1947 में वेस्ट पाकिस्तान से शरणार्थी बनकर आया था कपिल सिब्बल का परिवार: आज जम्मू-कश्मीर में वेस्ट पाकिस्तानी शरणार्थियों के अधिकारों के विरोध में क्यों?

    11-दिसंबर-2023
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Kapil Sibal history
 

जम्मू कश्मीर के विकास में बाधा उत्पन्न करने व PoJK विस्थापितों और वेस्ट पाकिस्तानी शरणार्थियों से उनके अधिकार छीनने वाले अनुच्छेद 370 व 35A को समाप्त हुए आज 4 वर्ष पूरे हो चुके हैं। अनुच्छेद 370 की समाप्ति को असंवैधानिक बताते हुए देश के सर्वोच्च न्यायालय में कुल 23 याचिकाओं दाखिल की गई थी। याचिका में मांग की गई थी कि जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 को पुनः बहाल किया जाए। लिहाजा इन याचिकाओं पर 2 अगस्त 2023 से सुनवाई शुरू हुई जो 5 सितंबर यानि कुल 16 दिनों तक सुनवाई चली। मुख्य न्यायाधीश DY चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में कुल 5 जजों की संवैधानिक पीठ ने इन याचिकाओं पर सुनवाई की थी। कुल 18 वकीलों की ओर से याचिकाकर्ताओं का केस पेश किया गया था। इस बीच विडंबना यह है कि इस मामले में कपिल सिब्बल जो ख़ुद भी एक वेस्ट पाकिस्तानी रिफ्यूजी परिवार से संबंध रखते हैं वे याचिकाकर्ताओं की ओर से मुख्य वकील के रूप में शामिल हैं। जो वेस्ट पाकिस्तानी शरणार्थियों समेत जम्मू कश्मीर के लाखों लोगों के मूलभूत अधिकारों का हनन करने वाले आर्टिकल 370 व 35ए की वापसी की मांग कर रहे हैं।
 
 
आज सोमवार (11 दिसंबर 2023) को सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू कश्मीर में एक विधान-एक निशान और भारतीय संविधान सर्वोच्चता ही सुप्रीम है, इस पर सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने भी मुहर लगा दी। चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में 5 जजों की बेंच ने एक मत से फैसला सुनाया कि- "आर्टिकल 370 अस्थायी था, 1947 में अधिमिलन पत्र पर हस्ताक्षर के साथ ही जम्मू कश्मीर की सम्प्रभुता समाप्त हो गयी थी, इसी के साथ जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग बन गया, जम्मू कश्मीर को किसी भी तरह की आतंरिक सम्प्रभुता नहीं थी।" सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले से उन तमाम याचिकाकर्ताओं को तगड़ा झटका लगा है जो केंद्र सरकार के फैसलों को असंवैधानिक करार दे रहे थे। लेकिन आज के इस ऐतिहासिक दिन हम अनुच्छेद 370 व 35A के खिलाफ याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश मुख्य वकील कपिल सिब्बल के पारिवारिक पृष्ठभूमि से आपको रूबरू कराएँगे। 

PoJK विस्थापितों के लिए अभिशाप अनुच्छेद 35A
 
 
दरअसल जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 और 35 A के बड़े पीड़ित वेस्ट पाकिस्तानी शरणार्थी हैं। वो शरणार्थी, जिन्होंने 1947 में बंटवारे के बाद पश्चिमी पाकिस्तान (वर्तमान पाकिस्तान) से विस्थापित होकर जम्मू कश्मीर में शरण ली थी। वर्तमान में उनकी संख्या करीब 2 लाख है। लेकिन अगले 7 दशकों तक, अनुच्छेद 35A के कारण उन्हें सामान नागरिक अधिकारों से वंचित रहना पड़ा। जम्मू कश्मीर में उन्हें न स्थायी निवासी होने का अधिकार था, न प्रॉपर्टी, न सरकारी नौकरी का अधिकार, जिनके वे असल हकदार थें। लेकिन 5 अगस्त 2019 को जब केंद्र की मोदी सरकार ने जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 व 35A को समाप्त किया तो इन पीड़ित परिवारों को ना सिर्फ उनका अधिकार मिला बल्कि वे विकास की मुख्य धारा से भी जुड़ गए। लेकिन इन सब के बीच आज कपिल सिब्बल अनुच्छेद 370 व 35A को हटाए जाने का विरोध कर रहे हैं। ऐसे में एक नजर कपिल सिब्बल के पारिवारिक इतिहास पर भी डालना चाहिए।


