रनसू नगर से 4 किलोमीटर की दूरी पर है गुफा
इस गुफ़ा के भीतर स्वयं शिव शम्भू विराजमान हैं जिसके कारण इसे शिव खोड़ी के नाम से जाना जाता है। भगवान भोलेनाथ की यह गुफ़ा रनसू नगर से तकरीबन 3 से 4 किलोमीटर दूर है। शिव खोड़ी जाने के लिए श्रद्धालु जम्मू और कटरा दोनों ही जगहों से जा सकते हैं। रनसू नगर शिव खोड़ी गुफ़ा का मुख्य आधार कैंप है। यहां भक्तों को प्रसाद और भोजन उपलब्ध कराने वाली अनेक दुकानें उपलब्ध हैं।
रास्ते में पड़ती है दूध गंगा नामक नदी
रनसू नगर से गुफा तक जाने वाले रास्ते में एक नदी भी पड़ती है जिसे स्थानीय लोग दूध गंगा के नाम से बुलाते हैं। हालांकि इसे नदी तो नहीं बल्कि नदी की एक धारा अवश्य कह सकते हैं। यहां दर्शन करने आने वाले भक्त पैदल मार्ग से या फिर घोड़ा या पालकी का इस्तेमाल कर सकते हैं।
200 मीटर लंबी है गुफा
भीतर से गुफा 1 मीटर चौड़ी तथा 2 से 3 मीटर ऊंची है। गुफा के भीतर जाने के लिए भक्तों को एक एक कर बड़ी सावधानी से प्रवेश करना पड़ता है। द्वार के भीतर स्थित शिलाओं में अनेक प्रकार की आकृतियां नजर आती हैं। शिव खोड़ी की गुफा लगभग 200 मीटर लंबी है। गुफा से जुड़ी सबसे रोचक बात यह है कि गुफा के भीतर प्रवेश करने के बाद गर्भ गृह की ओर जाने के लिए ना ही ऊपर और ना ही सीधे बल्कि नीचे की तरफ जाना पड़ता है।
गर्भ गृह में तकरीबन 250 से 300 श्रद्धालु कर सकते हैं पूजा
गुफा में कुल तीन मोड़ हैं। कुछ जगहों पर द्वारा इतनी तंग है कि भक्तों को एक-एक कर आगे बढ़ना होता है। तो वहीं कुछ जगहों पर बड़ी आसानी से एक साथ आगे बढ़ा जा सकता है। तंग गुफाओं से होकर भक्त मंदिर के मुख्य द्वार अर्थात भगवान शिव के गर्भ गृह में प्रवेश करते हैं। गर्भ गृह में एक साथ तकरीबन 250 से 300 श्रद्धालु एक साथ खड़े होकर पूजा कर सकते हैं। यह दृश्य भक्तों को बेहद आश्चर्य भी करती है।
गुफा के ऊपरी भाग से आती है प्राकृतिक रौशनी
मंदिर के भीतर गुफा के ऊपरी भाग से प्राकृतिक रौशनी आती है। गुफा के भीतर भगवान भोलनाथ एक बड़े शिव लिंग के रूप में विराजमान हैं। मान्यता है कि यह शिव लिंग धरती से प्रकट हुआ है। लोगों की ऐसी भी मान्यता है कि यह शिव लिंग अनंत है। धरती के भीतर इस शिव लिंग का कोई भी अंत नहीं है। शिव लिंग की ऊंचाई लगभग 4 मीटर के करीब है।
क्या है मंदिर से जुड़ी पौराणिक मान्यता ?
पौराणिक कथाओं में मंदिर से जुड़ी ऐसी मान्यता है कि एक बार भस्मासुर नामक राक्षस ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या की थी। भस्मासुर की तपस्या से भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उसे साक्षात दर्शन दिया और कोई वर मांगने को कहा। तभी भस्मासुर ने भगवान शिव से यह वर मांगा कि हे भगवान, आप मुझे ऐसा वर दीजिए की मैं जिसके सर पर भी हाथ रखूं वो तुरंत भस्म हो जाए।
भस्मासुर और शिव के बीच हुआ भीषण युद्ध
भगवान भोलेनाथ ने तथास्तु कहते हुए भस्मासुर को यह वर दे दिया। तभी भस्मासुर ने भगवान शिव से कहा कि मैं आपके सर पर अपना हाथ रखना चाहता हूं। जिसके बाद भगवान शिव बहुत ही चिंतित हुए। इस दौरान भस्मासुर और भगवान शिव के बीच युद्ध भी हुआ। युद्ध के बाद भी भस्मासुर ने हार नहीं मानी। तब भगवान शिव वहां से निकलकर एक ऊंची पहाड़ी पर पहुंचे। यहां भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से वार कर एक गुफा का निर्माण किया और परिवार के साथ अंदर चले गए।
भगवान शिव को मुसीबत में देख भगवान विष्णु ने लिया मोहिनी का रूप
भगवान शिव तो गुफा के अंदर चले गए परंतु उन्हें ढूंढते हुए जब भस्मासुर ने गुफा के अंदर प्रवेश करने का प्रयास किया तो विशाल काय होने के कारण वह गुफा में प्रवेश नहीं कर सका। वो गुफा के बाहर ही भगवान शिव का इंतजार करने लगा। ये सब देख भगवान विष्णु ने 'मोहिनी' का अवतार लिए भस्मासुर की समक्ष प्रकट हो गए।
मोहिनी को देख भस्मासुर आकर्षित होने लगा। भगवान विष्णु ने अपनी माया से भस्मासुर को पूरी तरह से मोहित कर लिया और अपने साथ नृत्य कराने लगे। नृत्य करते करते एक वक्त पर विष्णु ने अपना हाथ अपने सर पर रखा भगवान विष्णु को देख भस्मासुर ने भी अपना हाथ अपनी सर पर रखा और तुरंत भस्म हो गया।
भक्तों की सभी मनोकामनाएं होती हैं पूर्ण
मंदिर से जुड़ी मान्यता है कि यहां जो भी भक्त सच्ची श्रद्धा से पहुंचता है उसकी मनोकामनाएं अवश्य पूरी होती हैं। शिव खोड़ी गुफा के भीतर भगवान शिव के साथ, मां पार्वती, गणेश, कार्तिकेय और नंदी की पिंडियों के भी दर्शन होते हैं। पिंडियों पर गुफा की छत से जल की बूंदे गिरने से प्राकृतिक अभिषेक स्वतः ही होता रहता है। भगवान शिव द्वारा बनाई गई इस गुफा में महाशिवरात्रि के दिन भारी संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। महाशिवरात्रि के दौरान यहां तीन दिनों तक मेले का आयोजन भी किया जाता है। तीन दिनों तक चलने वाले इस मेले का आज जम्मू कश्मीर के कमिश्नर लाघव लंगर ने उद्घाटन किया।