'मंदिरों की जमीन पर अवैध कब्जों पर हो मंदिरों के पुनर्निर्माण'; मंदिरों को तोड़कर बनाई गई मस्जिदें गुलामी के चिन्ह'- महात्मा गांधी
    30-मई-2022

Mahatma Gandhi
 
स्वतंत्रता से पहले महात्मा गांधी ने कई बार मंदिरों की भूमि बनाई गयी मस्जिदों को स्पष्टता (मुगलों की) गुलामी का प्रतीक बताया था। साथ ही अपने लेखों में ऐसे स्थानों पर मंदिरों के पुनर्निर्माण का प्रखर समर्थन किया था। 5 फरवरी 1925 को यंग इंडिया में महात्मा गांधी का एक लेख प्रकाशित हुए था। जिसका एक अंश अग्रलिखित है, पढिए-
 
उनके शब्दों में, “अगर ‘अ’ (हिन्दू) का कब्जा अपनी जमीन पर है और कोई शख्स उसपर कोई इमारत बनाता है, चाहे वह मस्जिद ही हो, तो ‘अ’ को यह अख्तियार है कि वह उसे गिरा दे. मस्जिद की शक्ल में खडी की गयी हरएक इमारत मस्जिद नहीं हो सकती. वह मस्जिद तभी कही जायेगी जब उसके मस्जिद होने का धर्म-संस्कार कर लिया जाये. बिना पूछे किसी की जमीन पर इमारत खडी करना सरासर डाकेजनी है. डाकेजनी पवित्र नहीं हो सकती. अगर उस इमारत को जिसका नाम झूठ-मूठ मस्जिद रख दिया गया हो, उखाड़ डालने की इच्छा या ताकत ‘अ’ में न हो, तो उसे यह हक बराबर है कि वह अदालत में जाये और उसे अदालत द्वारा गिरवा दे.” (मूलतः यंग इंडिया – 5 फरवरी 1925 को प्रकाशित; गाँधी सम्पूर्ण वांग्मय, खंड 26, पृष्ठ 65-66)
 


In His words, “If ‘A’ (Hindu) is in possession of his land and someone comes to build something on it, be it even a mosque, A has the right at the first opportunity of pulling down the structure. Any building of the shape of a mosque is not a mosque. A building to be a mosque must be duly consecrated. A building put upon another's land without his permission is a pure robbery. Robbery cannot be consecrated. If A has not the will or the capacity to destroy the building miscalled mosque, he has the right of going to a law court to have the building pulled down." (Originally published in Young India – 5 February 1925; The Collected Works of Mahatma Gandhi, volume XXVI, p. 68)
 
"मंदिरों को तोड़कर बनाई गई मस्जिदें गुलामी के चिन्ह हैं। - महात्मा गांधी
 
 
मंदिरों की भूमि पर मस्जिद के निर्माण पर महात्मा गांधी ने 1937 में मासिक पत्रिका सेवासमर्पण में एक प्रश्न के उत्तर में स्पष्ट जवाब देते हुए कहा था कि- "मंदिरों को तोड़कर बनाई गई मस्जिदें गुलामी के चिन्ह हैं।"
 
 
सेवासमर्पण में प्रकाशित लेख की शब्दश: प्रतिकृति-
 
'किसी भी धार्मिक उपासना गृह के ऊपर बलात्कार पूर्वक अधिकार करना बड़ा जघन्य पाप है। मुगल काल में धार्मिक धर्मान्धता के कारण मुगल शासकों ने हिन्दुओं के बहुत से धार्मिक स्थानों पर कब्जा कर लिया था जो हिन्दुओं के पवित्र आराधना स्थल थे। इनमें से बहुत से लूटपाट कर नष्ट-भ्रष्ट कर दिए गए और बहुत को मस्जिद का रूप दे दिया। यद्यपि मन्दिर और मस्जिद यह दोनों ही भगवान की उपासना के पवित्र स्थान हैं और दोनों में कोई भेद नहीं है तथापि हिन्दु और मुसलमान दोनों की उपासना परम्परा अलग-अलग है।
 
धार्मिक दृष्टिकोण से एक मुसलमान यह कभी बर्दाश्त नहीं कर सकता कि उसकी मस्जिद में, जिसमें वह बराबर इबादत करता चला आ रहा है, कोई हिन्दू उसमें कुछ ले जाकर धर दे। इसी तरह एक हिन्दू भी कभी यह सहन नहीं करेगा कि उसके उस मन्दिर में, जहां वह बराबर राम, कृष्ण, शंकर, विष्णु और देवों की उपासना करता चला आ रहा है कोई उसे तोड़कर मस्जिद बना दे। जहां पर ऐसे कांड हुए हैं वास्तव में ये चिन्ह गुलामी के हैं।
 

Mahatma Gandhi 
 
हिंदू-मुसलमान दोनों को चाहिए कि जहां भी ऐसे झगड़े हों, वहां आपस में तय कर लें। मुसलमानों के वे पूजन-स्थल जो हिन्दुओं के अधिकार में हैं। हिन्दू उन्हें उदारता पूर्वक मुसलमानों को लौटा दें, इसी तरह हिन्दुओं के जो धार्मिक स्थल मुसलमानों के कब्जे में हैं उन्हें खुशी-खुशी हिन्दुओं को सौंप दें। इससे आपसी भेदभाव नष्ट होगा, हिन्दू-मुसलमानों में आपस में एकता की वृद्धि होगी, जो भारत जैसे धर्म प्रधान देश के लिए वरदान सिद्ध होगी।’
 

(27-7-1937 के नवजीवन" के अंक में श्रीराम गोपाल "शरद" के पत्र के उत्तर में)
 
इनपुट- देवेश खंडेलवाल