26 जुलाई, 1999 विजय दिवस ; पाकिस्तानी सेना के दिमाग की उपज कारगिल युद्ध

26 Jul 2022 11:13:20
 
Kargil Vijay Divas 1999
 
 
26 जुलाई, 1999 यानि ''कारगिल विजय दिवस'' ये दिन भारत के प्रत्येक नागरिक के लिए भारतीय सेना के उस अद्वितीय शौर्य , बलिदान और विजयगाथा के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन, सम्मान और एक समर्थ राष्ट्र का नागरिक होने का अप्रतिम गौरव बोध स्मरण करने का दिन है। यह वो दिन है जब भारतीय सेना के वीर जवानों ने पाकिस्तान की कुटिल महत्वाकांक्षा , खोखले दुस्साहस और भारत को खंडित करने के एक दिवास्वप्न को अपने पैरों तले रौंद कर कारगिल की चोटियों पर भारत की विजय पताका फहरा दी थी।
 
आज ही के दिन भारत-पाक नियंत्रण रेखा (LOC) से लगी कारगिल की पहाड़ियों पर कब्ज़ा जमाए बैठे पाकिस्तानी सैनिकों को मां भारती के जाबांज सिपाहियों ने मार भगाया था। यह वह दिन भी है जब पूरा विश्व समुदाय यह अनुभव करने पर विवश हुआ कि भारत को परमाणु आक्रमण जैसे गंभीर संकट की संभावनाओं के डर से भी डराया नहीं जा सकता। वह अपनी एकता और अखंडता की रक्षा के लिए विश्व की किसी भी महाशक्ति के दबाव अथवा प्रभाव के आगे नहीं झुकेगा।
 
 
 22 अक्तूबर 1947 को जम्मू कश्मीर पर पहला आक्रमण
 
बंटवारे के दौरान पाकिस्तान अस्तित्व में आने के बाद इस उम्मीद में था कि जम्मू कश्मीर पाकिस्तान का हिस्सा हो जाएगा। परंतु पाकिस्तान का यह सपना केवल सपना ही रह गया। जब पाकिस्तान को लगा कि महाराजा हरी सिंह जम्मू कश्मीर का अधिमिलन भारत में करेंगे तो उसने 22 अक्तूबर 1947 को जम्मू कश्मीर पर पहला आक्रमण कर दिया। जम्मू कश्मीर के भारत में अधिमिलन के पश्चात जब भारतीय सेना जम्मू कश्मीर पहुँची तब तक राज्य का बहुत बड़ा हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में चला गया था । हालांकि बावजूद इसके भारतीय सेना ने राज्य के बहुत से हिस्सों से पाकिस्तानी सेना को पीछे खदेड़ा।
 
 
तब ब्रिटिश षड्यंत्र के चलते 31 दिसंबर 1948 को भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू पाकिस्तान के हमले के विरोध में युनाइटेड नेशंस (UN) में ले गए। नेहरु वहाँ पर अंतर्राष्ट्रीय शक्तियों के भ्रमजाल में फँस गए। परिणामस्वरूप जम्मू कश्मीर का एक बहुत बड़ा हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में चला गया, जिसे हम पाकिस्तान अधिक्रांत जम्मू कश्मीर (PoJK) के नाम से जानते है।इनमें मीरपुर , भिम्बर , कोटली , बाघ , मुज्जफराबाद , गिलगित और बल्तिस्तान आदि क्षेत्र पाकिस्तान अधिक्रांत जम्मू कश्मीर में आते है ।
 
 
पाक सेना की ग़लतफ़हमियां और उसके परिणाम
 
 
जावेद अब्बास पाकिस्तानी सेना का एक आफिसर था। जब यह आफिसर कमांड एंड स्टाफ कॉलेज में लेफ्टिनेंट कर्नल के पद पर था तो उसे रिसर्च का एक काम सौंपा गया था जिसे उसने 3 साल में पूरा किया था। रिसर्च प्रोजेक्ट का नाम था “ इंडिया – ए स्टडी इन प्रोफाईल''। इस स्टडी के अनुसार पाकिस्तानी सेना का मानना है कि भारत की अपनी समस्याए है और उन समस्याओं का लाभ उठा कर भारत की विशाल और शक्तिशाली सेना को कंट्रोल में किया जा सकता है। यह स्टडी 1990 में प्रकाशित हुई थी लेकिन पाकिस्तानी सेना की मनोस्थिति पहले से ही कुछ अलग नहीं थी ।
 
