25 नवंबर, 1947 मीरपुर नरसंहार : जब पाकिस्तानी सेना ने 35 हज़ार हिन्दूओं का किया कत्लेआम ; ना भूलेंगे-ना माफ़ करेंगे
   25-नवंबर-2022
Mirpur Massacre 25 Nov
 
 
1947 में जम्मू-कश्मीर के भारत में अधिमिलन से ठीक पहले पाकिस्तान ने 22 अक्टूबर को जम्मू-कश्मीर के बड़े हिस्से पर हमला कर दिया। इस हमले में कबाइलियों के भेष में पाकिस्तानी सेना ने जम्मू कश्मीर में वो नरसंहार किया जिसकी बानगी मानव इतिहास में बेहद कम ही मिलती है। जिन इलाकों पर पाकिस्तान ने कब्जा कर लिया था वहां पाकिस्तानी हमलावरों ने हजारों निर्दोष हिन्दुओं और सिखों का कत्लेआम किया।
 
 
जम्मू-कश्मीर पर हुए आक्रमण का रचयिता था पाकिस्तानी सेना का मेजर जनरल अकबर खान। अकबर खान ने ही आक्रमण की योजना और रणनीति बनाकर इस कत्लेआम को अंजाम दिया। पाकिस्तानी सेना ने एक साथ मुज़्ज़फ़्फ़राबाद, बारामूला, पुँछ और मीरपुर पर धावा बोल दिया। मीरपुर में पाकिस्तानी सैनिकों ने निर्ममता से लगभग हजारों हिंदू और सिख लोगों को मार डाला। एक अमरीकी पत्रकार, मार्गरेट बर्क वाइट, इस आक्रमण के समय जम्मू-कश्मीर में थी। उन्होंने लिखा कि इस नरसंहार में कई गाँव तबाह हो गए, पाकिस्तानी सेना ने मासूम महिलाओं के साथ बलात्कार किया और सैंकड़ों हिन्दू, सिख महिलाओं को अगवा कर लिया।
 
 
Story Of Mirpur Massacre
 
 
26 अक्टूबर 1947 को जम्मू-कश्मीर के भारत संघ मे विलय पत्र पर हस्ताक्षर और ततपश्चात 27 अक्टूबर 1947 को भारत सरकार की विलय की स्वीकृति के बाद 31 अक्टूबर 1947 में भारत की सेना , पाकिस्तान की ट्राइबल आर्मी का प्रतिकार करने जम्मू-कश्मीर पहुंची। परन्तु इसके पहले पाकिस्तानी सेना ने मीरपुर, मुजफ्फराबाद तक पहुंच गई थी। मीरपुर में जम्मू-कश्मीर की जो 8 सौ सैनिकों की चौकी थी, उसमें आधे से अधिक मुसलमान सैनिक थे, वे अपने हथियारों समेत पाकिस्तान की सेना से जा मिले थे। लिहाजा मीरपुर के लिए 3 महीने तक कोई सैनिक सहायता नहीं पहुंची।
 
 
हिंदू बहुल शहर था मीरपुर
 
 
उस वक्त मीरपुर जम्मू-कश्मीर रियासत का एक हिंदू बहुल शहर था। इसके पास भिम्बर और कोटली जैसे बड़े कस्बे थे जो आज जिले बन चुके हैं। विदित हो कि मीरपुर से विभाजन के समय सभी मुसलमान 15 अगस्त 1947 के कुछ दिन बाद ही बिना किसी नुकसान के पाकिस्तान चले गए थे ,और पाकिस्तान के पंजाब से हजारों हिंदू और सिख मीरपुर में आ गए थे। इस कारण उस समय मीरपुर में हिंदुओं की संख्या करीब 40 हजार हो गई थी। पाकिस्तान से आये ये हिन्दू मीरपुर के पाकिस्तान गए मुसलमानों के खाली मकानों के अलावा वहां के गुरुद्वारा दमदमा साहिब, आर्य समाज, सनातन धर्म सभा और सभी मंदिरों में शरणार्थियों के रूप में रह रहे थे। कोटली, पुंछ और मुजफ्फराबाद में भी यही स्थिति थी।
 
