J&K में आरक्षण पर बड़ा फैसला ; 15 नई जातियों को अन्य सामाजिक जाति सूची में शामिल करने का आदेश
22-अक्तूबर-2022
केंद्र में जहाँ एक तरफ OBC समुदाय के लोगों के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान है। वहीं जम्मू कश्मीर में केन्द्रशासित प्रदेश के आरक्षण नियमों के तहत सरकारी नौकरियों में अन्य सामाजिक जातियों को सिर्फ 4 प्रतिशत आरक्षण का ही प्रावधान है। हालाँकि अनुच्छेद 370 के खात्में से पहले सामाजिक जातियों के लिए 2 % आरक्षण का ही प्रावधान था। लिहाजा जम्मू-कश्मीर सरकार ने आरक्षण के मुद्दे पर एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए 15 अन्य वर्गों को भी अन्य सामाजिक जाति सूची में शामिल करके आरक्षण सूची का विस्तार किया है। सरकार ने जम्मू-कश्मीर आरक्षण अधिनियम, 2004 के तहत 15 नई जातियों को शामिल करके अन्य सामाजिक जाति सूची को फिर से बनाने का आदेश जारी किया है।
आरक्षण व्यवस्था को सुधारने का काम जारी
केंद्र शासित प्रदेश में आरक्षण व्यवस्था को सुधारने का काम जारी है। सरकार द्वारा जारी आदेश में कहा गया है, "जम्मू-कश्मीर आरक्षण अधिनियम, 2004 की धारा 2 के खंड (0) के पहले प्रावधान में दी गई शक्तियों का प्रयोग करते हुए, जम्मू-कश्मीर सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा वर्ग आयोग की सिफारिशों पर, जम्मू-कश्मीर के उप-राज्यपाल ये निर्देश देते हैं कि जम्मू और कश्मीर आरक्षण नियम 2005 में निम्नलिखित संशोधन किए जाएंगे। वहीं इसके आलावा जम्मू-कश्मीर आरक्षण नियम, 2005 में "पहाड़ी भाषी लोग" (PSP) शब्द की जगह अब "पहाड़ी जातीय लोग" का प्रयोग किया जाएगा।"
इन वर्गों को किया गया है शामिल
इन नई जातियों में जाट, पश्चिमी पाकिस्तानी शरणार्थी, गोरखा, वाघी, पोनी वाले और अन्य समुदाय शामिल हैं। जिन नई श्रेणियों को इसके दायरे में शामिल किया गया है, उनमें वाघे (चोपन), घिरथ/भाटी/चांग समुदाय, जाट समुदाय, सैनी समुदाय, मरकबांस पोनीवालास, सोची समुदाय, ईसाई बिरादरी (हिंदू वाल्मीकि से परिवर्तित), सुनार/स्वर्णकार तेली (पहले से मौजूद मुस्लिम तेली के साथ हिंदू तेली), पेरना / कौरो (कौरव), बोजरू/डेकाउंट/दुबदाबे ब्राह्मण गोकर्न, गोरखा, पश्चिमी पाकिस्तानी शरणार्थी (अनुसूचित जाति को छोड़कर) और आचार्य हैं।
जातियों के नामों में किया गया संशोधन
अन्य सामाजिक जाति सूची में 15 अन्य वर्गों को शामिल किए जाने के आलावा सरकार ने मौजूदा अन्य सामाजिक जातियों के नामों में कुछ संशोधन भी किए हैं। जैसे कि अधिसूचना के अनुसार कुम्हारों, जूता मरम्मत करने वालों, बंगी खाक्रोब (स्वीपर), नाई, धोबी और अनुसूचित जाति को छोड़कर क्रमश: कुम्हार, मोची, बंगी खाक्रोब, हज्जाम अतराय, धोबी और डूम्स को शामिल किया गया है। जम्मू-कश्मीर सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा वर्ग आयोग की सिफारिशों पर अन्य सामाजिक जाति सूची को फिर से तैयार किया गया है, जिसे 2020 में जम्मू-कश्मीर सरकार द्वारा गठित किया गया था। इस आयोग के अध्यक्षता रिटायर्ड जस्टिस जीडी शर्मा कर रहे हैं। साथ ही भारतीय वन सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी रूपलाल भारती और आईपीएस मुनीर अहमद खान आयोग के सदस्य होंगे। इसके साथ ही शब्द 'पहाड़ी भाषी लोग (पीएसपी)' को 'पहाड़ी जातीय लोग' के साथ बदला गया है।
जम्मू-कश्मीर में आरक्षण की मौजूदा स्थिति
अनुसूचित जाति - 8% (पहले 8%)
अनुसूचित जनजाति - 10% (पहले 10%)
वर्ग अन्य सामाजिक जातियां- 4% (पहले 2%)
नियंत्रण रेखा/अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटे क्षेत्र के निवासी- 4% (पहले 3%)
पिछड़े क्षेत्र (आरबीए)- 10% (पहले 20%)
पहाड़ी भाषाई लोग - 4% (पहले कोई आरक्षण नहीं)
आर्थिक कमज़ोर वर्ग- 10% (पहली बार लागू)
एक्स-सर्विसमेन- 6%
शारीरिक दिव्यांग- 4%
अनुच्छेद 370 के खात्में से पहले जम्मू-कश्मीर में नियमों के तहत पिछड़े क्षेत्र के लोगों यानि (Residence Of Backward Area) को 20% आरक्षण का प्रावधान था। इन श्रेणियों में राजनीतिक दलों के मन पसंद के लोग शामिल थें। जिसे पार्टियाँ अपने वोट बैंक के तौर पर इस्तेमाल करती थीं। जोकि सरासर नाइंसाफी था। हालाँकि अनुच्छेद 370 के खात्में के बाद इसमें बदलाव किया गया और इसे 20 % से घटाकर 10 प्रतिशत कर दिया गया। लिहाजा अब ऐसे कयास लगाये जा रहे हैं कि इन श्रेणियों को मिलने वाले आरक्षण को समाप्त किया जा सकता है। वहीं हाल ही में केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने पहाड़ी लोगों को अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा देने का वादा किया था, जो लंबे समय से इनकी मांग भी है। लिहाजा उम्मीद है कि जल्द ही इन समुदायों को भी आरक्षण का लाभ दिया जाएगा।