राजौरी नरसंहार ; जब पाकिस्तानी आक्रमणकारियों के कब्जे से सेना ने राजौरी समेत बड़े हिस्से को कराया आजाद
   12-अप्रैल-2022
  
Rajouri Massacre
 
 
देश के विभाजन के बाद से ही पाकिस्तान की बुरी नजर जम्मू कश्मीर पर बनी रही। पाकिस्तान को जब भी मौका मिला उसने जम्मू कश्मीर पर कब्ज़ा करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी। हालांकि वो बात अलग है कि पाकिस्तान अपने इस मंसूबे में कभी कामयाब नहीं हो सका ना ही कभी होगा। लिहाजा अक्टूबर 1947 में जम्‍मू कश्‍मीर को कब्‍जाने के लिए पाकिस्तानी सेना के नेतृत्‍व में किया गया कबाइली हमला उसी साजिश का हिस्सा था।
 
पाकिस्तानी आक्रमणकारियों ने हमला कर जम्मू कश्मीर के बड़े हिस्से पर कर लिया कब्ज़ा 
 
12 अक्टूबर 1947, पाकिस्तानी आक्रमणकारियों ने जम्मू-कश्मीर के क्षेत्रों पर हमला किया और बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया था। 11-12 नवंबर सन 1947 जब पूरा देश आजादी मिलने के बाद पहली दिवाली मना रहा था उस वक्त जम्मू-कश्मीर के राजौरी शहर में पाकिस्तानी आक्रमणकारियों द्वारा 10 हजार हिंदुओं का नरसंहार किया जा रहा था। राजौरी नरसंहार यकीनन भारत के आधुनिक इतिहास में सबसे क्रूर और सबसे बड़े नरसंहार में से एक है। पर बावजूद इसके इस नरसंहार को कभी उस ढंग से रिपोर्ट नहीं किया गया ना ही इस पर कभी चर्चा की गई। नवम्बर के महीने तक पाकिस्तानी आक्रमणकारियों ने पुंछ जिले के ज्यादातर हिस्सों पर कब्ज़ा कर लिया था।
 
ब्रिगेडियर छत्तर सिंह ने कर्नल रहमत उल्लाह को सेंसा तहसील पर कब्ज़ा करने का दिया आदेश
 
ब्रिगेडियर छत्तर सिंह ने झंगर में तैनात 9 JAK कंपनी के कमांडर कर्नल रहमत उल्लाह को सेंसा तहसील पर फिर से कब्जा करने का आदेश दिया। मेजर नसरुल्ला की कमान में तीसरे JAK को भी मदद के लिए भेजा गया था। पर रहमत उल्लाह और नसरुल्ला ने अपनी कंपनियों के गोरखा सिपाहियों को धोखा देते हुए उन्हें मार डाला और फिर रहमत उल्लाह पाक आक्रमणकारियों में JCO के साथ मिलकर झांगर से 2 मील दूर थ्रोची किले पर कब्जा कर लिया और राजौरी की ओर आगे बढ़ गया।
 

Rajouri Massacre 
 
आक्रमणकारियों को राजौरी के तरफ बढ़ते देख लोगों ने पीएम मेहर चंद महाजन से मांगी मदद 
 
पाकिस्तानी आक्रमणकारी जब राजौरी के तरफ बढ़ने लगे तब राजौरी के लोगों ने जम्मू में तत्कालीन पीएम मेहर चंद महाजन से मुलाकात की और राजौरी को आक्रमणकारियों से बचाने की अपील की। बकायदा लोगों की अपील को सुनते ही महाजन ने राजौरी के लिए सेना की एक बटालियन भेज दी। लेकिन उस वक्त जवाहर लाल नेहरू ने शेख अब्दुलाह को सेनाओं का समग्र प्रभार सौंप दिया था। जिसके कारण उसी बटालियन को रियासी की तरफ मोड़ दिया गया।

