
कारगिल युद्ध को लेकर यूं तो बहुत सी कहानियां पढ़ी या सुनी होगी। इस युद्ध में मां भारती के सैंकड़ों वीर सपूतों ने लड़ते लड़ते अपने प्राण त्याग दिए। आज इस कड़ी में हम बात करेंगे देश के लिए मर मिटने वाले मां भारती के इस वीर सपूत की जिसकी कहानियां आपकी आंखें नम कर देंगी। ये कहानी है भारतीय सेना के उस बहादुर सिपाही की जिसने अपने परिवार से पहले अपने देश को आगे रखा उनका नाम है मेजर पद्मपनी आचार्य।
कारगिल में मेजर पद्मपाणि अचार्य का पराक्रम
जून 1999 पाकिस्तानी सैनिकों ने तोलोलिंग की चोटी पर कब्जा कर लिया था। तोलोलिंग सामरिक लिहाज से भी भारत के लिए सबसे महत्वपूर्ण चोटियों में से एक थी। लिहाजा पाक सैनिकों के कब्जे से तोलोलिंग को मुक्त कराने के लिए सेना ने रणनीति बनानी शुरू कर दी।
28 जून 1999 को 2-राजपूताना राइफल्स के मेजर पद्मपनी आचार्य को कंपनी कमांडर के रूप में दुश्मन के कब्जे वाली अहम चौकी को मुक्त कराने की जिम्मेदारी सौंपी गई। खास बात ये थी कि यहां दुश्मन सेना न सिर्फ अत्याधुनिक हथियारों से लैस था बल्कि खतरनाक माइंस भी रास्ते में बिछा रखा था। बावजूद इन सब के मेजर पद्मपनी ने अपनी बटालियन का नेतृत्व करते हुए दुर्गम पहाड़ी रास्तों पर चढ़ाए शुरू कर दी। मेजर की अगुवाई में उनकी बटालियन ने फायरिंग और ग्रेनेड की बारिश के बीच अपना अभियान जारी रखा।
दुश्मन सेना के समीप पहुंचते-2 मेजर पद्मपनी को कई गोलियां लग चुकी थीं। परंतु अपने मिशन को पूरा करने का जज्बा उनके भीतर ऐसे घर कर गया था कि वो अपने दर्द को भूलते हुए आगे बढ़े और 5 से 6 पाक सैनिकों को ढेर करते तोलोलिंग की चोटी को मुक्त कराया।
मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित
मेजर पद्मपाणि को कई गोलियां लग चुकी थीं इसके बावजूद वो आगे बढ़ते रहे और बहादुरी और साहस का परिचय देते हुए उन्होंने पाकिस्तानियों को खदेड़ कर अंततः तोलोलिंग चौकी पर तिरंगा फहराया। हालांकि इस बीच मेजर आचार्य गंभीर रूप से घायल होने के कारण मां भारती की सेवा करते हुए उन्होंने देश के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दे दिया। मेजर पद्मपनी को उनके पराक्रम, अदम्य साहस और वीरता के लिए मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया।
कौन थे मेजर आचार्य ?
मेजर पद्मपनी आचार्य का जन्म 21 जून 1969 को हैदराबाद में हुआ था। वो मूल रूप से ओडिशा के रहने वाले थे, लेकिन उनका परिवार हैदराबाद में रहता था। हैदराबाद की 'उस्मानिया यूनिवर्सिटी' से स्नातक करने के बाद पद्मापणि 1994 में भारतीय सेना में शामिल हो गये। 'ऑफ़िसर्स ट्रेनिंग अकेडमी', मद्रास से ट्रेनिंग लेने के बाद पद्मपनी को 'राजपूताना रायफल' में कमीशन मिला। सन 1996 में मेजर आचार्य ने चारुलता से शादी की थी।