10 नवंबर 1947 की वो रात, राजौरी नरसंहार की खौफनाक कहानी, जिसको याद कर आज भी #POJK विस्थापित आज भी सिहर उठते हैं

    10-नवंबर-2023
Total Views |

Rajouri massacre
 
10 नवंबर 1947, दीवाली का दिन। पाकिस्तानी सैनिकों ने जम्मू कश्मीर पर हमला कर बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया था। दीवाली का मतलब है खुशियां, चारों तरफ रौनक। लेकिन क्या आप जानते है जम्मू कश्मीर के राजौरी की दीवाली से जुडी ऐसी यादें है जिन्हे याद कर राजौरी के लोग आज भी सिहर उठते हैं। नवम्बर के महीने तक उन्होंने पुंछ जिले के ज्यादातर हिस्सों पर कब्ज़ा कर लिया था। इस हमले की वजह से बहुत सारे लोग राजौरी शहर में इकठ्ठे हो गए.
 
पाकिस्तानी सेना ने दीवाली के दिन राजौरी शहर पर हमला बोला। सभी लोग राजौरी में तहसील भवन में जमा हो गए थे. जब पाकिस्तानी सेना ने हमला किया तो तहसील भवन के आस पास लोग निहत्थे थे. लेकिन पाकिस्तानी सेना ने राजौरी में इन निहत्थे लोगों के साथ ऐसी मारकाट मचाई कि शहर की गालियां लाल हो गयी. ऐसे समय में राजौरी की महिलाओं और यहां तक कि छोटी बच्चियों ने यह तय किया कि वो दुश्मनों के हाथ पड़ने की बजाये मरना पसंद करेंगी. परिवार के पुरुषों ने गोलियों से अपनी मां, अपनी बहनों, अपनी बीबी..तमाम महिलाओं और बच्चो को खुद ही मारना शुरू किया। जब गोलियां खत्म हो गयी महिलाओ ने जहर खा कर और कुएं में कूदकर अपनी जान दे दी। आपने राजस्थान में हुए जौहर की कहानियां सुनी होंगी। लेकिन राजौरी शहर का ये जौहर इतिहास में कहीं दब-सा गया।
 

Rajouri massacre 
 
ऐसा माना जाता है कि राजौरी में लगभग 3०,००० लोगों का कत्लेआम हुआ। बाद में ब्रिगेडियर प्रीतम सिंह के नेतृत्व में राजौरी को पाकिस्तानी सेना से मुक्त करवाया गया। जिस तहसील भवन में ये मौत का तांडव हुआ था। उसे आप आज भी बलिदान भवन के रूप में देख सकते है। इस बलिदान स्तम्भ की देख रेख भारतीय सेना करती है. आज भी आप वहां जाए तो आपको शहीद हुए लोगो की फोटोज देखने को मिलेंगे। स्थानीय लोगों, बुज़ुर्गों का कहना है कि अगर तहसील भवन के नीचे आज भी खुदाई की जाए तो पत्थरो और ईंटो के बजाय हड्डियां और नर कंकाल निकलेंगें। आज भी दीवाली के समय राजौरी लोग 1947 के उस खुनी मंजर को याद सिहर उठते है, कि ऐसी दीवाली फिर कभी न आये..।