Nehru 
 
 
राजौरी मुख्य रूप से एक हिंदू आबादी वाला शहर था
 
जम्मू कश्मीर का राजौरी मुख्य रूप से एक हिंदू आबादी वाला शहर था, जो मुस्लिम आबादी वाले गांवों से घिरा हुआ था। सितंबर 1947 तक राजौरी 5 हजार की आबादी वाला एक शहर था। नवंबर की शुरुआत में पश्चिम से आए हिंदू-सिख शरणार्थी के कारण अब यह संख्या 5 हजार से बढ़कर 40 हजार से अधिक हो गई थी। 
 
 
Rajouri Massacre 
 
11-12 नवंबर सन 1947 राजौरी के इतिहास का सबसे काला दिन
 
9 नवंबर 1947, आक्रमणकारियों ने कब्जा कर लिया और शहर पर चारों ओर से गोलीबारी शुरू कर दी। सिंह सभा और राष्ट्रीय स्वयं संघ के वीरों ने अपने परंपरागत हथियारों से आक्रमणकारियों से जमकर लोहा लिया उन्होंने हमलावरों को 17 घंटे तक शहर से दूर रखा। पर उनके हथियार भी अधिक समय तक साथ नहीं दे पाए और ज्यादातर योद्धा कबाइलियों से जूझते हुए वीरगत को प्राप्त हो गए।
 
 
 
 
राजौरी नरसंहार में तक़रीबन 30 हजार हिंदुओं और सिखों  का हुआ नरसंहार  
 
इस हमले की वजह से बहुत सारे लोग राजौरी शहर में इकठ्ठे हो गए। उसी दौरान कबाइली मीरपुर से आगे राजौरी की ओर बढ़ आए। जिसके बाद राजौरी में तक़रीबन 6 महीने तक नरसंहार का दौर चलता रहा। भारतीय इतिहास में सबसे भीषण नरसंहार में से एक राजौरी नरसंहार में तक़रीबन 30 हजार हिंदुओं और सिखों का सड़कों पर कत्लेआम कर दिया गया।
 
औरतें अपनी अस्मत बचाने के लिए करने लगी आत्महत्याएं  
 
स्थिति इतनी भयावह हो चुकी थी कि पाकिस्तानी आक्रमणकारियों से बचने के लिए परिवार के पुरुषों ने गोलियों से अपनी मां, अपनी बहनों, अपनी बीबी तमाम महिलाओं और बच्चो को खुद ही मारना शुरू कर दिया। जब गोलियां खत्म हो गईं तो महिलाओ ने अपनी इज्जत बचाने के लिए जहर खा कर और कुएं में कूदकर अपनी जान दे दी। आपने राजस्थान में हुए जौहर की कहानियां सुनी होंगी। लेकिन राजौरी शहर का ये जौहर इतिहास में कहीं दब-सा गया। पाकिस्तानी आक्रमणकारियों ने यहां एक दिन में तक़रीबन 3 हजार से भी अधिक हिंदुओं और सिखों का नरसंहार कर दिया।
 
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डीके गुप्ता 'मीरपुरी' ने उस दर्दनाक सच का अपनी पुस्तक में किया है उल्लेख 
 
पाकिस्तान में हज़ारों महिलाओं का अपहरण कर बलात्कार किया गया और बाद में उन्हें बेचा गया। डीके गुप्ता 'मीरपुरी' ने अपनी पुस्तक MY Jammu Kashmir (ए फॉरगॉटन हिस्ट्री) में अपनी बुआ के उस दर्दनाक सच को सामने रखने का प्रयास किया है जिसमें उन्होंने उस नरसंहार को महसूस किया था। साथ ही इस किताब में उन्होंने इस बात का भी जिक्र किया है कि कैसे उस वक्त में पाकिस्तानी आक्रमणकारियों ने महिलाओं और बच्चों को इस्लाम में बदलने के लिए उनका अपहरण किया। 
 
