जयंती विशेष : आधुनिक लद्दाख के निर्माता कुशक बकुला रिम्पोछे जी की कहानी ; 1947 में लद्दाख को बचाने में दिया था अहम योगदान
   19-मई-2022
 
Kusak Bakula Shree Rimpoche  
 
आधुनिक लद्दाख के निर्माता कहे जाने वाले कुशक बकुला रिम्पोछे जी की आज जयन्ती है। कहते हैं कि भगवान बुद्ध ने जब अपना शरीर त्याग किया था तब उनके 16 शिष्यों ने यह प्रतिज्ञा ली थी कि जब तक उनके विचार पूरे विश्व में नहीं फैलेंगे, तब तक वे मोक्ष से दूर रहकर बार-बार जन्म लेंगे और उनके अधूरे काम को पूरा करेंगे। इन्हीं 16 शिष्यों में से एक थे कुशोक बकुला जो अब तक 20 बार जन्म ले चुके हैं। उनके 19वें अवतार थे श्री लोबजंग थुबतन छोगनोर, जो कुशक बकुला रिम्पोछे के नाम से प्रसिद्ध हुए।
 
राज परिवार में हुआ था रिम्पोछे का जन्म
 
रिम्पोछे का जन्म 19 मई वर्ष 1917 को लेह (लद्दाख) के पास माथो गांव के एक राज परिवार में हुआ था। 1922 में 13वें दलाई लामा ने उन्हें 19वां कुशक बकुला घोषित किया था। तिब्बत की राजधानी ल्हासा के द्रेपुंग विश्व विद्यालय में उन्होंने 14 वर्ष तक बौद्ध दर्शन का अध्ययन किया। 1940 में लद्दाख वापस आकर उन्होंने अपना जीवन देश, धर्म और समाज को समर्पित कर दिया। इसके बाद वे संन्यासी के रूप में देश भर में भ्रमण करने लगे।
 
भारतीय सेना के साथ मिलकर पाकिस्तानी सेना का किया जमकर मुकाबला
 
1947 में देश अंग्रेजों के चंगुल से आजाद हुआ था। धर्म के नाम पर दो देशों का बंटवारा भी हो चुका था। तभी आजादी के ठीक बाद सितम्बर 1947-48 में पाकिस्तानी सेना ने जम्मू-कश्मीर के एक बड़े हिस्से पर कब्ज़ा करने के नियत से हमला कर दिया। उस वक्त लद्दाख भी जम्मू कश्मीर का ही हिस्सा था।
 
लिहाजा उस दौरान श्री रिम्पोछे ने भारतीय सेना के साथ मिलकर पाकिस्तान के मंसूबे को विफल करते हुए लद्दाख को पाकिस्तान के हाथों में जाने से बचाने का काम किया। 1949 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के आग्रह पर उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया और लद्दाख के नव निर्माण में लग गये।
 
सभी मठों के प्रमुखों के साथ मिलकर बनाई समिति
 
शेख अब्दुल्ला को जब जम्मू-कश्मीर की सत्ता मिली तब उसने एक ‘लैंड सीलिंग एक्ट’ नाम का कानून बना दिया। इस कानून के तहत अब कोई भी व्यक्ति या संस्था अपने पास 120 कनाल से अधिक भूमि नहीं रख सकती थी। इस नियम का साफ तौर पर उद्देश्य था कि विशाल बौद्ध मठों और मंदिरों की भूमि को कब्जा करना तथा उन पर अपना अधिपत्य ज़माना।
 
 
Rimpochhe
 
 
लिहाजा अब एक बार फिर श्री रिम्पोछे ने सभी मठों के प्रमुखों के साथ मिलकर एक समिति बनाई जिसका नाम था ‘अखिल लद्दाख गोम्पा समिति’। समिति बनाने के बाद श्री रिम्पोछे शेख अब्दुल्ला, पंडित नेहरू और डा. अम्बेडकर से मिले। उन्होंने इस कानून को वापस लेने की मांग की. तब जाकर कहीं डा. अम्बेडकर के हस्तक्षेप करने के बाद यह कानून वापस हुआ।
 
1951 में चुने गए जम्मू-कश्मीर संविधान सभा के सदस्य
 
1951 में जब जम्मू-कश्मीर संविधान सभा बनाया गया तब श्री रिम्पोछे जी संविधान सभा के निर्विरोध सदस्य निर्वाचित हुए। सदस्य निर्वाचित होने बाद श्री रिम्पोछे जी ने विधानसभा में लद्दाख के भारत में एकीकरण का समर्थन तथा जम्मू-कश्मीर को भारत से अलग होने का अधिकार देने का खुला विरोध किया।
 

rimpoche bakula 
 
श्री रिम्पोछे का मंगोलिया के सांस्कृतिक पुनर्जागरण में है बड़ा योगदान
 
सिर्फ इतना ही नहीं श्री रिम्पोछे का मंगोलिया के सांस्कृतिक पुनर्जागरण में भी बड़ा योगदान माना जाता है। कहते हैं कि मंगोलिया में ऐसी मान्यता थी कि एक समय ऐसा आएगा, जब वहां बौद्ध विहारों, ग्रंथों तथा भिक्षुओं को बेहद ही खराब दौर से गुजरना होगा। जिसके बाद भारत से एक अर्हत आकर इस बिगड़ी हुई स्थिति को ठीक करेंगे। खास बात यह है कि ऐसा सचमुच हुआ। 1924 में साम्यवादी शासन आते ही हजारों भिक्षु मार डाले गये। धर्मग्रंथ तथा विहार जला दिये गये। लिहाजा 1990 में श्री रिम्पोछे को भारत का राजदूत बनाकर वहां भेजा गया।
 
मंगोलिया शासन ने श्री रिम्पोछे प्रदान किया सर्वोच्च नागरिक सम्मान
 
उनके वहां जाने के कुछ समय बाद ही शासन और लोकतंत्र समर्थकों में सशस्त्र संघर्ष छिड़ गया। श्री रिम्पोछे ने लोकतंत्र प्रेमियों को अहिंसा का संदेश देते हुए उन्हें हाथों पर बांधने के लिए एक अभिमंत्रित धागा दिया। लोकतंत्र प्रेमियों ने अपने बाकी साथियों के हाथ पर भी वह धागा बांध दिया।
  
Mangoliya
 
 
तभी शासन ने भी हिंसा छोड़कर शांति और लोकतंत्र बहाली की घोषणा कर दी। अपने 10 वर्ष के कार्यकाल में उन्होंने बंद पड़े मठ और विहारों को खुलवाया तथा बौद्ध अध्ययन के लिए एक महाविद्यालय स्थापित किया। उनके योगदान के लिए मंगोलिया शासन ने उन्हें अपना सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘पोलर स्टार’ प्रदान किया।
 
लद्दाख से 2 बार विधायक तथा 2 बार सांसद बनेे श्री रिम्पोछे
 
श्री रिम्पोछे लद्दाख से दो बार विधायक तथा दो बार सांसद बनेे। इसके अलावा 1978 से 89 तक वे अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य भी रहे। समाज में उनके द्वारा किए गए कार्यों के लिए 1988 में शासन ने उन्हें ‘पद्मभूषण’ सम्मान से सम्मानित किया। 4 नवम्बर, 2003 को उनका निधन तथा 16 नवम्बर को राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया। 2005 में बौद्ध परम्परा के अनुसार 20वें कुशक बकुला की पहचान कर ली गयी है।
 

Padma Samman