23, अक्टूबर 1962 : भारत चीन युद्ध के परमवीर योद्धा सूबेदार जोगिंदर सिंह की शौर्यगाथा, जिन्होंने चीन को दी ऐसी मात कि दुश्मनों को भी सम्मान में होना पड़ा नतमस्तक
   23-अक्तूबर-2023
 
23  October 1962 The bravery story of Subedar Joginder Singh
 
 
परमवीर योद्धा सूबेदार जोगिंदर सिंह ने 1962 में भारत चीन युद्ध के दौरान अपने उत्तम युद्ध कौशल, बहादुरी और असीम शौर्य का परिचय देते हुए चीनी सैनिकों के अनेक हमलों को ना सिर्फ़ विफल किया था। बल्कि कई चीनी सैनिकों को मौत के घाट भी उतार दिया था। उनकी इस अद्भुत शौर्य के लिए भारत सरकार ने उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया था। भारत चीन युद्ध के अलावा सूबेदार जोगिंदर सिंह ने द्वितीय विश्व युद्ध में बर्मा की तरफ़ से लड़ते हुए अपनी बहादुरी से पूरी दुनिया को परिचित कराया। साथ ही 1947-48 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान सिख रेजिमेंट की ओर से युद्ध लड़ते हुए अनेकों पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट उतारते हुए अपना अद्वितीय शौर्य दिखाया। आज की कड़ी में हम उसी परमवीर योद्धा और भारत चीन युद्ध के महानायक सूबेदार जोगिंदर सिंह की चर्चा करेंगे।
 
अपनी विस्तारवादी नीतियों का परिचय देते हुए और भारत के साथ विश्वासघात करते हुए चीन ने 20 अक्टूबर 1962 को एक साथ लद्दाख व अरुणांचल प्रदेश के अनेक हिस्सों पर क़ब्ज़ करने की नीयत से हमला शुरु कर दिया था। चीनी हमलों के कारण 'नमखा चू सेक्टर' समेत पूर्वी सीमा के कई क्षेत्र चीन के कब्जे में जा चुके थे। अब चीनी सैनिकों का अगला निशाना त्वांग था।सूबेदार सिंह 20 अक्टूबर को बुमला एक्सिस के तॉगपेग ला इलाके में गश्त कर रहे थे। गश्ती के दौरान ही उन्होंने इस स्थान से ठीक विपरीत दिशा में 'मैकमोहन लाइन' पर भारी संख्या में चीनी सैनिकों को देखा। सूबेदार सिंह ने दुश्मनों की मंशा को भांपते हुए तुरंत सेना के आलाधिकारियों के साथ यह जानकारी साझा की। आदेश मिला कि किसी भी हालत में चीनी सैनिकों से भारत भूमि की रक्षा करें।
 
लिहाज़ा ट्विन पीक्स से एक किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में टॉन्गपेंग ला पर पहली सिख बटालियन की एक डेल्टा कंपनी ने अपना बेस बनाया था जिसके कमांडर थे लेफ्टिनेंट हरीपाल कोशिक। उनकी डेल्टा कंपनी की 11वीं प्लाटून IB रिज पर तैनात थी जिसके कमांडर थे सूबेदार जोगिंदर सिंह। सिखों की इस पलटन को तोपों और गोलाबारी से कवर देने के लिए 7वीं बंगाल माउंटेन बैटरी मौजूद थी| इधर 21-22 अक्टूबर को जोगिंदर सिंह की टुकड़ी में शामिल कुल 27 जवान और दूसरी तरफ़ 200 के क़रीब दुश्मन सैनिक आमने सामने आ गए। शामिल थे। चीनी सैनिकों की अपेक्षा में इनके पास गोला बारूद की भले कमी थी पर हौसलों और बहादुरी की नहीं। 23 अक्तूबर 1962 दोनों मोर्चों पर युद्ध शुरू हुआ करीब 200 चीनी सैनिकों ने एक साथ हमला किया। क़रीब सुबह 4:30 बजे दुश्मनों ने मोर्टार दागना शुरू कर दिया। दूसरी तरफ़ भारतीय सैनिकों ने भी इस हमले का बहादुरी से जवाब दिया जिसमें कई चीनी सैनिक मारे गए। कुछ घायल हो गए और जो दुश्मन सैनिक बचे वह भागने के लिए मजबूर हो गए।
 
