आर्टिकल 35A व 370 पर आधारित फिल्म राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित; बेस्ट सोशल इश्यू कैटेगरी में Justice Delayed But Delivered ने जीता सर्वोच्च पुरस्कार
   23-जुलाई-2022
 
Justice Delayed But Delivered
 
शुक्रवार को देश के सर्वाधिक प्रतिष्ठित 68वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार के विजेताओं की घोषणा कर दी गई है। इस बार विजेताओं में एक पुरस्कार आर्टिकल 35A व 370 के पीड़ितों के जीवन पर आधारित फिल्म दिया गया। Non-feature Films की बेस्ट फिल्म सोशल इश्यू कैटेगरी में Justice Delayed But Delivered फिल्म को चयनित किया गया। फिल्म निर्देशक कामाख्या नारायण सिंह और प्रोड्यूसर मंदीप चौहान को इस फिल्म के लिए अन्य सभी विजेताओं के साथ इस साल के अंत में राष्ट्रपति द्वारा एक समारोह में पुरस्कार प्रदान किया जायेगा।
 
 
Justice Delayed But Delivered: आर्टिकल 35A व 370 समाप्ति के बाद मिले पीड़ितों को समता व समानता के अधिकार
 
करीब 15 मिनट की अवधि की इस डॉक्यूमेंट्री फिल्म में आर्टिकल 35A व 370 के उन लाखों पीड़ितों के संघर्ष को दर्शाया गया है, जिनको स्वतंत्रता के 72 साल बाद समता व समानता के मूलभूत अधिकार मिले। जब देश की संसद में 5 अगस्त 2019 को संसद में आर्टिकल 370 व 35A को समाप्त किया गया।
 
फिल्म एक दलित लड़की राधिका गिल की कहानी से शुरु होती है, कैसे वाल्मिकी समाज से जुड़ी ये होनहार लड़की जम्मू कश्मीर में नौकरी करने व उच्च शिक्षा से वंचित थी। कैसे 5 अगस्त 2019 से पहले एक सफाई कर्मी के बच्चे को सिर्फ सफाई करने वाले की नौकरी करने का ही अधिकार व अवसर मिलता था। कारण था भारत के संविधान का आर्टिकल 35A व आर्टिकल 370 जैसा काला कानून।
  
लेकिन 5 अगस्त 2019 के बाद न सिर्फ राधिका गिल को बराबरी का अधिकार मिला, बल्कि जम्मू कश्मीर की आधी आबादी को भी पुरूषों के समान बराबरी का अधिकार मिला। इसी को दर्शाते हुए फिल्म में एक पीआरसी होल्डर रश्मि शर्मा की कहानी भी शामिल की गयी है। रश्मि शर्मा ने एक नॉन-पीआरसी होल्डर यानि जम्मू कश्मीर से बाहर के पुरूष से शादी ली, तो उनके पति व बच्चों को जम्मू कश्मीर में परमानेंट रेजीडेंट सर्टिफिकेट (पीआरसी) नहीं मिल पाया। वजह थी, आर्टिकल 35A। Justice Delayed But Delivered फिल्म में इस ज्वलंत विषय को बेहद संवेदनशीलता से उठाया गया है। जिसने राष्ट्रीय पुरस्कारों की जूरी के दिलों को भी छू लिया।
 
 
Radhika Gill & Kamkhya Narayan SIngh
 
 
राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार 2022 से सम्मानित इस फिल्म Justice Delayed But Delivered को आप यहां इस यूट्यूब लिंक पर जाकर देख सकते हैं।
 
 
 
 
राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिलने पर निर्देशक कामाख्या नारायण सिंह का वक्तव्य
 
 
एक फिल्मकार के तौर पर ये सिर्फ मेरा नहीं, जम्मू कश्मीर के उन लाखों आर्टिकल 35A पीड़ितों का सम्मान है। जिन्होंने स्वतंत्रता के बाद भी 7 दशकों तक बराबरी के अधिकारों के लिए संघर्ष किया। उनका संघर्ष आज रंग लाया है।
 