 
Mirpur Before Massacre 25 Nov 1947
 
 
20 हज़ार निर्दोषों का कत्लेआम
 
 
25 नवम्बर 1947 को मीरपुर में जो कत्लेआम शुरू हुआ वो कई दिनों तक चलता रहा। आधुनिक हथियारों से लैस पाकिस्तानी सेना ने जम्मू कश्मीर के मीरपुर पर धावा बोल दिया और केवल एक ही दिन में 20 हज़ार निर्दोष स्त्री, पुरुष समेत बच्चों की निर्मम हत्या कर दी। हज़ारों हिन्दू और सिखों के अमानवीय नरसंहार के बाद पाकिस्तान ने अवैध रूप से मीरपुर को अपने कब्जे में ले लिया। जो आज भी पाकिस्तान के कब्ज़े में है और जिसे हम पाकिस्तान अधिक्रांत जम्मू कश्मीर यानि (PoJK) के नाम से जानते हैं।
 
 
मीरपुर में पाकिस्तानी सेना के अत्याचारों की खबर से मीरपुर के हालात लगातार बिगड़ते जा रहे थे। महाराजा हरिसिंह के सलाहकार मेहरचंद महाजन ने शेख अब्दुल्ला को बताया कि मीरपुर में 40 हजार से ज्यादा हिंदू-सिख फंसे हुए हैं। उन्हें सुरक्षित लाने के लिए कुछ किया जाना चाहिए। लेकिन मीरपुर में शेख अब्दुल्ला ने अतिरिक्त सेना नहीं भेजी। तब जम्मू का एक प्रतिनिधि मंडल दिल्ली गया और नेहरू से मीरपुर के हालात पर चर्चा करने पहुंचा। पर दुर्भाग्य से नेहरू ने पूरे प्रतिनिधि मंडल को कमरे से बाहर निकलवा दिया और अकेले मेहरचंद महाजन से बात की।
 
 
मीरपुर की हालत की जानकारी होने के बाद भी नेहरू ने इस मामले में शेख अब्दुल्ला से ही बात करने को कहा। लेकिन शेख से तो ये लोग पहले ही मिल चुके थे उससे निराश होकर ही दिल्ली आए थे इसलिए इसके बाद यह लोग सरदार वल्लभ भाई पटेल के पास गए। सरदार ने कहा कि वह बेबस हैं। इस बात पर पंडित जी से बात बिगड़ चुकी है। पटेल ने कहा कि पंडित नेहरू कल (15 नवम्बर, 1947) जम्मू जा रहे हैं। आप वहां उनसे मिले सकते हैं। उसके बाद दिल्ली में ही ये लोग महात्मा गांधी से भी मिले तो उन्होंने जवाब दिया कि मीरपुर तो बर्फ से ढका हुआ है। उनको यह भी नहीं पता था कि मीरपुर में तो बर्फ ही नहीं पड़ती। लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि यहां नेहरू ने शेख अब्दुल्ला की सलाह पर ही अमल किया क्योंकि शेख अब्दुल्ला भी 13 नवंबर को दिल्ली में ही था ।
 
 
 
14 नवंबर को नेहरू ने मंत्रिमंडल की बैठक बुलवाई और सेना मुख्यालय को सेना झंगड़ से आगे बढ़ने से रोकने के आदेश दिए। मीरपुर की ओर पीर पंचाल की ऊंची पहाड़ी है। यहां तक भारतीय सेनाओं का नियंत्रण हो चुका था। परंतु आदेश न मिलने के कारण सेना आगे नहीं बढ़ी।

15 नवंबर को जब पंडित नेहरू जम्मू पहुंचे तो हजारों लोग उनका इंतजार कर रहे थे। लेकिन नेहरू जी बिना किसी से बात किए चले गए। नेहरू सरकार ने यहां अपना कब्जा मजबूत करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया और न ही कश्मीर की तत्कालीन सरकार ने हिंदुओं की रक्षा के लिए सेना की टुकड़ी ही यहां भेजी।
 
 
मीरपुर नरसंहार
 
 
उधर मीरपुर शहर में जो हुआ, वह बहुत ही दर्दनाक था। पाकिस्तान की फौज ने शहर को घेर कर हर हिन्दू का कत्लेआम कर दिया। किसी परिवार का एक व्यक्ति मारा गया था, किसी के दो व्यक्ति। कई ऐसे थे जिनकी आंखों के सामने उनके भाइयों, माता-पिता और बच्चो को मार दिया गया था। कई ऐसे थे जो रो-रो कर बता रहे थे कि कैसे वे लोग उनकी बहन-बेटियों को उठाकर ले गए।
 
 
25 नवबंर को हवाई उड़ान से वापस आए एक पायलट से भारतीय सेनाओं को भी पता चल गया था कि मीरपुर से हजारों की संख्या में काफिला चल चुका है और पाकिस्तानी सेना ने शहर लूटना शुरू कर दिया है। लेकिन सेना दिल्ली से आदेश न मिलने पर लाचार थी। मीरपुर में उत्तर की ओर गुरुद्वारा दमदमा साहिब और सनातन धर्म मंदिर थे। इनके बीच में एक बहुत बड़ा सरोवर और गहरा कुआं था। लगभग 75 प्रतिशत लोग कचहरी से आगे निकल चुके थे। शेष महिलाओं, लड़कियों और बूढ़ों को पाकिस्तानी सैनिकों ने इस मैदान में घेर लिया।

