07 जुलाई 1999 कारगिल युद्ध के दौरान मां भारती के वीर सपूतों के शौर्य, पराक्रम और बलिदान की बातें जब-जब सामने आयेंगी तो उनमें एक नाम बड़े गर्व के साथ लिया जायेगा और वो नाम कोई और नहीं बल्कि कारगिल युद्ध के परमवीर और ''शेरशाह'' नाम से प्रसिद्ध कैप्टन विक्रम बत्रा का रहेगा। कैप्टन विक्रम बत्रा ने जिस तरह से कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तान के नापाक मंसूबों की धज्जियां उड़ा दी थीं उसे पाक सैनिक सदियों तक याद करते रहेंगे। कैप्टन बत्रा के शौर्य और पराक्रम के लिए उन्हें सेना के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था।
कैप्टन विक्रम बत्रा बलिदान दिवस
आज कैप्टन विक्रम बत्रा का बलिदान दिवस है। आज ही के दिन 07 जुलाई 1999 को कैप्टन बत्रा ने कारगिल युद्ध में मां भारती की रक्षा करते हुए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया था। 14 सितंबर 1974 को हिमाचल के कांगड़ा जिले के पालमपुर के घुग्गर गांव में जन्में कैप्टन विक्रम बत्रा के नाम से दुश्मन थर थर कांपते थे। कैप्टन विक्रम बत्रा का जन्म शिक्षकों के परिवार में हुआ था, उनके पिता एक सरकारी स्कूल में प्रिंसिपल और उनकी माँ एक स्कूल टीचर थीं।
जम्मू कश्मीर राइफल्स की 13वीं बटालियन में हुई नियुक्ति
कैप्टन बत्रा ने चंडीगढ़ के डीएवी कॉलेज में अपनी पढ़ाई की। पढ़ाई पूरी करने के उपरांत उन्होंने सीडीएस की परीक्षा दी जिसके बाद 1996 में प्रयागराज में सेवा चयन बोर्ड (एसएसबी) द्वारा उनका चयन किया गया। मेरिट के क्रम में, बत्रा शीर्ष 35 भर्तियों में शामिल थे। कैप्टन बत्रा ने 19 महीने के कठोर प्रशिक्षण को पूरा करने के बाद जम्मू कश्मीर राइफल्स की 13वीं बटालियन में लेफ्टिनेंट के रूप में भारतीय सेना में शामिल हुए। कैप्टन बत्रा की पहली पोस्टिंग सोपोर, बारामूला में हुई थी।
प्वाइंट 5140 को मुक्त कराने की मिली जिम्मेदारी
1990 में ऑपरेशन विजय के दौरान, 13 जेएके राष्ट्रीय राइफल्स के विक्रम बत्रा को 17000 फीट की ऊंचाई पर स्थित प्वाइंट 5140 को पाक सैनिकों से मुक्त कराने की जिमेदारी सौंपी गई। प्वाइंट 5140 चोटी क्षेत्र की सबसे महत्वपूर्ण चोटियों में से एक थी, जिस पर पाक सैनिकों ने कब्जा कर लिया था। मिशन को पूरा करने के लिए कैप्टन बत्रा अपनी टीम के साथ प्वाइंट 5140 की ओर आगे बढ़े।
दुर्गम ऊंची पहाड़ियों पर चढ़ाई करते हुए कैप्टन बत्रा जब वहां पहुंचे तो वहां रेडियो पर एक आतंकी कमांडर से उनकी तीखी बहस हुई। दुश्मन के कमांडर ने उनको चुनौती दी, 'तुम क्यों आए हो शेरशाह, तुम वापस नहीं जा पाओगे।' कैप्टन विक्रम बत्रा भी भला कहां चूकने वाले थे। उन्होंने पूरे आत्मविश्वास के साथ जवाब दिया, 'ठीक है...एक घंटे बाद देखते हैं, कौन ऊपर रहता है।'
मिशन को पूरा करने के बाद कैप्टन बत्रा ने कहा 'ये दिल मांगे मोर'
थोड़े ही देर के अंदर कैप्टन विक्रम बत्रा और उनकी टुकड़ी ने दुश्मन के 8 सैनिकों को मार गिराया और एक हेवी-एंटी एयरक्राफ्ट मशीन गन को जब्त कर लिया। इसके साथ ही मिशन पॉइंट 5140 सफल हो गया। पॉइंट 5140 की जीत के तुरंत बाद उन्होंने अपने कमांडिंग ऑफिसर से रेडियो पर बात की और गर्व से कहा, 'यह दिल मांगे मोर'।
