कारगिल युद्ध के महानायक ; परमवीर चक्र विजेता कैप्टन मनोज कुमार पांडे की शौर्यगाथा, जिन्होंने खालोबार चोटी पर फहराया तिरंगा
   02-जुलाई-2022
 
Captain Manoj Kumar Pandey
 
 
कारगिल युद्ध (Kargil War) में भारतीय सेना (Indian Army) असीम साहस और धैर्य का परिचय दिया था। इस युद्ध में अपने अदम्य साहस और नेतृत्व के लिए कैप्टन मनोज कुमार पांडे (Captain Manoj Kumar Pandey) को मरणोपरांत परमवीर चक्र का सम्मान दिया गया था। गौरवशाली गोरखा राइफल के कैप्टन पांडे 3 जुलाई 1999 को ही कारगिल युद्ध में शहीद हुए थे। दुश्मन की गोलियां खाकर बलिदान होने से पहले कैप्टन पांडे ने खालोबार चोटी पर तिरंगा फहरा कर कारगिल युद्ध का रुख पलट दिया।
 
पांडे की पहली तैनाती कश्मीर में हुई
 
पांडेय का जन्म 25 जून 1975 को उत्तर प्रदेश के सीतापुर ज़िले के रुधा गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम गोपीचन्द्र पांडेय और मां का नाम मोहिनी था, लखनऊ सैनिक स्कूल में शिक्षा पाने के बाद मनोज ने पुणे के पास खड़कवासला स्थित राष्ट्रीय रक्षा अकादमी में प्रशिक्षण लिया और 11 गोरखा रायफल्स रेजिमेंट की पहली वाहनी के अधिकारी बने।
 
पांडे की पहली तैनाती कश्मीर में हुई और सियाचिन में भी उन्होंने अपनी सेवाएं दी। जब कारगिल युद्ध छिड़ा तो वे सियाचिन से लौट रहे थे। इससे पहले उन्हें जो भी कार्य सौंपा गया था उन्होंने उन सभी को बहुत शिद्दत से पूरा किया था। वे हमेशा आगे बढ़ कर अपने सैनिकों के नेतृत्व करने वालों में से एक रहे। शुरुआत में उन्होंने कुकरथांग, जूबरटॉप जैस चोटियों को दुश्मन के हाथों से वापस लने का काम सफलता पूर्वक किया।
 
खालोबार चोटी को मुक्त कराने की जिम्मेदारी सौंपी गई
 
इसके बाद उन्हें खालोबार चोटी को पाक सेना से मुक्त कराने की जिम्मेदारी सौंपी गई। इस पूरे मिशन का नेतृत्व कर्नल ललित राय कर रहे थे। कर्नल राय ने बताया कि खालोबार टॉप रणनीतिक नजरिए से बहुत अहम था। भारतीय सेना जानती थी कि इस पर कब्जा करने से पाकिस्तानी सेना के दूसरे ठिकाने खुद ब खुद कमजोर हो जाएंगे और उन्हें रसद पहुंचाने और वापसी में परेशानी हो जाएगी।
 
 
 
 
गोरखा राइफल्स की दो कंपनियों को चुना गया
 
खालोबार चोटी पर हमले के लिए गोरखा राइफल्स की दो कंपनियों को चुना गया। कर्नल राय भी इन टुकड़ियों के साथ थे जिसमें पांडे भी शामिल थे। थोड़े ऊपर चढ़ने पर चोटी पाकिस्तानी सैनिकों गोलीबारी करना शुरू कर दी। सभी भारतीय सैनिकों को इधर उधर बिखरना पड़ा। उस समय करीब 60 से 70 मशीन गनें गोलियां बरसा रहीं थी। गोलियों के साथ भारतीय सैनिकों पर गोले भी बरस रहे थे।
 
 
पाक सेना के 6 बंकरों को ध्वस्त करने का मिला आदेश 
 
ऊपर से बहुत ही घातक गोलीबारी के बीच कर्नल राय दुविधा में थे। ऐसे हालात में ऊपर यूं ही चढ़ते रहना जान खोने के ही बराबर था। ऐसे में कर्नल राय के पास सबसे नजदीक कैप्टन मनोज पांडे थे। उन्होंने मनोज से कहा कि तुम अपनी प्लाटून को ले जाओ, ऊपर 4 बंकर दिखाई दे रहे हैं जिन पर धावा बोलकर उन्हें खत्म करना है।
 
 
कैप्टन पांडे बिना देरी करते हुए तुरंत ऊपर चढ़ने लगे। मनोज ने बर्फीली ठंडी रात में ऊपर चढ़ कर रिपोर्ट दी की वहां 4 नहीं 6 बंकर हैं। इनमें से 2 बंकर कुछ दूर थे जिन्हें खत्म करने के लिए मनोज ने हवलदार दीवान को भेजा जिन्होंने दोनों बंकर नष्ट तो कर दिया पर वे खुद को दुश्मन की गोली से नहीं बचा सके।
 
4 में से 3 बंकर ध्वस्त
 
बाकी बंकरों के लिए मनोज रेंगते हुए अपने साथियों के साथ आगे बढ़े। मनोज ने बंकरों तक पहुंचकर उनके लूपहोल में ग्रेनेड डाल कर बंकरों को उड़ाया लेकिन चौथे बंक में ग्रेनेड फेंकते समय उन्हें गोलियां लग गई और वे खून से लथपथ हो गए। कुछ गोलियां उनके माथे पर भी लगीं लेकिन उन्होंने गिरते हुए कहा ना छोड़नूं और वे जमीन पर गिर गए। इसके बाद चौथे बंकर में फेंका उनका ग्रेनेड फट पड़ा और बच कर भागने वाले पाक सैनिक भी ढेर हो गए।
 
कैप्टन पांडे को मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया 
 
कैप्टन पांडे बलिदान होते होते 24 साल 7 दिन की उम्र में ही अपने देश के लिए बलिदान की अनोखी कहानी लिख गए कैप्टन पांडे के कारनामे ने युद्ध में भारत का पलड़ा भारी कर दिया जिसके बाद भारतीय सेना ने पीछे हटकर नहीं देखा और अंततः कारगिल युद्ध में भारत की ही जीत हैकैप्टन पांडे को मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया