उत्तराखंड में लागू होगा समान नागरिक संहिता कानून, पूर्व न्यायाधीश रंजना देसाई की अध्यक्षता में ड्राफ्टिंग कमिटी का हुआ गठन
    28-मई-2022
 
Uttarakhand CM Pushkar Singh Dhami
 
 
Common Civil Code : देवभूमि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने विधानसभा चुनाव के दौरान पार्टी द्वारा किए गए अपने वायदे को पूरा करने की दिशा में अपना पहला कदम बढ़ा दिया है।  चुनावी वादे के अनुसार उत्तराखंड में 'समान नागरिक संहिता कानून' को लागू करने की दिशा में कदम बढ़ा दिया है। इसके लिए सीएम पुष्कर सिंह धामी ने सुप्रीम कोर्ट की सेवानिवृत जज रंजना देसाई की अध्यक्षता में एक ड्राफ्टिंग कमिटी का गठन भी कर दिया है।
 

विधानसभा चुनाव के दौरान सीएम धामी ने किया था वायदा  

 
दरअसल उत्तराखंड में हाल ही में विधानसभा चुनाव के दौरान सीएम धामी ने यह घोषणा की थी कि अगर राज्य में भाजपा की सरकार पुनः सत्ता में आती है तो प्रदेश में समान नागरिक संहिता कानून को लागू किया जाएगा। इसके बाद राज्य में इतिहास रचते हुए पहली बार सत्ताधारी पार्टी ने उत्तराखंड की सत्ता में भारी बहुमत के साथ वापस लौटी थी। लिहाजा प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के दौरान भी सीएम धामी ने अपनी प्रतिबद्धता दोहराई थी।
 

सीएम धामी ने ट्वीट कर दी जानकारी

 
मुख्यमंत्री धामी ने आज यानी शनिवार 28 मई को ट्वीट करते हुए लिखा कि “विकल्प रहित संकल्प’, देवभूमि उत्तराखंड के नागरिकों के लिए कानून में समरूपता लाने एवं लोकहित के दृष्टिगत समान नागरिक संहिता के क्रियान्वयन के लिए उच्च स्तरीय कमिटी का गठन कर दिया गया है।” इससे पहले शुक्रवार की शाम को ट्वीट कर मुख्यमंत्री धामी ने कहा था, “देवभूमि की संस्कृति को संरक्षित करते हुए सभी धार्मिक समुदायों को एकरूपता प्रदान करने के लिए मा. न्यायाधीश उच्चतम न्यायालय (सेवानिवृत्त) रंजना प्रकाश देसाई जी की अध्यक्षता में समान नागरिक संहिता (UCC) के क्रियान्वयन हेतु विशेषज्ञ समिति का गठन कर दिया गया है।
 
 
 

सिविल कोड लागू होते ही गोवा के बाद दूसरा राज्य बनेगा उत्तराखंड 

 
आपको बता दें कि अगर उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता कानून लागू हो जाता है तो उत्तराखंड गोवा के बाद दूसरा राज्य बन जाएगा, जहां समान नागरिक संहिता लागू होगी। अपने फेसबुक पोस्ट में मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि चुनाव के समय संकल्प पत्र में किए गए वादे के अनुरूप देवभूमि की संस्कृति को संरक्षित करते हुए सभी धार्मिक समुदायों को एकरूपता प्रदान करने के लिए विशेषज्ञ समिति का गठन किया गया है।
 
 
 

क्या है समान नागरिक संहिता ?  मुस्लिम समुदाय क्यों करते हैं विरोध ? 

 
समान नागरिक संहिता को सरल अर्थों में समझा जाए तो यह एक ऐसा कानून है, जो देश के हर समुदाय पर एक समान कानून लागू होता है। व्यक्ति चाहे किसी भी धर्म, जाति या किसी भी समुदाय का हो, सबके लिए एक ही प्रकार का कानून होगा। अंग्रेजों ने आपराधिक और राजस्व से जुड़े कानूनों को 'भारतीय दंड संहिता 1860' और 'भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872', 'भारतीय अनुबंध अधिनियम 1872', 'विशिष्ट राहत अधिनियम 1877' आदि के माध्यम से सब पर लागू किया। लेकिन वहीं शादी, विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, संपत्ति आदि से जुड़े मसलों को सभी धार्मिक समूहों के लिए उनकी मान्यताओं के आधार पर छोड़ दिया।
 

 हिन्दू सिविल कोड को पूर्व प्रधानमंत्री नेहरु ने किया खत्म

 
इन्हीं सिविल कानूनों को में से एक हिंदुओं वाले पर्सनल कानूनों को पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने खत्म कर दिया जबकि मुस्लिमों को इससे अलग रखा। हिंदुओं की धार्मिक प्रथाओं के तहत जारी कानूनों को निरस्त कर हिंदू कोड बिल के जरिए हिंदू विवाह अधिनियम 1955, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956, हिंदू नाबालिग एवं अभिभावक अधिनियम 1956, हिंदू दत्तक ग्रहण और रख-रखाव अधिनियम 1956 लागू कर दिया गया।
 
वहीं मुस्लिमों के लिए उनके पर्सनल लॉ को बरकरार रखा, जिसको लेकर आज भी विवाद जारी है।यही कारण है कि न्यायालयों में सुनवाई के दौरान मुस्लिम आरोपितों या अभियोजकों के मामले में कुरान और इस्लामिक रीति-रिवाजों का हवाला देना पड़ता है।
 

मुस्लिम समुदाय क्यों करते है इस कानून का विरोध ? 

 
अब जब सभी कानूनों को सभी धर्मों के लिए एक समान बनाने की जब माँग होती है तो मुस्लिम समुदाय इसका विरोध करते हैं। मुस्लिमों का कहना है कि उनका कानून कुरान और हदीसों पर आधारित है, इसलिए वे अपने पर्सनल लॉ को मानेंगे और उसमें किसी तरह के बदलाव का विरोध करेंगे। इन कानूनों में मुस्लिमों द्वारा 4 शादियाँ करने की छूट सबसे बड़ा विवाद की वजह है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड भी समान नागरिक संहिता का खुलकर विरोध करता रहा है।
 
 

गोवा में लागू है समान नागरिक संहिता कानून  

 
देश भर दशकों से समान नागरिक संहिता कानून को लागू करने की मांग हो रही है। लेकिन पूरे देश में गोवा ही एक मात्र ऐसा राज्य है जहां समान नागरिक संहिता कानून को लागू किया गया है। गोवा में वर्ष 1962 में यह कानून लागू किया गया था। साल 1961 में गोवा के भारत में विलय के बाद भारतीय संसद ने गोवा में ‘पुर्तगाल सिविल कोड 1867’ को लागू करने का प्रावधान किया था। इसके तहत गोवा में समान नागरिक संहिता लागू हो गई और तब से राज्य में यह कानून लागू है। पिछले दिनों गोवा में लागू यूनिफॉर्म सिविल कोड की तारीफ सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एस ए बोबड़े ने भी की थी। सीजेआई ने कहा था कि गोवा के पास पहले से ही वह कानून है जिसकी कल्पना संविधान निर्माताओं ने पूरे देश के लिए की थी।