1962 भारत-चीन युद्ध : परमवीर योद्धा मेजर धन सिंह थापा की शौर्यगाथा ; सेना का वो शूरवीर जिसे सबने बलिदानी माना, लेकिन वो चीन की क़ैद से वापस लौटा

20 Oct 2023 00:41:53

Story of major dhan singh thapa PVC
 
अर्नव मिश्रा 
 
20 अक्तूबर 1962 भारत और चीन की सेनाएं युद्ध भूमि में एक दूसरे के आमने सामने थी। 21 नवंबर यानि पूरे एक महीने बाद चीन द्वारा जब युद्ध समाप्ति की घोषणा हुई तो उस वक्त तक चीन ने सैंकड़ों भारतीय सैनिकों को युद्धबंदी बना लिया था। उन्हीं सैनिकों में से एक थे मेजर धन सिंह थापा। युद्धबंदी बनाए जाने के बाद चीनी सैनिक मेजर थापा को अनेक तरह की यातनाएँ देते रहे। उनपर दबाव बनाते रहे कि वो स्वीकार कर लें कि उन्हें चीनी सेना ने युद्धबंदी बनाया है। लेकिन दुश्मनों के सामने धन सिंह थापा चट्टान की तरह डंटे रहे। लिहाजा चीनी सैनिकों ने उन्हें तरह-तरह से तोड़ने का कुत्सित प्रयास किया। मेजर थापा को बर्फ से ढँकी ऊँची पर्वत श्रृंखलाओं पर बनी एक पोस्ट से दूसरी पोस्ट पर नंगे पाँव घुमाते रहे। लेकिन माँ भारती का वो वीर सपूत दुश्मनों के आगे इतनी आसानी से कहाँ झुकने वाला था वे मज़बूती से डटे रहे। इधर दूसरी तरफ़ अपने देश में उस सैनिक को बलिदानी मानकर देश के सर्वोच्च सैन्य सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया जा चुका था। यहाँ तक कि मेजर धन सिंह थापा के परिवार को जब यह खबर मिली कि उनका बेटा युद्धभूमि में वीरगति को प्राप्त हो गया तो उन्होंने पूरे रीती-रिवाज के साथ उनका अंतिम संस्कार भी कर दिया था। लेकिन एक वर्ष बाद अचानक कुछ ऐसा हुआ जिसे सुनकर पूरा देश आश्चर्य चकित हो उठा। 

संक्षिप्त परिचय
 
नेपाली मूल के मेजर धन सिंह थापा का जन्म 10 अप्रैल, 1928 को शिमला में हुआ था। उनके परिजन बताते हैं कि थापा का सपना बचपन से ही सेना में भर्ती होने का था। आख़िरकार उन्होंने अपना ये सपना पूरा भी किया। 28 अक्तूबर 1949 को वह एक कमीशंड अधिकारी के रूप में सेना के 8 गोरखा राइफ़ल्स की पहली बटालियन का हिस्सा बनें। 

मेजर धन सिंह थापा की शौर्यगाथा
 
1959 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को चीन के असलियत का अंदाज़ा हुआ तो उन्होंने चीन को रोकने के लिए फ़ॉरवर्ड पॉलिसी लागू कर दी। इसके तहत सेना को आदेश दिया गया था कि चीन से लगती सीमाओं पर छोटी-छोटी चौकियाँ स्थापित करें। इसी के तहत सेना की 8 गोरखा राइफल्स की 1/8 बटालियन की D कम्पनी को लद्दाख के पेंगोंग झील के उत्तरी तट पर मौजूद श्रीजाप-1 पर चौकी बनाने का आदेश दिया गया। सेना की इस कम्पनी की कमान मेजर धन सिंह थापा संभाल रहे थे। पानगौंग त्सो झील के किनारे श्रीजाप-1 पर थापा को पोस्ट तैयार करनी थी। हालाँकि इधर भारतीय सैनिकों की टुकड़ी अभी पोस्ट बना ही रही थी लेकिन दूसरी तरफ़ चीनी सैनिक पहले से ही अनेक चौकियाँ बना चुके थे।