इसके आलावा 12 नवंबर दीवाली वाले दिन हमलावरों ने शहर को खाली करा लिया और बाकी लोगों को एक खाली 'मैदान' में इकट्ठा किया। जिसके बाद आक्रमणकारियों ने तक़रीबन 10 हजार मासूम और निहत्थे हिंदुओं को तलवारों और कुल्हाड़ियों से नरसंहार किया। इस नरसंहार को भी उन्होंने अपनी पुस्तक (MY Jammu Kashmir - ए फॉरगॉटन हिस्ट्री) में उल्लेख किया।
 
Rajauri
 
 
राणै के शौर्य के आगे हर साजिश हुई विफल 
 
अगले 5 से 6 महीने तक राजौरी पाकिस्तानी आक्रमणकारियों के कब्जे में रहा, इस दौरान आक्रमणकारियों ने लूटपाट की और आसपास के गांवों से बचे हुए हिन्दुओं को पकड़कर मारते रहे। भारतीय सेना ने झंगर पर पुनः कब्जा करने के बाद, 8 अप्रैल 1948 को चौथी डोगरा बटालियन राजौरी पर पुनः कब्जा करने के लिए आगे बढ़ी।
 

Rajouri  
 
पाकिस्तान सेना और कबाइलियों को राजौरी से खदेडऩे के लिए 8 अप्रैल 1948 को डोगरा रेजिमेंट के जवानों व अधिकारियों ने नौशहरा से राजौरी की तरफ मार्च किया था। पाकिस्तानी सेना ने रास्ते में बारूदी सुरंगें बिछा रखी थीं और पेड़ काटकर सड़क पर फेंक दिए थे। लिहाजा द्वितीय लेफ्टिनेंट रमा राघोबा राणे, बॉम्बे इंजीनियर्स, जो आगे बढ़ रहे सैनिकों से जुड़े थे,उन्होंने खदान और सड़क को साफ किया। घायल होने के बावजूद राणै बारूदी सुरंगें हटाते हुए सेना के लिए रास्ता बनाते रहे। उनकी बदौलत ही भारतीय सेना राजौरी में प्रवेश कर पाई। इसके लिए उन्हेंं शौर्य के लिए परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
 
 
12 अप्रैल  को सेना  शौर्य दिवस के तौर पर मनाती है
 
12 अप्रैल 1948 की रात तक नरसंहार का यह सिलसिला ऐसे ही चलता रहा। 13 अप्रैल की सुबह लोगों के लिए एक नया सवेरा लेकर आया जब भारतीय सेना ने राजौरी को आतंक से मुक्त करवा लिया। हजारों कुर्बानियों को भले ही देश ने बिसार दिया हो लेकिन आज सेना इसे शौर्य दिवस के तौर पर मनाती है और बलिदानियों को श्रद्धांजलि दी जाती है। ऐसा माना जाता है कि राजौरी में लगभग 30 हजार लोगों का नरसंहार किया गया था।
 
भारतीय सेना करती है बलिदान स्तम्भ की देख रेख
 
प्रत्येक वर्ष 13 अप्रैल को शहर में बने बलिदान स्मारक और राणै हवाई पट्टी पर श्रद्धांजलि कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। इसमें सैन्य अधिकारी, धर्म गुरु, प्रशासनिक अधिकारी व आम लोग प्रार्थना सभा में भाग लेते हैं। इस बलिदान स्तम्भ की देख रेख भारतीय सेना करती है। आज भी आप वहां जाए तो आपको बलिदान हुए लोगों की तस्वीरें देखने को मिल जाएंगी।
 
स्थानीय लोगों, बुज़ुर्गों का कहना है कि अगर तहसील भवन के नीचे आज भी खुदाई की जाए तो पत्थरो और ईंटो के बजाय हड्डियां और नर कंकाल निकलेंगें। आज भी दीवाली के समय राजौरी के लोग 1947 के उस खुनी मंजर को याद कर के सिहर उठते है। हालांकि यह भी सच है कि इस भीषण नरसंहार को मीडिया ने कभी उस ढंग से दिखाने का प्रयास नहीं किया जैसे दिखाना चाहिए।