1990 का दौर कश्मीरी हिंदुओं के लिए बेहद ही भयावह दौर में से एक था। 1990 के दौर में इस्लामिक कट्टरपंथियों ने कश्मीर घाटी में जो कत्लेआम मचा रखी थी उसे याद कर के आज भी दिल सिहर उठता है। आतंकियों ने ना उन दिनों ना सिर्फ नौजवानों को मौत के घाट उतारना शुरू कर दिया था बल्कि निर्दोष मासूम बच्चों, महिलाओं और बहन-बेटियों समेत बुजुर्गों तक को मौत के घाट उतारना शुरू कर दिया था। जम्मू कश्मीर में आतंक का दौर इस कदर कहर बरपा रहा था कि आतंक के डर से लाखों हजारों की संख्या में कश्मीरी हिन्दू अपना घर छोड़कर भागने पर मजबूर हो गए थे। इनमें से जो भी कश्मीरी हिन्दू अपनी सरजमीं को छोड़ने से इंकार कर देता आतंकी उन्हें मौत के घाट उतार देते और फिर उनकी संपत्तियों को हड़प लेते थे।
प्रखंड विद्वान जानी मानी शख्सियतों में से एक दीनानाथ मुजू
ऐसे ही सैंकड़ों हजारों कश्मीरी हिंदुओं में से एक थे प्रखंड विद्वान, कई विषयों के ज्ञाता और कश्मीर घाटी की जानी-मान शख्सियत पंडित दीनानाथ मुजू। पंडित दीनानाथ मुजू ने अपना संपूर्ण जीवन शिक्षा, दर्शन और कश्मीरी भाषा के लिए समर्पित कर दिया था। ज्ञान और बेहतरीन छवि के कारण पंडित दीनानाथ मुजू कश्मीर की जानी-मानी शख्सियतों में से एक बन गए थे। समाज में अत्यधिक प्रतिष्ठा, कश्मीरी शैव दर्शन और कश्मीरी भाषाविद् होने के नाते दीनानाथ मुजू इस्लामिक कट्टरपंथियों की आंखों में खटकने लगे थे और यही कारण था कि आतंकी उनको खुद के लिए खतरे के तौर पर देख रहे थे।
दीनानाथ मुजू को आतंकियों ने घाटी छोड़ने की दी धमकी
78 वर्षीय पंडित दीनानाथ अपनी धर्म पत्नी और बच्चों के साथ श्रीनगर के रावलपोरा इलाके में रहते थे। जुलाई 1990 से पहले ही घाटी में कश्मीरी हिंदूओं की नृशंस हत्यायें शुरू हो चुकी थी। हरेक जानी-मानी हिंदू शख्सियतों को आतंकियों द्वारा चुन-चुन कर मौत के घाट उतारा जा रहा था।
इसी बीच पंडित दीनानाथ मुजू को भी कट्टरपंथियों द्वारा कश्मीर घाटी को छोड़ने की लगातार धमकियां मिल रही थीं। लिहाजा एक वक्त ऐसा आया जब पंडित दीनानाथ ने अपने बच्चों और पत्नी की सलामती के लिए आखिरकार अपने बच्चों को कश्मीर छोड़ने के लिए राजी कर लिया। पिता के लाख कहने पर पंडित दीनानाथ के बच्चों ने एक वक्त के बाद कश्मीर छोड़ कहीं और चले गए।
7 जुलाई 1990 को आतंकियों ने पंडित दीनानाथ मुजू की हत्या कर दी
परंतु इस बीच स्वयं पंडित दीनानाथ मुजू अपनी जन्मभूमि और कर्मभूमि श्रीनगर को छोड़ने का साहस नहीं जुटा सके और उन्होंने प्रण किया कि चाहे कुछ भी हो जाए वो अपनी जन्मभूमि को नहीं छोड़ेंगे। पंडित दीनानाथ का यह फैसला उस दौरान घाटी में आतंक फैलाने वाले इस्लामिक कट्टरपंथियों को रास नहीं आया। पंडित दीनानाथ मुजू के फैसले से आतंकी इतने व्याकुल हो चुके थे कि 6 और 7 जुलाई की दरम्यानी रात आतंकियों ने रावलपोरा हाउसिंग कॉलोनी में स्थित पंडित दीनानाथ मुजू के घर में घुसे और पंडित दीनानाथ की गोली मारकर नृशंस हत्या कर दी।
आतंकियों का साफ संदेश था घाटी छोड़कर भाग जाओ
हत्या करने के उपरांत आतंकी मौके से फरार हो गये। उन दिनों सभी कश्मीरी हिंदुओं को आतंकियों का साफ संदेश था कि जो भी घाटी में इस्लामिक वर्चस्व का विरोधी होगा, या फिर धमकियों को दरकिनार कर कश्मीर घाटी में टिका रहेगा उसको रास्ते से हटा दिया जायेगा। उन इस्लामिक कट्टरपंथियों का यह साफ संदेश था कि अगर घाटी में रहना है तो इस्लाम कबूल करो और अगर नहीं तो अपनी जन्मभूमि छोड़कर कहीं भाग जाओ।
7 जुलाई 1990 को कश्मीरी हिन्दू और एक जानी-मानी शख्सियत होने के नाते दीनानाथ जी की हत्या श्रीनगर में सुर्खियां तो बनीं, जम्मू कश्मीर पुलिस ने इस मामले में कईं लोगों को गिरफ्तार भी किया परंतु आज तक आज तक कोई नतीजा नहीं निकल सका। आज आतंक के उस भयावह दौर को 32 वर्ष से ज्यादा हो चुका है। इन 32 वर्षों में तमाम कश्मीरी हिन्दू वापस अपने घर अपनी जन्मभूमि पर जाने का सपना देख रहे हैं परंतु उनका सपना आज भी कहीं अधूरा है।
दिवंगत पंडित दीनानाथ मुजू की पुण्यतिथि पर उन्हें नमन
लिहाजा अब एक बार फिर उनके दिलों में आस जगी है कि मौजूदा सरकार के कार्यकाल में उनका ये सपना अवश्य पूरा होगा। परंतु बावजूद इसके 1990 के दौरान तमाम कश्मीरी हिंदुओं ने जो आतंक का दर्द सहा है उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता ना ही उसकी कल्पना की जा सकती है। आज दिवंगत पंडित दीनानाथ मुजू की पुण्यतिथि पर हम उन्हें नमन करते हैं।