इन सब के बावजूद चीन का त्वांग पर क़ब्ज़ करने की नीयत में कोई बदलाव नहीं था। युद्ध में एक बार शिकस्त मिलने के बावजूद और 200 चीनी सैनिक दोबारा तैयार हो कर हमला करने आए। इस हमले को भी भारतीय फौज ने पूरी तरह से नाकाम कर दिया। इसमें भारतीय सेना को भी नुकसान पहुंचा। दुश्मनों के इस हमले में सूबेदार जोगिंदर सिंह को मशीन गन की एक गोली जांघ में जा लगी। गोली लगते ही वे एक बंकर में घुसे, पट्टी बांधी और फिर दुश्मनों से लोहा लेने के लिए मैदान में उतर गए। इस बीच वे लगातार अपने सैनिकों का हौसला भी बढ़ाते रहे। चीन की ओर से किया गया तीसरा और आखिरी हमला बेहद भयावह था। क्योंकि सूबेदार जोगिंदर सिंह की टुकड़ी के अनेक जवान वीरगति को प्राप्त हो चुके थे। इनके पास गोला बारूद की भी कमी थी।
 
सूबेदार सिंह के घायल जवान चीन की इस टुकड़ी से फिर टकरा गए। सूबेदार जोगिंदर सिंह भी घायल हो चुके थे। हथियार ख़त्म होता देख सूबेदार जोगिंदर सिंह ने बचे हुए सैनिकों को तैयार किया और उन्हें बंदूक़ में लगे ख़ंजर का उपयोग करने का आदेश दिया। सैनिकों में ने अपनी अपनी राइफलों की नोक पर खंजर लगाए और ‘जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल’ का उद्धघोष करते हुए चीनी सैनिकों पर हमला कर दिया। इस हमले में भारतीय शूरवीरों ने कई चीनी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया।
 
जब सूबेदार जोगिंदर सिंह के गनर वीरगति को प्राप्त हो गए, तब उन्होंने 2-इंच वाली मोर्टार खुद फायर करनी शुरु की। दुश्मनों पर मोर्टार से हमला करते हुए कई चीनी सैनिकों को मौत की नींद सुला दिया। लेकिन वे ख़ुद भी गंभीर रूप से घायल हो चुके थे। तभी दुश्मनों की अतिरिक्त टुकड़ी ने धावा बोलते हुए घायल सूबेदार जोगिंदर सिंह को युद्ध बंदी बना लिया। वहां से तीन भारतीय सैनिक बच निकले थे, जिन्होंने जाकर इसकी जानकारी अफ़सरों को दी।
 
पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने जब उन्हें बंदी बनाया तो कुछ घंटे बाद ही सूबेदार जोगिंदर सिंह दर्द के कारण वीरगति को प्राप्त हो गए। इधर युद्ध के दौरान अद्भुत शौर्य कुशल नेतृत्व और जिस प्रकार से सूबेदार सिंह ने अपने सैनिकों को प्प्रेरित करते हुए दुश्मनों से अंत तक लोहा लिया उसके लिए भारत सरकार ने उन्हें 1962 में सर्वोच्च सैन्य सम्मान परम वीर चक्र से सम्मानित किया। चीन को जब इस बात की जानकारी लगी तो उसने सूबेदार सिंह की अस्थियां पूरे सम्मान के साथ उनकी बटालियन को दे दी थीं।
 
संक्षिप्त परिचय
 
ज़ोगिंदर सिंह का जन्म 26 सितंबर 1921 पंजाब के छोटे से गांव मेहकालन में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा गांव में हुई 10वीं पास कर के बाद सिख रेजीमेंट में शामिल हो गए थे। तब उनकी उम्र महज़ 15 वर्ष थी। इंडियन एयरफोर्स के फ्लाइंग ऑफिसर रहे और हिस्टोरियन एमपी अनिल कुमार ने अपने एक लेख में सूबेदार जोगिंदर सिंह जी बारे में लिखा कि उन्होंने वहां की भौगोलिक स्थिति को बहुत अच्छे से समझा था और स्थानीय संसाधनों का अच्छा इस्तेमाल करते हुए आईबी रिज पर चतुर प्लानिंग के साथ बंकर और खंदकें बनाई थीं| उनकी पलटन के पास सिर्फ चार दिन का राशन था| उन लोगों के जूते और कपड़े सर्दियों और उस लोकेशन के हिसाब से अच्छे नहीं थे| हिमालय की ठंड रीढ़ में सिहरन दौड़ाने वाली थी लेकिन, श्री जोगिंदर सिंह जी ने अपने साथियों का मनोबल बनाए रखने के लिए प्रेरित किया| इतना तैयार किया कि वे दुश्मनों को कभी ना भूलने वाला घाव दे गये।
 
माँ भारती के इस वीर बहादुर सैनिक को हमारा नमन।