2 नवंबर, 1976 : मिजोरम में उग्रवाद के दौरान दुश्मनों के दांत खट्टे करने वाले शौर्य चक्र विजेता सूबेदार नंद राम की शौर्यगाथा

    03-नवंबर-2023
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Subedar nand Ram Shaurya Chakra awardee story
 
 
 Written By : Arnav Mishra 
 
संक्षिप्त परिचय 
 

नंद राम का जन्म 8 अगस्त, 1933 को तत्कालीन जींद रियासत के खोरड़ा गांव में हुआ था। नंद राम के पिताजी का नाम रामजी लाल था। 1947 में देश विभाजन के बाद जब जिलों का पुनर्गठन हुआ तो उस वक्त नंद राम का गाँव पंजाब के हिसार जिले के अधिकार क्षेत्र में आ गया। 1 अक्टूबर 1966 को हरियाणा को पंजाब से अलग कर एक अलग राज्य बनाया गया। तब से, खोरदा गांव हरियाणा के भिवानी जिले का हिस्सा है। चूँकि उनके गाँव में कोई स्कूल नहीं था, इसलिए नंद राम ने बड़हरा गाँव के प्राथमिक विद्यालय में प्रवेश लिया, जो उनके गाँव से तक़रीबन 7 किमी दूर था। 5 साल तक रोजाना 14 किलोमीटर की पैदल दूरी तय करने के बाद उन्होंने 5वीं कक्षा पास की। नंद राम मुश्किल से 17 साल के थे, जब उन्हें 8 अगस्त 1950 को राजपूताना राइफल्स की 6वीं बटालियन में भर्ती किया गया था।

 
सेना में भर्ती होने के उपरान्त का सफ़र 
 

सेना में भर्ती होने के उपरान्त राइफलमैन नंद राम अपने कर्तव्य के प्रति समर्पण और अपनी बटालियन के प्रति अत्यंत निष्ठावान रहते हुए अपनी ड्यूटी को बेहतरीन ढंग से निभाया। नंद राम का कर्तव्य के प्रति समर्पण का ही यह फल था कि सेना में रहते हुए वे लगातार रैंकों में आगे बढ़े और लगभग 17 वर्षों की सेवा के भीतर एक जूनियर कमीशंड अधिकारी बन गए। 6 राजपुताना रायफल्स (6 Raj Rif battalion) को वर्ष 1976 में पश्चिम बंगाल के हाशिमारा (Hashimara in West Bengal) में स्थानांतरित कर दिया गया। हालाँकि उसी दौरान मिजोरम में उग्रवाद अपने चरम पर था। लिहाजा बंगाल में कुछ समय रहने के बाद नंद राम की बटालियन 6 राजपुताना रायफल्स को 16 सितंबर 1976 में मिजोरम में उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में तैनाती के लिए सिलचर भेजा गया। चूँकि राजपुताना रायफल्स इन क्षेत्रों से भलीभांति परिचित लिहाजा इन इलाकों में उनकी तैनाती करने का फैसला किया गया। नार्थ ईस्ट में नागा मूवमेंट के दौरान भी स्थिति को संभालने में इस बटालियन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।    

 
 
Inspecting the Mizo National Guard at Laldenga Mahmum
 
 1 मार्च, 1969 को लालडेंगा महमूम (पूर्वी पाकिस्तान) में मिजो नेशनल गार्ड का निरिक्षण करते हुए
 