Chinese soldiers opposite an Indian Army location at the southern banks of Pangong Tso
 
 
मेजर थापा की पोस्ट पर चीनियों का हमला
 
 
इसके अलावा अक्साई चिन पर क़ब्ज़े के बाद से चीन ने सड़कों के निर्माण का भी काम बहुत पहले शुरू कर दिया था। श्रीजाप-1 का यह इलाक़ा जिसकी कमान मेजर धन सिंह थापा सम्भाल रहे थे वो क़रीब 48 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ था। चूँकि छोटी-छोटी चौकियाँ बनाना तय हुआ था, इसलिए थापा की डी कम्पनी को केवल 28 से 30 लोग दिए गए थे। इस काम के लिए थापा के बाद दूसरे स्तर यानि ‘सेकंड इन कमांड’ के अधिकारी सूबेदार मिन बहादुर गुरुंग उनके साथ थे। मेजर थापा की टुकड़ी ने पोस्ट बनाकर अभी तैयार ही किया था कि 19 अक्टूबर की रात एक बम का गोला भारतीय पोस्ट पर आकर गिरा और वह बंकर ध्वस्त हो गया। इस हमले में ‘सेकंड इन कमांड’ के अधिकारी सूबेदार मिन बहादुर गुरुंग गंभीर रूप से घायल हो गए थे। उनके शरीर से खून की धारायें बह रही थी। घायल अवस्था में होने के बावजूद उन्होंने बहादुरी दिखाते हुए हाथों में लाइट मशीन गन लिए दुश्मनों पर हमला जारी रखा। हमले के दौरान कंपनी कमांडर मेजर धन सिंह थापा भी एक पोस्ट से दूसरी पोस्ट पर जाते और अपने जवानों को बहादुरी से दुश्मनों पर हमले के लिए प्रेरित करते रहे। हालाँकि जैसे तैसे 19 अक्टूबर की यह रात बिना किसी बड़े हादसे के बीत गई। मेजर थापा की टुकड़ी अपने हथियारों के साथ दुश्मनों से मुकाबला करने के लिए मुस्तैद हो गई थी।
 

चीन का तीन हमला हुआ नाकाम
 
 
20 अक्टूबर की सुबह करीब 6 बजे चीनी सैनिकों ने एक जोरदार हमला किया। इस हमले में श्रीजाप-1 पर गोरखाओं द्वारा बनाई गई पोस्ट ध्वस्त हो गईं। चीनी सैनिकों की संख्या 600 के क़रीब थी और उनसे लोहा लेने के लिए मेजर थापा की बटालियन के महज़ 30 सैनिक। दुश्मनों के इस हमले ने मेजर धन सिंह थापा की टुकड़ी को बहुत ज्यादा नुकसान पहुँचाया। कई गोरखा सैनिक इस हमले में वीरगति को प्राप्त हो गए।इसके अलावा मेजर थापा के कई रेडियो सेट्स भी ख़राब हो गए, जिससे उनका अपनी टुकड़ी और अधिकारियों से भी संपर्क टूट गया। हालाँकि इस दौरान बाक़ी गोरखा टीम के बाक़ी बचे हुए जवान D कम्पनी के कमांडिंग ऑफिसर मेजर थापा के नेतृत्व में अपने शौर्य से दुश्मनों को एक बार नहीं, बल्कि तीन बार पीछे हटने पर मजबूर किया। जब हथियार समाप्त हो गए तो गोरखा बटालियन की इस टुकड़ी ने "जय महाकाली आओ गोरखाली" का उद्घोष करते हुए चीनी सैनिकों पर टूट पड़े। हाथों में ख़ूँख़ार, तेज धारदार खुखरिया लेकर कई चीनी सैंकों को मौत के घाट उतार दिया। लेकिन इस बार चीनी सैनिक टैंक और भारी संख्या बल में उनकी चौकी के क़रीब पहुँच चुके थे। लिहाज़ा दुर्भाग्य से मेजर थापा और उनकी टुकड़ी के बचे हुए जवान अपनी इस पोस्ट को नहीं बचा पाए। चीनी सैनिकों ने मोर्टार से हमला कर सभी चौकियों को आग के हवाले कर दिया। हालाँकि इस बीच जैसे तैसे मेजर थापा ने ख़ुद को सुरक्षित बचा लिया।
 
