भारत के सबसे प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों में से एक और नोबेल पुरस्कार विजेता भौतिक विज्ञानी, श्री चंद्रशेखर वेंकट रमन की आज 135वीं जन्म जयंती है। चंद्रशेखर वेंकट रमन को पूरी दुनिया सीवी रमन के नाम से ज्यादा जानती है। CV रमन का जन्म 7 नवंबर, 1888 को मद्रास के तिरुचिरापल्ली के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। CV रमन के पिता का नाम चंद्रशेखर रामनाथन अय्यर और माता जी का नाम पार्वती अम्मल था। CV रमन के पिता चंद्रशेखर अय्यर गणित और फिजिक्स के लेक्चरर थे। लिहाजा परिवार में ही विज्ञानं की परम्परा को देखते हुए CV रमन भी बचपन में विज्ञान के प्रति आकर्षित विज्ञान के ही क्षेत्र में अपना कदम आगे बढाया। आज CV रमन की जन्म जयंती पर हम उनके जीवन से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण और रोचक तथ्यों के बारे में बताएँगे।
कहते हैं कि CV रमन बचपन के दिनों से ही पढाई में बहत अव्वल रहते थे। विज्ञान के प्रति उनकी रूचि उनके बचपन से ही नजर आने लगी थी। विज्ञान में अत्यधिक दिलचस्पी होने के कारण वे अक्सर खेल-खेल में विज्ञान का प्रयोग किया करते थे। CV रमन जब भी हॉस्टल से घर आते थे तो भाई बहनों के साथ खेल में वे विज्ञान से जुड़े नए प्रयोग किया करते थे। चूँकि पिता जी भी भौतिक विज्ञान के लेक्चरर थे लिहाजा उनसे भी उन्हें बहुत मदद मिलती थी। पढाई में हमेशा आगे रहने के कारण उन्होंने 10वीं क्लास में अच्छे अंकों के साथ टॉप किया था। 10वीं के बाद 1903 में आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने प्रेसिडेंसी कॉलेज, मद्रास में दाखिला लिया और स्नातक की डिग्री प्राप्त की। विश्वविद्यालय के इतिहास में सर्वाधिक अंक अर्जित करने वाले CV रमन ने IAS की परीक्षा में भी प्रथम स्थान प्राप्त किया था। महज 19 साल की उम्र में वे सहायक महालेखाकार के रूप में कलकत्ता में भारतीय वित्त सेवा में शामिल हुए।
CV रमन जब 18 वर्ष के थे तो उन्हें प्रेसडेंसी कॉलेस में स्कॉलरशिप मिली थी और वे वहां से मास्टर डिग्री कर रहे थे। उसी दौरान उन्होंने प्रकाश के व्यवहार पर आधारित अपना पहला रिसर्च पेपर लिखा। रिसर्च पेपर लिखने के बाद उन्होंने अपने एक प्रोफेसर को अपना रिसर्च पेपर पढ़ने के लिए भेजा। लेकिन किसी कारणवश उनके प्रोफ़ेसर उनका वो रिसर्च पेपर नहीं पढ़ सके। लिहाजा CV रमन ने 'फोसोफिकल मैग्जीन' को अपना रिसर्च पेपर भेज दिया। रमन का प्रकाश पर आधारित वह रिसर्च पेपर इतना बेहतरीन था कि वह 1906 में मैग्जीन में पब्लिश हुआ और उसे ब्रिटेन के जाने-माने साइंटिस्ट बैरन रेले (John William Strutt, 3rd Baron Rayleigh) ने पढ़ा।
बैरेन रेले भौतिक विज्ञान और गणित के महान जानकार व विश्व के सबसे चर्चित वैज्ञानिकों में से एक रहे हैं। आसमान का रंग नीला क्यों नजर आता है इसकी खोज उन्होंने ही की थी। बैरेन ने जब CV रमन की वो रिसर्च रिपोर्ट पढ़ी तो वे रमन को प्रोफ़ेसर समझ बैठे थे। CV रमन की रिसर्च रिपोर्ट ने उन्हें बहुत ज्यादा प्रभावित किया। बैरेन ने रिपोर्ट पढने के बाद CV रमन को एक पत्र लिखकर उनकी प्रशंसा भी की। चूँकि वे CV रमन को प्रोफ़ेसर समझ बैठे थे लिहाजा अपने पत्र में भी उन्होंने रमन को प्रोफ़ेसर कहकर संबोधित किया। इस घटना के करीब 1 वर्ष बाद भौतिक विज्ञान में अपनी मास्टर डिग्री पूरी की।