 
मिजोरम में उग्रवाद की शुरुआत  
 

50 के दशक के उत्तरार्ध में, मिज़ो पहाड़ियों, जिसे (असम के 'लुशाई पहाड़ी' जिले के रूप में भी जाना जाता है) को 'मौतम' नामक भीषण अकाल का सामना करना पड़ा। मिज़ोस (वर्तमान मिज़ोरम के लोग) ने असम सरकार के साथ-साथ भारत सरकार से भी राहत मांगी और लंबे समय तक इंतजार किया। लेकिन दिल्ली दरबार को पूर्वोत्तर के सुदूर राज्यों की समस्याओं से कोई विशेष मतलब नहीं था। लिहाजा लोगों को कोई राहत नहीं मिली और उनकी तकलीफें बढ़ती गईं। यहाँ यह बताना उचित होगा कि इस समय तक मिजोरम कोई अलग राज्य भी नहीं था। आज की तरह "सेवन सिस्टर्स" अस्तित्व में नहीं आये थे और ये इलाका भी असम का ही हिस्सा होता था। तत्कालीन (इंदिरा गाँधी सरकार) के इस रवैये के चलते मिज़ो लोगों ने खुद को अलग-थलग महसूस किया और राज्य के ख़िलाफ़ विद्रोह कर दिया।

'मिजो नेशनल फेमिन फ्रंट' 
 
 
केंद्र की कांग्रेसी सरकार के अलावा जब असम की स्थानीय सरकार ने भी ध्यान नहीं दिया तो मिजोरम की जनता ने स्वयं ही इस अकाल से निपटने के लिए संगठन बनाए। अकाल से लड़ने के लिए 1959 में 'मिजो नेशनल फेमिन फ्रंट' बना जो बाद में कांग्रेसियों की इस नासमझी की वजह से अलगाववादी संगठन 'मिजो नेशनल फ्रंट' में तब्दील हो गया। अकाल की स्थिति में मिजो ने सरकार के विरोध पु लालडेंगा के नेतृत्व में एक बड़ा विद्रोह किया। विद्रोह के बाद देखते ही देखते प्रमुख शहरों में तुरंत गुरिल्ला युद्ध छिड़ गया। पहली बड़ी कार्रवाई टेलीफोन एक्सचेंज पर हमला और आइजोल में सरकारी खजाने में तोड़फोड़ थी। सरकारी कार्यालयों और स्टेशनों पर हमला किया गया और उन्हें नष्ट कर दिया गया। असम सरकार ने अगले दिन लुशाई हिल्स जिले को "अशांत क्षेत्र" घोषित कर दिया, और केंद्र सरकार ने भारत रक्षा नियम के तहत MNF  'मिजो नेशनल फेमिन फ्रंट' को एक आतंकवादी संगठन के रूप में प्रतिबंधित कर दिया।
 
 
स्थिति से निपटने के लिए सेना की तैनाती 
 

देखते ही देखते यह विद्रोह इतना ज्यादा बढ़ने लगा कि स्थिति सरकार के हाथों से फिसलने लगी। स्थिति को तेजी बिगड़ता देख सरकार ने राज्य में स्थिति को नियंत्रण करने, संगठित विद्रोह पर नकेल कसने और कानून व्यवस्था बहाल करने के लिए राज्य में सेना तैनात करने का फैसला किया। जब 6 राजपूताना राइफल्स बटालियन को शामिल किया गया, तब तक दक्षिण पश्चिम में बांग्लादेश की सीमा से लगे मिजोरम (असम का पहाड़ी जिला) में उग्रवाद अपने चरम पर था। लिहाजा बटालियन ने बिना समय गंवाते यहाँ अपना पोजीशन लिया और अपने विश्वसनीय खुफिया जानकारी के आधार पर अपने काम को अंजाम देना शुरू कर दिया। ऐसे ही 'ऑपरेशन' में वीरता को प्रदर्शन करने के लिए 6वीं राजपुताना रायफल्स के सूबेदार नंद राम को उनकी बहादुरी के लिए शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया था। प्रदान किए गए वीरता अलंकरणों की संख्या और श्रेणी; गश्ती दल के इस ऑपरेशन में नंद राम के अन्य साथी कैप्टन लाल चंद को सेना पदकऔर अग्रणी सेक्शन कमांडर नायक होशियार सिंह को शांतिकाल का दूसरा सबसे बड़ा वीरता पुरस्कार कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया।  