 
19947 के बाद से पाकिस्तान और विशेषकर पाकिस्तानी सेना जम्मू कश्मीर को अपना अधूरा अजेंडा मानती रही है और भारत के जम्मू कश्मीर में कोई न कोई समस्या खड़ी करने की कोशिश करती रहती है।अयूब खान पाकिस्तानी सेना के पहले जनरल थे जिन्होंने इस्कंदर मिर्ज़ा को सत्ता से बाहर कर पाकिस्तान पर कब्ज़ा किया था। अयूब खान भारत के लोगो को बीमारी ग्रस्त मानता था। उसकी सोच थी कि भारत इतना कमजोर है, भारतीयों का मनोबल इतना कमजोर है कि वो मजबूत प्रहार नहीं सह सकते और बिखर जाते है। इसी ग़लतफ़हमी का शिकार होकर अयूब खान ने भारत पर आक्रमण किया था।
 
तत्कालीन पाकिस्तानी विदेश मंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने अयूब खान को पूरा विश्वास दिलाया था कि भारत अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर आक्रमण नहीं करेगा । अयूब खान और उसकी पाकिस्तानी सेना इतनी गफलत में थी कि 3 सितम्बर 1965 में जब भारतीय सेना लाहौर के बाहरी इलाको तक पहुँच चुकी थी और पाकिस्तानी सेना के जवान सुबह के समय रूटीन एक्सरसाइज कर रहे थे। भारत की जवाबी कार्यवाही से अयूब खान इतने घबरा गए थे कि अपने कैबिनेट की बैठक में अयूब खान ने कहा था- “ 5 मिलियन कश्मीरियो के लिए पाकिस्तान अपने 100 मिलियन लोगो को कभी खतरे में नहीं डालेगा। “ इस हार के बाद अयूब खान कभी अपनी छवि नहीं सुधार पाया ।
 
कारगिल युद्ध – पाकिस्तानी सेना के दिमाग की उपज
 
1965 और 1971 के युद्ध में पाकिस्तान का घमंड चूर-चूर तो हुआ लेकिन पाकिस्तानी सेना की कुपित मानसिकता में परिवर्तन नहीं आया था। 1999 में कारगिल युद्ध से पहले भी 2 बार भारत पर कारगिल से हमला करने का पाकिस्तान द्वारा प्रपोजल बनाया गया था और पाकिस्तान में राजनीतिक आकाओं को पूरा प्लान भी प्रस्तुत किया गया था लेकिन दोनों बार यह प्लान रिजेक्ट हो गया था। एक बार ज़िया उल हक के समय और दूसरी बार बेनज़ीर भुट्टो के समय। भुट्टो के सामने जब यह प्लान रखा गया तब पाकिस्तानी सेना का डीजीएमो था परवेज़ मुशर्रफ , यह वही व्यक्ति था जो कारगिल के समय पाकिस्तानी सेना का प्रमुख था।
 
 
कारगिल युद्ध के जिम्मेवार 4 लोग थे
 
2 बार कारगिल का प्लान रोका जा चुका था लेकिन 1999 में जब कारगिल पर दोबारा हमले का प्लान बनाया गया तो परवेज़ मुशर्रफ़ पाकिस्तानी सेना का प्रमुख था । इसके मुख्य करता धर्ता थे - मुशर्रफ़ के अलावा लेफ्टिनेंट जनरल मोहम्मद अज़ीज़ खान , लेफ्टिनेंट जनरल महमूद खान और मेजर जनरल जावेद हसन।
 