CV रमन विज्ञान के क्षेत्र में कुछ अलग करना चाहते थे लिहाजा उन्होंने इसके लिए अपनी सरकारी नौकरी भी छोड़ दी थी। उन्हें 1917 में कलकत्ता विश्वविद्यालय में फिजिक्स का पहला पालित प्रोफेसर नियुक्त किया गया था। कलकत्ता विश्वविद्यालय में पढ़ाते हुए रमन ने कलकत्ता में ही 'इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइंस' यानि (IACS) में अपना रिसर्च भी जारी रखा। बाद में वह एसोसिएशन में मानद स्कॉलर बन गए। IACS में रमन ने एक ग्राउंड ब्रेकिंग एक्सपेरिमेंट किया जिसने अंततः उन्हें 28 फरवरी 1930 में फिजिक्स में नोबेल पुरस्कार दिलाया। CV रमन ने प्रकाश के प्रकीर्णन को देखकर प्रकाश की क्वांटम नेचर के एविडेंस की खोज की, एक ऐसा इफेक्ट जिसे 'रमन इफेक्ट' के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन को भारत में राष्ट्रीय विज्ञान दिवस 'National Science Day' के रूप में मनाया जाता है।
बहुत से लोग यह नहीं जानते कि इस प्रयोग में रमन के एक सहयोगी भी थे। सहकर्मी के रूप में के एस कृष्णन ने रमन के साथ मिल कर काम किया था। लेकिन दोनों के बीच कुछ प्रोफेशनल मतभेदों के कारण के एस कृष्णन ने नोबेल पुरस्कार साझा नहीं किया। हालांकि, रमन ने अपने नोबेल स्वीकृति भाषण में कृष्णन के योगदान का जोरदार उल्लेख किया था। एटोमिक न्यूक्लियस और प्रोटॉन के खोजकर्ता डॉ अर्नेस्ट रदरफोर्ड ने 1929 में रॉयल सोसाइटी के अपने अध्यक्षीय भाषण में रमन की स्पेक्ट्रोस्कोपी का उल्लेख किया। रमन को सोसाइटी के द्वारा एकनॉलेज्ड किया गया था और उन्हें नाइटहुड भी प्रदान किया गया था।
कहते हैं कि जिस वक्त CV रमन खोज कर रहे थे वे तभी से नोबेल पुरस्कार की उम्मीद कर रहे थे। आखिरकार उनका वो सपना भी पूरा हुआ और साल 1930 में उन्हें "प्रकाश के प्रकीर्णन पर उनके काम और रमन इफेक्ट की खोज के लिए" पुरस्कार मिला। वे इतना उत्सुक थे कि उन्होंने नवंबर में पुरस्कार प्राप्त करने के लिए जुलाई में ही स्वीडन के लिए टिकट बुक कर लिया था। रमन विज्ञान में नोबेल पुरस्कार जीतने वाले पहले एशियाई और गैर-श्वेत व्यक्ति थे। 1932 में रमन और सूरी भगवंतम ने क्वांटम फोटॉन स्पिन की खोज की। इस खोज ने प्रकाश की क्वांटम प्रकृति को और सिद्ध कर दिया। नोबेल पुरस्कार विजेता ऑप्टिकल थ्योरी के पीछे उनकी प्रेरणा के बारे में पूछे जाने पर, रमन ने कहा कि वह 1921 में यूरोप जाने के दौरान "भूमध्य सागर के अद्भुत नीले रंग के ओपेलेसेंस" से प्रेरित थे।
रमन न केवल प्रकाश के विशेषज्ञ थे बल्कि उन्होंने ध्वनिकी 'Acoustics' के साथ भी प्रयोग किया। तबला और मृदंगम जैसे भारतीय ढोल की ध्वनि की हार्मोनिक प्रकृति की जांच करने वाले रमन पहले व्यक्ति थे। उनकी पहली पुण्यतिथि पर भारतीय डाक सेवा ने सी वी रमन की एक स्मारक डाक टिकट प्रकाशित की थी जिसमें उनकी स्पेक्ट्रोस्कोपी और बैकग्राउंड में एक हीरा था। उन्हें 1954 में भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया था। एक रिपोर्ट के मुताबिक, मिशन चंद्रयान के दौरान चांद पर पानी का पता लगाने के लिए भी रमन स्पेकट्रोस्कोपी का ही योगदान था। 82 वर्षीय सी.वी. रमन का निधन 21 नवंबर 1970 को बेंगलुरु में हुआ था।