Mirpur Massacre 1947 PoJK
 
 
आर्य समाज के स्कूल के छात्रावास में 100 छात्राएं थीं। छात्रावास की अधीक्षिका ने लड़कियों से कहा अपने दुपट्टे की पगड़ी सर पर बांधकर और भगवान का नाम लेकर कुओं में छलांग लगा दें और मरने से पहले भगवान से प्रार्थना करें कि अगले जन्म में वे महिला नहीं, बल्कि पुरुष बनें। बाद में उन्होंने खुद भी छलांग लगा दी। कुंआ इतना गहरा था कि पानी भी दिखाई नहीं देता था। ऐसे ही सैकड़ों महिलाओं ने अपनी लाज बचाई।
 
 
बहुत से लोग अपनी हवेली के तहखानों में परिवार सहित जा छुपे, लेकिन वहशियों ने उन्हें ढूंढ निकाला। मर्दों और बूढ़ों को मार दिया। उस दौरान पाकिस्तानी सेना सारी हदें पार कर चुकी थी। 25 नवंबर के आसपास 5 हजार हिंदू लड़कियों को वे लोग पकड़ कर ले गए। बाद में इनमें से कई को पाकिस्तान, अफगानिस्तान और अरब देशों में बेचा गया। पाकिस्तानी सैनिकों ने बाकी लोगों का पीछा करने के बजाय नौजवान लड़कियों को पकड़ लिया और शहर को लूटना शुरू कर दिया। इसी दौरान वहां से भागे हुए मुसलमान मीरपुर वापस आ गए और शाम तक शहर को लूटते रहे। उन सबको पता था कि किस घर में कितना माल और सोना है।
 
 
मीरपुर को लूटने में लगे पाकिस्तानी सैनिकों ने यहां से करीब 2 घंटे पहले निकल चुके काफिले का पीछा नहीं किया। काफिला अगली पहाड़ियों पर पहुंच गया। वहां 3 रास्ते निकलते थे। तीनों पर काफिला बंट गया। जिसको जहां रास्ता मिला, भागता रहा। पहला काफिला सीधे रास्ते की तरफ चल दिया जो झंगड़ की तरफ जाता था। दूसरा कस गुमा की ओर चल दिया। पहला काफिला दूसरी पहाड़ी तक पहुंच चुका था, परंतु उसके पीछे वाले काफिले को पाकिस्तानी सेना ने घेर लिया।

Mirpur Narsanhar Story 1947
 
 
उन दरिंदों ने जवान लड़कियों को एक तरफ कर दिया और बाकी सबको मारना शुरू कर दिया। उस पहाड़ी पर जितने आदमी थे, पाकिस्तानी सेना उन सबको मारकर नीचे की ओर बढ़ गए। इस घटनाक्रम में 18,000 से ज्यादा लोग मारे गए। फॉरगॉटन एट्रोसिटीज़: मेमोरीज़ ऑफ़ अ सर्वाइवर ऑफ़ द 1947 पार्टीशन ऑफ़ इंडिया, लेखक के. गुप्ता की लिखी किताब में ये घटनाएं और तथ्य सिलसिलेवार उद्घृत हैं ।
 
 
वर्तमान में मीरपुर पाकिस्तान में है लेकिन वहां पुराने मीरपुर का नामोनिशान बाकी नहीं है। पुराने मीरपुर को पाकिस्तान ने झेलम नदी पर मंगला बाँध बना कर डुबो दिया है। यहां के अधिकांश वाशिंदे अब लंदन में बस गए हैं और पाकिस्तान ने यहां की डेमोग्राफी बदल कर इस जगह की सांस्कृतिक आभा नष्ट कर दी है। बचे हैं तो कुछ मंदिरों के खण्डर और अवशेष। आज मीरपुर में हिन्दुओ के हत्यारे एलओसी के उस और तथाकथित आजाद कश्मीर के नाम से बैठे हैं। वहीं इस और मीरपुर से माल और सगे सम्बन्धियो की जान गवां कर जैसे तैसे बच कर आये लोगों को जम्मू कश्मीर की पीआरसी नही होने के चलते 75 वर्षों तक रिफ्यूजी का जीवन जीना पड़ा, वो भी अपने ही पुरखो की धरती पर।