इन चारो के अलावा लेफ्टिनेंट कर्नल जावेद अब्बास भी कारगिल युद्ध के लिए जिम्मेदार है जिसकी स्टडी ‘इन्डिया – अ स्टडी इन प्रोफाइल’ से परवेज़ मुशर्रफ़ बहुत प्रभावित था, उसे लगता था कि वो भारत पर हमला करेगा और भारत बिखर जाएगा। पाकिस्तानी सेना इस वहम में भी थी कि वो भी अब भारत की तरह परमाणु शक्ति है और इस दबाव में भारत जवाबी हमला नहीं करेगा। लेकिन 1965 और 1971 की तरह पाकिस्तानी आंकलन 1999 में भी पूरी तरह से गलत साबित हुआ।
 
 
पाकिस्तानी हमले का उद्देश्य
 
 
1. नेशनल हाईवे 1 की सप्लाई बंद करवाना । यह हाईवे श्रीनगर को लेह से जोड़ता है।
 
2. पाकिस्तानियों को लगता था कि सप्लाई बंद होने से भारतीय सेना बहुत जल्दी किसी भी तरह का जवाबी हमला नहीं कर पायेगी।
 
3. पाकिस्तानियों को लगता था कि भारत में इतनी क्षमता नहीं है कि वो पाकिस्तानी सेना को उनकी जगह से हटा पाए।
 
4. इसके अतिरिक्त यह भी कहा जाता है कि ही हमले का वृहद् पक्ष, एक दूसरा पहलू भी था जोकि राज्य के सबसे छोटे हिस्से कश्मीर से जुड़ा हुआ था जिसका खुलासा आज तक नहीं हो पाया क्योंकि कारगिल हमले के बाद भारतीय सेना इतना मुहतोड़ जवाब देगी इसकी कल्पना पाकिस्तानी सेना के अधिकारियों को नहीं थी ।
 
5. इस वृहद् पक्ष के अनुसार अफगानिस्तान में तालिबान प्रमुख मुल्ला महसूद रब्बानी से कश्मीर में जेहाद लड़ने के लिए पाकिस्तान ने 20 से 30 हजार लड़ाको की माँग की थी । रब्बानी ने 5० हजार लड़ाकों का वायदा कर दिया था । पाकिस्तानी आर्मी के अधिकारी इस प्रस्ताव से बेहद खुश थे ।
 
6. कारगिल को लेकर परवेज़ मुशर्रफ़ बेचैन था । 1965 के युद्ध से पहले कारगिल की चोटियों पर पाकिस्तानी सेना थी, सुरक्षा और सामरिक रूप से महत्वपूर्ण जगह पर थी । लेकिन 1965 और 1971 के युद्ध में भारत ने यह महत्वपूर्ण चोटियाँ अपने कब्ज़े में ले ली थी। मुशर्रफ इन चोटियों को वापिस लेना चाहता था।
 
 
7. कश्मीर को ऐसा अंतर्राष्ट्रीय मसला बनाना जिसे लेकर परमाणु युद्ध की आशंका है और जिसमें तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप की तत्काल आवश्यकता है
 
8. नियंत्रण रेखा की पवित्रता को भंगकर कारगिल के अनियंत्रित क्षेत्रों को कब्जे में लेना
 
 
भारत की जवाबी कार्यवाही
 
 
पाकिस्तान को भारत की जवाबी कार्यवाही का अंदाजा बिलकुल भी नहीं था । परवेज़ मुशर्रफ़ ने अपनी हार स्वीकार करते हुए यह कहा था कि “भारत ने न केवल सैन्य बल्कि अंतर्राष्ट्रीय डिप्लोमेसी से भी पाकिस्तान को करारा जवाब दिया ।
Pakistan was clueless about India’s capability to retaliate.At one point Musharaf conceded and said that India retorted not only through military action but also through the international diplomacy.
 
