ने काबुल समेत कई अन्य जगहों पर चेक पोस्ट भी बनाए हैं। बता दें कि यह ही आतंकी संगठन कश्मीर घाटी में भी सक्रिय हैं।
न्यूज एजेंसी एएनआई ने अधिकारियों के हवाले से बताया है कि जम्मू-कश्मीर में स्थिति नियंत्रण में है। लेकिन एहतियातन सुरक्षा चौकसी बढ़ाई जाएगी। इस बीच अफगानिस्तान के हालात को लेकर चर्चा करने के लिए बीते मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने आवास पर कैबिनेट कमिटी ऑन सिक्योरिटी की अहम बैठक बुलाई थी। इस बैठक में पीएम नरेंद्र मोदी के अलावा गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, विदेश मंत्री जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल शामिल हुए थे। सूत्रों के मुताबिक बैठक में देश की सुरक्षा और अफगानिस्तान की स्थिति को लेकर चर्चा हुई थी।
वहीं अफगानिस्तान में सत्ता परिवर्तन के चलते उन 130 अफगान सैनिकों का भविष्य अनिश्चित हो गया है, जो भारतीय सैन्य बलों की विभिन्न अकादमियों में प्रशिक्षण ले रहे हैं। देहरादून स्थित भारतीय सैन्य अकादमी (आईएमए) में 80 अफगान कैडेट प्रशिक्षु हैं, जबकि 50 कैडेट चेन्नई स्थित ऑफिसर्स ट्रेनिंग एकेडमी और खडगवासला स्थित राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) में प्रशिक्षण ले रहे हैं। वहीं काबुल में मौजूद 1650 भारतीय नागरिकों ने स्वदेश वापस लौटने के लिए दूतावास में आवेदन किया है।