01 जुलाई 1999 कारगिल : 6 पाक सैनिकों को ढेर कर प्वॉइंट 4812 को कराया मुक्त, लेफ्टिनेंट कीशिंग क्लिफोर्ड की शौर्यगाथा
   01-जुलाई-2022

 Lt Keishing Clifford
 
26 जुलाई 1999 को भारतीय सेना ने पाकिस्तान के खिलाफ एक गंभीर और निर्णायक युद्ध जीता। इस युद्ध में, कई बहादुर युवा सैनिकों ने कारगिल युद्ध के मैदान में अपने देश की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी। तब से बाइस साल हो चुके हैं, लेकिन कारगिल के वीरों की वीरता और बलिदान आज भी देश के हर लोगों द्वारा याद किया जाता है। हालांकि, लेफ्टिनेंट कीशिंग क्लिफोर्ड नोंग्रुम और उनके असाधारण साहस के कार्य के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं जो भारतीय सेना को कारगिल युद्ध में एक महत्वपूर्ण बढ़त दिलाने में मदद की थी।
 
 
मेघालय के शिलांग के रहने वाले लेफ्टिनेंट कीशिंग क्लिफोर्ड नोंग्रम का जन्म 7 मार्च 1975 को हुआ था। लेफ्टिनेंट नोंग्रुम को राजनीति विज्ञान में ग्रेजुएट करने के तुरंत बाद जेएके लाइट इन्फैंट्री की 12 वीं बटालियन में नियुक्ती मिली। कारगिल युद्ध शुरू होने पर लेफ्टिनेंट कीशिंग क्लिफोर्ड नोंग्रुम की उम्र मात्र 24 वर्ष थी। युद्ध के दौरान उनकी बटालियन बटालिक सेक्टर में तैनात थी।
 
प्वाइंट 4812 को मुक्त कराने की मिली जिम्मेदारी
 
पाक सैनिकों ने प्वाइंट 4812 को कब्जा कर लिया था। लिहाजा प्वाइंट 4812 को दुश्मनों से मुक्त कराने की जिम्मेदारी लेफ्टिनेंट नोंग्रुम की बटालियन को दी गई। 30 जून, 1999 की रात जिम्मेदारी मिलने के बाद लेफ्टिनेंट नोंग्रुम की यूनिट प्वाइंट 4812 को पाक सैनिकों से मुक्त कराने के लिए दुर्गम पहाड़ी रास्तों पर चढ़ाई शुरू कर दी। इस ऑपरेशन में लेफ्टिनेंट क्लिफोर्ड को प्वाइंट 4812 के क्लिफ फीचर पर हमले को अंजाम देने का काम सौंपा गया था।
 
पाक सैनिकों के गोलीबारी का सामना करते हुए बंकरों तक पहुंचे
 
रात के अंधेरे में ऊंची और खड़ी चोटी पर चढ़ना लगभग असंभव था, परंतु लेफ्टिनेंट नोंग्रुम और उनकी बटालियन ने इस चुनौती को स्वीकार किया। ऊंची दुर्गम पहाड़ी पर चढ़ते हुए वह जल्द ही दुश्मन सेना के बंकरों तक पहुंचने में कामयाब हो गए। हालांकि इस बीच लेफ्टिनेंट और उनकी बटालियन को पाक सैनिकों की ओर से जारी गोलीबारी का सामना भी करना पड़ा। लेफ्टिनेंट नोंग्रुम ने दुश्मनों का सामना करने के लिए दुश्मन के बंकरों पर फायरिंग और ग्रेनेड दागना शुरू कर दिया।
 
बंकर में छिपे 6 पाक सैनिकों को उतारा मौत के घाट
 
इसके अलावा बहादुरी और अपनी सुझबुझ का परिचय देते हुए लेफ्टिनेंट ने बंकरों में छिपे 6 पाक सैनिकों को मार गिराया। हालांकि इस बीच लेफ्टिनेंट नोंग्रुम को कई गोलियां लग चुकी ठीक। गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद लेफ्टिनेंट नोंग्रुम बचे हुए बंकर में मशीन गन छीनने के प्रयास में पाकिस्तानी सैनिकों के साथ हाथ से हाथ मिलाकर लड़ते रहे। अपनी अंतिम सांस तक लड़ने का फैसला किया और वह तब तक बहादुरी से लड़ते रहे जब तक कि युद्ध के मैदान में अपनी चोटों के कारण उन्होंने दम तोड़ दिया।
 
मरणोपरांत महावीर चक्र से हुए सम्मानित
 
दुश्मन के सामने अपनी अदम्य साहस और वीरता का परिचय देने वाले लेफ्टिनेंट कीशिंग क्लिफोर्ड आखिरकार 1 जुलाई 1999 को रण भूमि में देश की सुरक्षा में लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए। लेफ्टिनेंट कीशिंग क्लिफोर्ड को मरणोपरांत 15 अगस्त, 1999 को राष्ट्र के दूसरे सर्वोच्च युद्ध कालीन वीरता पुरस्कार, महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था। अकेले ही 6 दुश्मन सैनिकों को मार गिराने वाले नोंग्रुम ने अपने राष्ट्र की सेवा में सर्वोच्च बलिदान दिया। कारगिल विजय दिवस पर, हम इस वीर योद्धा को याद करते हैं और सलाम करते हैं जिन्होंने अपने देश और अपने साथी देशवासियों की रक्षा के लिए अपना जीवन लगा दिया।