Kapil Sibal Father Heera Lal Sibal
 
हीरा लाल सिब्बल और उनकी पत्नी कैलाश रानी सिब्बल

कपिल सिब्बल का पारिवारिक इतिहास
 
 
कपिल सिब्बल के पिता थे हीरा लाल सिब्बल, जिनका जन्म 14 सितंबर 1914 को पंजाब प्रांत के गुजरात ज़िले के डींगा में हुआ था। विभाजन से पूर्व उनकी प्रारंभिक शिक्षा लाहौर में संपन्न हुई और फिर उन्होंने 1937 में लाहौर की ज़िला अदालतों में अपनी वकालत की प्रैक्टिस शुरू की। कुछ दिनों तक यहाँ लॉ प्रैक्टिस करने के उपरांत 1947 में जब देश का विभाजन हुआ तो पाकिस्तान के जुल्मों सितम के बीच उन्हें अपने परिवार समेत भारत में शरण लेनी पड़ी। भारत आने के बाद हीरा लाल सिब्बल का परिवार पंजाब के जालंधर में शिफ्ट हुआ। 1948 में हीरा लाल सिब्बल शिमला चले गए और यहाँ उन्होंने शिमला हाई कोर्ट में फिर से अपनी क़ानूनी प्रैक्टिस की शुरुआत की।



history of Heera Lal Sibal
 
शिमला में अपनी पत्नी कैलाश रानी, और बेटे वीरेंद्र, जीतेन्द्र, कँवल और बेटी आशा के साथ हीरा लाल सिब्बल
भारत में मिला मान-सम्मान
 
 
भारत में शरण लेने के उपरांत हीरा लाल सिब्बल को बेतहाशा मान और सम्मान मिला। उन्हें सभी अधिकार मिले। वे लंबे वक्त तक कई महत्वपूर्ण पदों पर भी बने रहे। उन्हें वर्ष 1961 में वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित किया गया था। हीरा लाल सिब्बल को 1964 और 1975 में “हाई कोर्ट बार एसोसिएशन” के अध्यक्ष के रूप में भी चुना गया था। उन्हें (1968-1969) पंजाब और फिर 1970-1972 में हरियाणा का एडवोकेट जनरल नियुक्त किया गया था।
 
 
इसके उपरांत हीरा लाल सिब्बल को वर्ष 1994 में इंटरनेशनल बार एसोसिएशन द्वारा 'लिविंग लेजेंड्स ऑफ लॉ' पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इस बीच तक उन्होंने भारत में अपनी एक अलग पहचान बना ली थी। वर्ष 2003 में उन्हें 'पंजाब रतन' पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 29/3/2006 को UPA के कार्यकाल में हीरा लाल सिब्बल को भारत के राष्ट्रपति द्वारा "पद्म भूषण" से भी सम्मानित किया गया था।

history of Heera Lal Sibal
 
चंडीगढ़ स्थित आवास पर अपने बच्चों के साथ हीरा लाल सिब्बल


हीरा लाल सिब्बल हिमाचल प्रदेश में आ गये तो उन्हें भारतीय नागरिक होने ने नाते सब अधिकार मिले किंतु जम्मू कश्मीर में रहने वाले वेस्ट पाकिस्तानी रिफ़्यूजीस को अनुच्छेद 35 A के दंश से छुटकारा मिला 5 अगस्त 2019 को जब केंद्र सरकार ने जम्मू कश्मीर को अनुच्छेद 370 व अनुच्छेद 35A की बेड़ियों से पूरी तरह आजाद किया। आज इन PoJK विस्थापितों को वो सभी अधिकार प्राप्त हैं जिनसे उन्हें वंचित रखा गया था। आज कपिल सिब्बल उस अनुच्छेद 370 व 35A को जायज़ ठहरा रहे हैं जिसने दलितों/शोषितों और महिलाओं से उनके हक़ छीन लिए थे।
 