करीब 10 साल पहले मुझे जम्मू कश्मीर में आर्टिकल 35A के पीड़ितों के बारे में पता चला। जिसपर 2016 में मैंने इन पीड़ितों पर पहली डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाई थी, तब मैं पहली बार राधिका गिल से मिला था। जब मेरी राधिका से बात होती तो महसूस होता कि ये होनहार लड़की कितनी ऊंचाईयों को छू सकती है, लेकिन आर्टिकल 35A के काले कानून ने राधिका का दोयम दर्जे का वंचित नागरिक बना रखा था।
 
राधिका वाल्मिकी समाज से आती हैं, जिनको 1957 में जम्मू कश्मीर की तत्कालीन सरकार पंजाब से सफाई का काम कराने के लिए राज्य में बसाया गया था, इस वायदे के साथ कि उनको भी राज्य के अन्य स्थायी नागरिक की तरह पीआरसी दे दी जायेगी। लेकिन आर्टिकल 35A के चलते ये कभी संभव ही नहीं हो सका। भारत का नागरिक होने के बावजूद भी राधिका गिल बीएसएफ ज्वाइन नहीं कर पायीं, क्योंकि उसके पास जम्मू कश्मीर का परमानेंट रेज़िडेंट सर्टिफिकेट यानि पीआरसी नहीं थी।
 
 
5 अगस्त 2019 को जब देश की संसद ने काले कानून आर्टिकल 35A व आर्टिकल 370 को निष्क्रिय किया, तब जम्मू कश्मीर के वाल्मिकी समाज समेत लाखों पीड़ितों को देश के संविधान द्वारा प्रदत्त बराबरी का मूलभूत अधिकार मिला। मेरे पास अगस्त 2019 से पहले इन पीड़ितों की वीडियो क्लिप पहले से थीं, जिनको शामिल करते हुए मैंने आर्टिकल 35A व 370 के खात्मे के बाद बदले हालात पर ये नयी फिल्म Justice Delayed But Delivered बनायी।
 
 
रंग लाई फिल्म निर्देशक कामाख्या नारायण सिंह की मेहनत
 
 
फिल्म में एक ज्वलंत व बेहद संवेदनशील विषय को बारीकी से पर्दे पर उतारने वाले निर्देशक हैं कामाख्या नारायण सिंह। करीब डेढ़ दशक से मुंबई में बसे फिल्मकार कामाख्या नारायण सिंह इससे पहले भी 2016 में आर्टिकल 35A के पीड़ितों पर एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म बना चुके हैं। जिसने जम्मू कश्मीर के लाखों पीड़ितों की कहानी को देशभर में पहुंचाने का काम किया था। इस फिल्म को भी क्रिटिक जगत में काफी सराहा गया था।
 


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फ़िल्मकार कामाख्या नारायण सिंह अपनी अन्य फीचर फिल्म 'भोर' की एक्टर पवलीन गुजराल के साथ 
 
 
कामाख्या नारायण सिंह ने इसके बाद "भोर" नामक फीचर फिल्म बनायी थी। जिसमें नेशनल फिल्म फेस्टिवल से लेकर कई अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में सफलता के झंडे गाड़े थे। मूलत: बिहार से जुड़े, गुवाहाटी में जन्में व पले-बढ़े 37 वर्षीय कामाख्या नारायण सिंह ने आर्टिकल 35A व आर्टिकल 370 की समाप्ति के बाद Justice Delayed But Delivered फिल्म का निर्माण किया, जिसने देश का सर्वोच्च फिल्म सम्मान हासिल किया।
 
कामाख्या नारायण सिंह देश के सबसे फूड़ एंड ट्रेवल डॉक्यूमेंट्री फिल्ममेकर माने जाते हैं। जोकि करीब 50 से ज्यादा देशों में अंतरराष्ट्रीय स्तर के फिल्म प्रोजेक्ट्स को लीड कर चुके हैं।