 
कारगिल हमले के बाद थोड़े समय के लिए भारतीय राजनितिक नेतृतव और सेना दोनों थोड़ा असमंजस में रहे लेकिन फिर डट कर पाकिस्तानी हमले का जवाब दिया । एक-एक कर कारगिल की चोटियों को खाली कराया जाने लगा। 13 जून, 1999 को तोलोलिंग चोटी को भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तान के कब्जे से छुड़ा लिया, जिससे आगे के युद्ध में उन्हें बेहद मदद मिली। जल्दी ही 20 जून, 1999 को प्वांइट 5140 भी उनके कब्जे में आने से तोलोलिंग पर उनका विजय अभियान पूरा हो गया। चार जुलाई को एक और शानदार विजय दर्ज की गई, जब टाइगर हिल को घुसपैठियों से मुक्त कर दिया गया। पाकिस्तान घुसपैठियों को खदेड़ना जारी रखते हुए भारतीय सैनिक आगे बढ़ते रहे उन्हें दोबारा भारत के कब्जे में ले लिया गया।
 
 
भारत की 14 रेजिमेंट्स ने शक्तिशाली बोफोर्स से कारगिल में घुसपैठ कर बैठे पाकिस्तानी सेना को निशाना बनाना शुरू कर दिया था। भारत ने एलओ सी के भीतर वायुसेना के विमानों से भी हमले शुरू कर दिए। पाकिस्तान अपनी वायुसेना का प्रयोग नहीं कर पाया क्योंकि पाकिस्तान ने दुनिया के सामने झूठ बोला था कि कारगिल में कश्मीरी मुजाहिद्दीन अपनी आज़ादी के लिए लड़ रहे हैं । यदि पाकिस्तान अपनी वायुसेना का उपयोग करता तो पूरी दुनिया के सामने उसका झूठ पकड़ा जाता ।
 
 
बड़ी संख्या में मारे गए पाक सैनिक  
 
पाकिस्तान ने बहुत बड़ी संख्या में अपने सैनिक खोये। पाकिस्तान की नॉर्दर्न लाइट इन्फेंट्री पूरी तरह से खत्म हो गयी थी। कारगिल युद्ध के समय पाकिस्तान के विदेश सचिव रहे शमशाद अहमद खान ने कारगिल युद्ध के बारे में कहा कि दुनिया के किसी भी विदेश विभाग के लिए ऐसा समय सबसे ख़राब होता है । हमने पूरी क्षमता से अपना काम किया किन्तु पूरी दुनिया ने हमें इस युद्ध का दोषी घोषित कर दिया था। पूरी दुनिया का दबाव हम पर था उन्होंने हमें युद्ध के मैदान से पीछे हटने के लिए कहा और हमारे राजनैतिक नेतृतव ने पीछे हटने का सही फैसला लिया “।
 
 
कारगिल युद्ध – हर मोर्चे पर पाकिस्तान की किरकिरी
 
 
कारगिल युद्ध ने पाकिस्तान को एक राष्ट्र के रूप में पूरी तरह से बेनकाब कर दिया था । तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री और सेना प्रमुख दोनों एक दूसरे पर आरोप लगाते रहे। नवाज़ शरीफ का स्टैंड है कि उन्हें कारगिल हमले के बारे में कुछ नहीं पता था , दूसरी तरफ मुशर्रफ़ का कहना है की नवाज़ शरीफ को सब पता था । अब नवाज़ शरीफ को पता था हीया नहीं दोनों ही सूरत में पाकिस्तान की किरकिरी होती है । यदि पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री नवाज़ शरीफ को इस हमले का नहीं पता था तो यह बात और पुख्ता हो जाती है कि “पाकिस्तान के पास सेना नहीं है बल्कि सेना के पास एक पाकिस्तान है”।
 
