भारतीय संविधान के नीति-निर्देशक सिद्धांतों यानि 'Directive Principles of State Policy' में भी गायों के संवर्धन और रक्षण की बात कही गई है। देश में गौ रक्षा और गौ हत्या को लेकर कानून बनाने की मांग बहुत लंबे वर्षों से होती रही है। गौ हत्या के विरोध में कई जनांदोलन हुए लेकिन उनमें से पहला आन्दोलन था 7 नवंबर 1966 का। आज के दिन का इतिहास सैंकड़ों साधू-संतो के खूनों से लिखा गया है। ये वो इतिहास है जिसे सत्ता के मठाधिसो सत्ता के नसे में चूर होकर ऐसे दबा दिया कि उस घटना की हकीकत देश के समक्ष कभी आई ही नहीं। हालाँकि कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में इस घटना का उल्लेख किया गया लेकिन मृतकों की संख्या को लेकर एक विवाद हमेशा बना रहा। हम बात कर रहे हैं 7 नवंबर 1966 की जिसे हमारे साधू संत और अन्य गौभक्त (Gau rakshaks) काला दिवस (7 November 1966 Black Day) मानते हैं।
गौभक्तों द्वारा संसद घेराव की योजना
आज से ठीक 57 वर्ष पूर्व 7 नवंबर, 1966 को 'विक्रम संवत में कार्तिक शुक्ल अष्टमी, जिसे गोप अष्टमी भी कहते हैं, इस दिन देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की सरकार ने लाखों की संख्या में निहत्थे साधु-संतों पर गोलियां चलवाईं, आसूं गैस के गोले दागे गए और साथ ही लाठियां भी बरसाईं गईं। (1966 Hindu massacre in Delhi) इन साधू संतों का कसूर सिर्फ इतना था कि वे बड़ी संख्या में गौ हत्या पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की अपनी लोकतान्त्रिक माँग को लेकर नई दिल्ली में संसद भवन का घेराव कर रहा थे। इतने व्यापक तौर पर साधुओं और गौ भक्तों की भीड़ तत्कालीन सरकार से देखी नहीं गई और 3 से 7 लाख की भीड़ पर गोली चलवा दी गईं। 7 नवंबर के दिन गोरक्षा महाभियान समिति की देखरेख में सुबह 8 बजे से ही नई दिल्ली में संसद के बाहर लोग जुटने शुरू हो गए थे। समिति के संचालक स्वामी करपात्री जी महाराज ने चांदनी चौक स्थित आर्य समाज मंदिर से अपना सत्याग्रह आरंभ किया। उनके साथ जगन्नाथपुरी, ज्योतिष्पीठ और द्वारकापीठ के शंकराचार्य, वल्लभ संप्रदाय की सातों पीठ के पीठाधिपति और लाखों की संख्या में गोभक्त थे।
संसद से लेकर चांदनी चौक तक गौभक्तों और साधू संतों का एक जनसैलाब था। जम्मू-कश्मीर से लेकर केरल तक के लोग गोहत्या बंद कराने के लिए कानून बनाने की मांग लेकर संसद के समक्ष जुटे थे। उन दिनों इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं और गुलजारी लाल नंदा देश के गृहमंत्री। उस दौरा के एक वरिष्ठ पत्रकार मनमोहन शर्मा जिन्होंने ना सिर्फ इस घटना को देखा था बल्कि इसकी रिपोर्टिंग भी की थी वे कहते हैं कि 'कांग्रेस के अंदर भी एक धड़ा गौरक्षा क़ानून को लेकर समर्थन में था। हालांकि, इंदिरा गांधी ने इसे राज्यों का मामला बताकर क़ानून बनाने की संभावना से इनकार कर दिया। उन्होंने यह भी कहा कि वह गौरक्षकों के सामने नहीं झुकेंगी। गोहत्या रोकने के लिए इंदिरा सरकार केवल आश्वासन दे रही थी, ठोस कदम नहीं उठा रही थी। लिहाजा सरकार के झूठे वायदों से उकता कर संत समाज ने संसद के बाहर प्रदर्शन करने का निर्णय लिया था।
गौभक्तों पर लाठीचार्ज और फायरिंग
चांदनी चौक से करीब दोपहर 1 बजे यह जुलूस संसद भवन पहुंच गया और संतों के भाषण शुरू हो गए। करीब 3 बजे का समय होगा, जब आर्य समाज के स्वामी रामेश्वरानंद भाषण देने के लिए खड़े हुए। उन्होंने कहा, "यह सरकार बहरी है। यह गौहत्या को रोकने के लिए कोई भी ठोस कदम नहीं उठाएगी। इसे झकझोरना होगा।" इतना कुछ सुनते ही जनसभा में एकत्रित गौभक्त हरकत में आ गए। उन्होंने संसद भवन को घेर लिया। चूँकि इस प्रदर्शन की जानकारी सरकार को पहले से थी लिहाजा वहन पुलिसकर्मी पहले से ही लाठी बंदूक के साथ तैनात थे। पुलिस ने आदेश मिलते ही लाठीचार्ज कर दिया और आंसू गैस के गोले भी छोड़ना शुरू कर दिया। प्रशासन के इस कार्रवाई से भीड़ और अधिक आक्रामक हो गई। इतने में अंदर से गोली चलाने का आदेश हुआ और पुलिस ने भीड़ पर गोलीबारी शुरू कर दी।