देखते ही देखते कैप्टन की यह बात 'यह दिल मांगे मोर' करगिल युद्ध की कैची लाइन बन गई। प्वाइंट 5140 की जीत के साथ ही श्रीनगर-लेह राजमार्ग साफ हो गया जिससे पॉइंट 5100, 4700 जंक्शन और टाइगर हिल को मुक्त कराने का रास्ता आसान हो गया।
प्वाइंट 5140 फतह के बाद प्वाइंट 4750 पर भी फहराया तिरंगा
कुछ दिनों के आराम के बाद उनको पॉइंट 4750 को मुक्त कराने के लिए भेजा गया जहां उनको जबर्दस्त लड़ाई का सामना करना पड़ा। दुश्मन के एक अधिकारी ने विक्रम को चुनौती दी, 'शेरशाह, तुम्हारा शव उठाने के लिए कोई नहीं बचेगा।' इसके जवाब में कैप्टन विक्रम ने कहा, 'तुम हमारी चिंता मत करो, अपनी सुरक्षा के लिए दुआ करो।' थोड़े ही समय में पॉइंट 4750 पर भी भारतीय सैनिकों का कब्जा हो गया।
इसके बाद उनको 17000 फीट की ऊंचाई पर स्थित पॉइंट 4875 को मुक्त कराने की जिम्मेदारी सौंपी गई। वह अपनी टुकड़ी के साथ मिशन पर रवाना हुए। इस मिशन के दौरान दुश्मन के कई सैनिक मारे गए। 5 जुलाई, 1999 को पॉइंट 4875 पर तिरंगा फहरा दिया गया। दुश्मन ने 7 जुलाई, 1999 को जोरदार जवाबी हमला किया। पाक सैनिकों के इस हमले का कैप्टन बत्रा ने भी जोरदार जवाब दिया। इस मुहिम के दौरान उनके जूनियर ऑफिसर लेफ्टिनेंट नवीन घायल हो गए। उनके पैर बुरी तरह जख्मी हो गए थे।
बलिदान होने से पहले कैप्टन बत्रा ने 5 अन्य पाक सैनिकों को उतारा मौत के घाट
अपने जूनियर नवीन को बचाने के लिए कैप्टन विक्रम आगे आए लेकिन नवीन ने जिद की कि उनको ही लड़ने दिया जाए। इस पर विक्रम बत्रा ने कहा, 'तू बाल-बच्चेदार है, हट जा पीछे।' इसी दौरान पाक सैनिकों के हमले में कैप्टन विक्रम बत्रा वीरगति को प्राप्त हो गए। जब वह आखिरी सांस ले रहे थे तो उनके मुंह से 'जय माता दी' निकल रहा था। दम तोड़ने से पहले उन्होंने दुश्मन के 5 और सैनिकों को मार गिराया।
करगिल युद्ध से वापस लौटने के बाद करने वाले थे शादी
कैप्टन बत्रा की मंगेतर का नाम डिंपल था। 24 वर्षीय कैप्टन विक्रम बत्रा करगिल युद्ध से वापस आने के बाद उनसे शादी करने वाले थे लेकिन जब वह करगिल से वापस आए तो तिरंगे में लिपटकर। यह कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। डिंपल ने आजीवन शादी न करने का निर्णय लेते हुए पूरी जिंदगी बलिदानी विक्रम बत्रा की याद में बिताने का फैसला लेकर अपनी प्रेम कहानी को अमर कर दिया।
1995 में चंडीगढ़ की पंजाब यूनिवर्सिटी में विक्रम और डिंपल की पहली मुलाकात हुई थी। 4 सालों के उस खूबसूरत रिश्ते में दोनों ने एक दूसरे के साथ काफी कम समय बिताया, उस रिश्ते के एहसास को शब्दों में बयां करने की कोशिश में आज भी डिंपल की आंखें भर आती हैं। एक न्यूज वेबसाइट को इंटरव्यू देते हुए डिंपल ने बताया था कि जब एक बार उन्होंने विक्रम से शादी के लिए कहा तो विक्रम ने चुपचाप ब्लेड से अपना अंगूठा काटकर उनकी मांग भर दी थी।
मां भारती के ऐसे वीर सपूत को हमारा नमन वंदन।