 
Majar dhan singh thapa PVC
 
 
बलिदानी समझ सरकार ने परमवीर चक्र से किया सम्मानित
 
 
मेजर थापा चीनी सैनिकों के हमले से तो बच निकले लेकिन दुश्मनों ने चारों तरफ़ से पोस्ट को घेर रखा था और तभी मेजर थापा समेत कुछ सैनिकों को युद्धबंदी बना लिया। हालांकि, भारतीय सेना को इसकी खबर नहीं थी। इस पोस्ट पर चीनी हमले के साथ ही उसने मान लिया था कि उनके गोरखा जवान युद्ध में लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए होंगे। लंबे वक्त तक मेजर थापा का कुछ पता नहीं चला। यद्धबंदी बनाये जाने के बाद चीनी सैनिक पहले मेजर थापा को खुर्णक क़िले में और फिर शिंक्यांग ले गए। युद्ध में बलिदानी समझकर देश ने उन्हें सर्वोच्च वीरता और उत्तम युद्ध कौशल का परिचय देने के लिए सर्वोच्च सैन्य सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया।
 
 
चीन के क़ब्ज़े से वापस स्वदेश लौटे
 
 
लेकिन ये कहानी यहीं ख़त्म नहीं होती, कहानी में एक नया मोड़ आता है। मेजर थापा को शहीद समझकर उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित करने का ऐलान करती है। वहीं दूसरी तरफ़ उनका परिवार उनका अंतिम संस्कार भी कर देता है। लेकिन एक वर्ष बाद मई 1963 में चीन युद्धबंदी बनाए गए सैनिकों की लिस्ट जारी करती है। इस लिस्ट में मेजर धन सिंह थापा की भी नाम होता है। वहीं युद्धबंदी के दौरान ही मेजर थापा को खाना देने एक चीनी लड़का आया करता था। चीनी भाषा ना जानते हुए भी धीरे धीरे मेजर थापा उस लड़के को यह समझाने में कामयाब हो गए कि भारत में उनका एक परिवार है और वो अपने परिवार को अपने ज़िंदा होने की खबर देना चाहते हैं। फिर क्या था लड़के के हाथों मेजर थापा ने एक पत्र भारत भिजवा दिया। ये पत्र शिमला में मेजर थापा के मामा को मिला। फिर ये खबर घर तक पहुँची। घरवालों ने यह बात सरकार तक पहुँचाने की कोशिश की। सरकार को चीनी द्वारा जारी वो लिस्ट मिलती है जिसमें मेजर थापा का नाम भी शामिल होता है। 10 मई 1963 को मेजर थापा वापस भारत लौट और उनका ज़ोरदार स्वागत किया गया। उनकी बहादुरी के लिए उन्हें लेफ़्टिनेंट कर्नल के पद पर पदोन्नत किया गया। और रिटायर होने तक वे इस पद पर बने रहे और देश सेवा करते रहे। अनंततः सेवानिवृत होने के उपरांत वे अपने परिवार समेत लखनऊ चले गए। यहाँ 5 सितंबर 2005 को किडनी फेल हो जाने के कारण लेफ़्टिनेंट कर्नल धन सिंह थापा स्वर्गलोक को चल पड़े।
 
 
माँ भारती के इस वीर सपूत के साहस व देश के प्रति उनके अनुराग को हमारा शत शत नमन।
 
 
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