संसद के सामने की पूरी सड़क खून से लाल हो गई। गोली चलते ही हर तरफ अफरा तफरी का माहौल बन गया। लोग मर रहे थे, एक-दूसरे के शरीर पर गिर रहे थे पर गोलीबारी जारी थी। प्रत्यक्षदर्शियों में शामिल 85 वर्षीय वरिष्ठ पत्रकार मनमोहन शर्मा का कहना है कि इस घटना में कम से कम 5,000 गोभक्त मारे गए थे। हालाँकि आपको बता दें कि मृतकों के आंकड़े को लेकर आज तक विवाद है। क्योंकि तत्कालीन सरकार ने जो आंकड़ा जारी किया था उनमें 9 से 10 लोगों के मारे जाने की बात कही गई थी। कुछ रिपोर्ट्स 250 का आंकड़ा बताते हैं, लेकिन कई रिपोर्ट्स में कहते हैं कि ये आंकड़ा हजारों में थी।
तत्कालीन सरकार के आंकड़े
घटना को दबाने का प्रयास
इस घटना के बाद तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार पर एक और और आरोप लगा। वो आरोप था इस घटना को दबाने की कोशिश। मनमोहन शर्मा एक साक्षात्कार में कहते हैं कि तत्कालीन सरकार ने इस घटना को दबाने के लिए मीडिया पर दबाव बनाया। देश के लोगों से इस घटना की सच्चाई छिपाई गई। पांचजन्य की रिपोर्ट के मुताबिक यह घटना दिल्ली से बाहर न जा पाए, इसलिए सरकार ने शहर की टेलिफोन लाइन को काटने का आदेश दिया। ट्रक बुलाकर मृत, घायल, जिंदा- सभी को उसमें भरा जाने लगा। जिन घायलों के बचने की संभावना थी, उनकी भी ट्रक में लाशों के नीचे दबकर मौत हो गई। पूरी दिल्ली में कर्फ्यू लागू कर दिया गया और संतों को तिहाड़ जेल भेज दिया गया। केवल शंकराचार्य को छोड़कर अन्य सभी संतों को तिहाड़ जेल में डाल दिया गया।
गृहमंत्री का इस्तीफा
इसके बाद इस आन्दोलन के मुखिया करपात्री जी महाराज ने जेल से ही सत्याग्रह शुरू कर दिया। उनके ओजस्वी भाषणों से जेल गूंजने लगी। पांचजन्य के मुताबिक उस समय जेल में करीब 50,000 लोगों को बंद किया गया था। उनमें नागा साधु भी शामिल थे। नागा साधु छत के नीचे नहीं रहते, इसलिए उन्होंने तिहाड़ जेल के आंगन में ही अपना डेरा जमा लिया। लेकिन ठंड बहुत थी। साधुओं ने लकड़ी के सामान को तोड़ कर जलाना शुरू किया। उधर इंदिरा गांधी ने गुलजारी लाल नंदा पर इस गोलीकांड की जिम्मेदारी डालते हुए उनसे गृहमंत्री का पद छोड़ने को कहा। उनकी जगह यशवंत राव बलवतराव चौहान को देश का गृहमंत्री बना दिया गया। पद संभालते ही चौहान खुद तिहाड़ जेल गए और उन्होंने नागा साधुओं को आश्वासन दिया कि उनके अलाव के लिए लकड़ी की व्यवस्था की जा रही है। जब लकड़ी से भरे ट्रक जेल के अंदर पहुंचे, तब साधु शांत हुए।
लगभग एक महीने बाद लोगों को जेल से छोड़ा गया। जेल से निकल कर भी करपात्री जी सत्याग्रह करते रहे। पुरी के शंकराचार्य और प्रभुदत्त ब्रहमचारी जी का आमरण अनशन कई महीने चला। बाद में सरकार ने इस आंदोलन को समाप्त करने के लिए छल का सहारा लिया। गृहमंत्री चौहान ने करपात्री जी से भेंट की और उन्हें भरोसा दिलाया कि अगले संसद सत्र में गोहत्या बंदी कानून बनाने के लिए अध्यादेश लाया जाएगा और इसे कानून बना दिया जाएगा। लेकिन देश का दुर्भाग्य देखिए कि आज 57 वर्ष बाद भी गौहत्या बंदी कानून को अखिल भारतीय स्वरूप नहीं मिला है। इंदिरा गाँधी ने इसे राज्य का विषय बताते हुए टाल दिया। "इसे देश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार जनतंत्र के सभी सिद्धान्तों को ताक पर रखकर देश की 85 प्रतिशत जनता की मांग की न केवल उपेक्षा की बल्कि अपनी शक्तियों का उपयोग कर उसे दबाने पर तुली रही।
अब इन राज्यों में गौहत्या पर प्रतिबंध
बहरहाल अब देश के कई राज्यों में ये कानून बनाए चुके हैं। जैसे सिक्किम देश का पहला राज्य माना जाता है, जिसने गोहत्या पर प्रतिबंध का कानून बनाया है। सिक्किम के अलावा जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, गुजरात, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ में गोहत्या पर प्रतिबंध है। दिल्ली और चंडीगढ़ में भी गोहत्या प्रतिबंधित है। केंद्र सरकार के स्तर पर गौहत्या रोकने के लिए अभी तक कोई कानून नहीं बनाया गया है, जबकि कई हिंदू संगठन इसके लिए लगातार मांग करते रहे हैं। हालांकि, केंद्र सरकार ने मई 2017 में द प्रिवेंशन ऑफ क्रूएलिटी टू एनीमल्स कानून को नोटिफाई कर दिया था। इसके तहत यह सुनिश्चित करना था कि मवेशी बाजार में कोई पशु हत्या के लिए न बेचा जा सके। तब इस कानून पर खूब विवाद हुआ था। दक्षिण और पूर्व के राज्यों से इसको लेकर विरोध व्यक्त किये गए थे। केंद्र सरकार ने 'कामधेनु आयोग' का गठन किया है जिसका काम दुधारु पशुओं की रक्षा और संवर्धन करना है।