तत्कालीन पाकिस्तानी विदेश मंत्री का बयान 
 
तत्कालीन पाकिस्तानी विदेश मंत्री का भी कहना है कि देश का विदेश मंत्री होने के बाद भी उन्हें 17 मई की सुबह कारगिल हमले के विषय में जानकारी प्राप्त हुई और उनसे कभी भी इस स्थिति के डिप्लोमेटिक स्तर पर क्या परिणाम होंगे इसके बारे में कभी भी नहीं पूछा गया। पाकिस्तानी सेना में इस कदर अफरा तफरी थी कि पाकिस्तान के तत्कालीन एडमिरल फैसुद्दीन बुखारी ने मुशर्रफ़ से सीधे -२ पूछ लिया था कि मुझे इस आपरेशन की कोई जानकारी नहीं है परन्तु मैं पूछता हूँ कि इतने बड़े मोबिलाइजेशन का क्या उद्देश्य है? हम एक उजाड़ सी जगह के लिए युद्ध करना चाहते है जिसे हमें वैसे भी सर्दियों के समय खाली करना पड़ेगा । मुशर्रफ़ के पास इस बात का कोई जवाब नहीं था ।
 
 
विश्व के सामने बेनकाब हुआ पाकिस्तान 
 
पूरी दुनिया के साथ-साथ पाकिस्तान के साथी चीन ने भी पाकिस्तान को कारगिल की चोटियों से अपनी सेना वापिस बुलाने के लिए कहा था। शुरुआत में पाकिस्तान लगातार कह रहा था कारगिल के पहाड़ो में मुजाहिदीन लड़ रहे है लेकिन वैश्विक दबाव में जब पाकिस्तान को अपने सैनिक वापस बुलाने पड़े तो वह पूरे विश्व के सामने बेनकाब हुआ कि पाकिस्तान मुजाहिदीनो को कंट्रोल कर सकता है। इस से पूरे विश्व में एक बात स्पष्ट होने लगी कि पाकिस्तान कश्मीर में मुजाहिदीनो के नाम पर आतंक फैला रहा है।
 
 
परवेज़ मुशर्रफ़ कारगिल को अपनी सैनिक विजय मानता है किन्तु सत्य यह है कि पाकिस्तान ने अपने सैनिको को कारगिल की ऊँचाइयों पर मरने के लिए छोड़ दिया था । कई जवानो की पोस्ट मार्टम रिपोर्ट्स से पता चला उनके पेट में घास थी यानी कि जवानों के पास खाने को भी कुछ नहीं था।
 
 
परवेज़ मुशर्रफ़ ने अपनी किताब में लिखा कि मिलिट्री ने जो अर्जित किया, डिप्लोमेसी में हमने वो गँवा दिया । लेकिन दूसरी तरफ नवाज ने एक इंटरव्यू में बोला कि जब तक मैं अमेरिका के पास मदद मांगने गया और अमेरिका मदद करने को तैयार हुआ, तब तक भारतीय फौजें कारगिल से लगभग सब जगह से पाकिस्तानियों को निकाल चुकी थी और तेजी से आगे बढ़ रही थी ऐसे मे मैने पाकिस्तानी सेना के सम्मान को बचाया।
 
 
मुशर्रफ़ का कहना है कि उसने नवाज़ से नहीं कहा था कि वो अमेरिका से बातचीत करे । लेकिन दूसरी ओर नवाज़ ने कहा कि जब वह अमेरिका जा रहे थे तो मुशर्रफ़ उनको एअरपोर्ट छोड़ने आया और उसने अमेरिका से बात करने को कहा ताकि पाकिस्तानी सेना के जवान कारगिल की चोटियों से सुरक्षित निकल सके, जहाँ अब भारतीय फौजे आगे बढ़ रही थी। पाकिस्तान जब से अस्तित्व में आया तब से किसी भी तरह की जवाबदेही वहाँ तय नहीं की जाती है । जिस आर्मी चीफ ने इतना बड़ी ग़लती की, वह पाकिस्तान का राष्ट्रपति बना एक और सेना अधिकारी जिसके नेतृत्व में यह लड़ाई लड़ी गयी उसे प्रमोशन मिला। ।
 
कुल मिलकर कहा जा सकता है कि पाकिस्तान “फैनेटिक फोर “(चार सेना के अधिकारी जिन्होंने कारगिल प्लान बनाया था) की फैंटसी का शिकार हुआ और इस तरह एक असफल देश का शातिर प्रयास भी अफसल रहा ।
 
 
 
 
 
 
 
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