 
Subedar nand Ram Shaurya Chakra awardee story
 
 
नंद राम की वीरगाथा  
 

3 नवंबर, 1976 का दिन था, सूबेदार नंद राम इलाके में एक विशेष मिशन के दौरान गश्ती दल की कमान संभाल रहे थे। नंद राम को 70 मिज़ो आतंकियों के एक गिरोह को रोकने का काम सौंपा गया था जिसका नेतृत्व स्वयं मिजो कर्नल बियाकवेला कर रहा था। सूचना मिली थी कि ये दुश्मन बांग्लादेश में प्रवेश करने के इरादे से दक्षिण-पश्चिम मिजोरम के माध्यम से सीमा की ओर बढ़ रहे हैं। तक़रीबन 4 घंटे तक पेट्रोलिंग के बाद नंद राम की गश्ती दल की नजर दुश्मनों के शिविर पर पड़ी। दुश्मनों के ठिकानों को देखते ही सूबेदार नंद राम ने हमला बोला। सेना के इस हमले का जवाब देते हुए दुश्मनों से भी हल्की मशीन गन से हमला बोल दिया और देखते ही देखते चारों तरफ भीषण गोलीबारी होने लगी। इस बीच सूबेदार नंद राम ने अपनी सुजबुझ का परिचय देते हुए दुश्मनों द्वारा किए गए हमलों की तीव्रता कम होने के लिए कुछ मिनट तक इंतजार किया। जैसे ही हमला थोडा कम हुआ सूबेदार नंद राम की टुकड़ी ने अपनी बटालियन का उद्घोष "राजा रामचन्द्र की जय" के साथ शत्रुओं पर एक जोरदार हमला बोला। नंद राम की टुकड़ी द्वारा किए गए इस हमले में कई दुश्मन ढेर हो गए। 

 
घायल होने के बावजूद दुश्मनों से लिया लोहा  
 
 
इसके अलावा हमले की भयावहता को महसूस करते हुए भारी संख्या में दुश्मन अपनी जान बचाकर भागने लगे। लेकिन इस बीच कुछ अन्य दुश्मन मौके पर डटे रहे और गश्ती दल पर हमला करना जारी रखा। हालाँकि तभी कुछ गोलियां नंद राम को आकर लगी जिससे वे घायल हो गए। दोनों तरफ से जारी गोलीबारी में घायल होने के बावजूद नंद राम पीछे नहीं हेट बल्कि दुश्मनों पर अपने मशीन गन से हमला जारी रखा। तभी दुश्मनों की एक और गोली नंद राम के बाएं कंधे पर लगी और वे बेहद गंभीर रूप से घायल हो गए। लेकिन अपनी जान की परवाह किए बिना माँ भारती का ये वीर सपूत दुश्मनों के हमलों के बीच झाड़ियों में रेंगते हुए आगे बढ़े और एक हथगोला दुश्मनों के ठिकाने पर फेंका। इस ग्रेनेड हमले में दुश्मनों की एक पोस्ट पूरी तरह से तबाह हो गई। सूबेदार नंद राम के अदम्य साहस और नेतृत्व के कारण पांच शत्रुओं को पकड़ लिया गया और बड़ी मात्रा में हथियार और गोला-बारूद जब्त कर लिया गया।
 
 
वीरता के लिए शौर्य चक्र  
 
 
इस संपूर्ण कार्रवाई के दौरान, सूबेदार नंद राम ने उच्च कोटि की वीरता और नेतृत्व का प्रदर्शन किया, जिसके लिए उन्हें शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया। संयोगवश, सूबेदार नंद राम, एससी, वीरता पुरस्कार पाने वाले बुजुर्ग लोगों में से एक हैं। जब उन्होंने प्रतिष्ठित शौर्य चक्र अर्जित किया, तब उनकी उम्र 40 वर्ष के मध्य में थी। 31 वर्षों की सराहनीय सेवा के बाद, सूबेदार नंद राम, एससी, 1981 में मानद कैप्टन के सुयोग्य पद पर सेना से सेवानिवृत्त हुए।