'अनुच्छेद 35A के कारण मौलिक अधिकारों का हुआ हनन' ; CJI डीवाई चंद्रचूड़
 
 
आर्टिकल 370 व 35A हटाए जाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जारी सुनवाई के 11वें दिन यानि गत सोमवार को CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने भी अनुच्छेद 35A का जिक्र किया। CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने भी माना कि अनुच्छेद 35A जम्मू-कश्मीर के लोगों के मूलभूत अधिकारों को ही छीन लेता था। उन्होंने टिप्पणी करते हुए कहा कि 'एक तरह से आर्टिकल 35A जम्मू-कश्मीर के लोगों के सारे मूलभूत अधिकारों को ही छीन लेता था। आप 1954 का आदेश देख सकते हैं, जो संविधान के पार्ट 3 पर लागू होता था। इसके चलते राज्य सरकार के तहत रोजगार, अचल संपत्ति की खरीद और राज्य के नागरिक के तौर पर अधिकार जैसे मूलभूत अधिकार नहीं मिलते थे। उन्होंने कहा कि आर्टिकल 16(1) सभी नागरिकों के लिए रोजगार के अवसर की समानता की बात करता है। लेकिन आर्टिकल 35A उसे छीन लेता था। इस तरह राज्य के स्थायी नागरिक का दर्जा पाए लोगों के लिए एक अलग कानून होता था और दूसरे लोगों के लिए कानून की अलग व्याख्या होती थी। इसी तरह, आर्टिकल 19 – यह देश के किसी भी हिस्से में रहने और बसने के अधिकार को मान्यता देता है। इसलिए 35A द्वारा सभी तीन मौलिक अधिकार अनिवार्य रूप से छीन लिए गए। साथ ही साथ न्यायिक समीक्षा की शक्ति छीन ली गई।
 
 
 
अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद हुए बदलाव
 
 
आज जम्मू कश्मीर जब आर्टिकल 370 व 35A की बेड़ियों से आज़ाद हो चुका है, तब धरती का स्वर्ग कहा जाने वाला जम्मू कश्मीर और लद्दाख अब देश के बाकी हिस्से के साथ विकास की राह पर आगे बढ़ रहा है। केन्द्र के 170 कानून जो पहले जम्मू कश्मीर में लागू नहीं थे, अब वे इस क्षेत्र में लागू कर दिए गए हैं। वर्तमान में सभी केंद्रीय क़ानून केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर में लागू हैं।
 
 
 
 
चाइल्ड मैरिज एक्ट , शिक्षा का अधिकार और भूमि सुधार जैसे कानून अब यहां भी प्रभावी है। वाल्मीकि, दलित और गोरखा जो जम्मू कश्मीर में दशकों से रह रहे हैं, उन्हें भी राज्य के अन्य निवासियों की तरह समान अधिकार मिल रहे हैं। मूल निवासी कानून लागू किया गया। नई मूल निवासी परिभाषा के अनुसार 15 वर्ष या अधिक समय तक जम्मू कश्मीर में रहने वाले व्यक्ति भी अधिवासी माने जाएंगे। 1990 आतंकवाद के दौर में कश्मीर घाटी से कश्मीरी हिंदुओं का निष्कासन हुआ आज अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद उन्हें फिर से बसाने का रास्ता साफ हो गया है। कश्मीरी प्रवासियों की वापसी के लिए 6000 नौकरियों और 6000 पारगमन आवासों के निर्माण का कार्य प्रगति पर है। जम्मूक-कश्मीर से बाहर विवाह करने वाली लड़कियों और उनके बच्चों के अधिकारों का संरक्षण भी सुनिश्चित हुआ है। POJK विस्थापितों को PRC मिला।
 
 
ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि जिनके माता पिता ख़ुद भारत में एक शरणार्थी के तौर पर बसे और यहाँ उन्हें मान सम्मान और सभी अधिकार मिले क्या वही अधिकार POJK विस्थापितों को नहीं मिलना चाहिए ? क्या वही अधिकार जम्मू कश्मीर में रहने वाले वाल्मीकि, गोरखा और दलितों को नहीं मिलना चाहिए ? क्योंकि जिस तरह से उनके पिता एक शरणार्थी थे उसी तरह ये लोग भी शरणार्थी हैं, जो सदियों तक अनुच्छेद 370 व 35A की वजह से अपने अधिकारों से वंचित रहे। आज 370 की समाप्ति के बाद जब उन्हें उनका अधिकार मिला है तो फिर अनुच्छेद 370 के ख़ात्में को लेकर यह वकालत क्यों ?