छंब हत्याकांड, दिसंबर 1952-53 ; कहानी स्वतंत्र भारत के पहले राष्ट्रवादी जनांदोलन प्रजा परिषद की, जब स्वतंत्र भारत में तिरंगा फहराने वालों पर शेख़ अब्दुल्ला ने चलवाई थी गोलियाँ

04 Dec 2023 14:47:31
 
Chhamb Hatyakand Praja Parishad
 
 
Praja Parishad : 1947 से लेकर 1953 तक चला प्रजा परिषद आन्दोलन जम्मू-कश्मीर (Jammu Kashmir) के लोकतंत्रीकरण और उसके संघीय संवैधानिक व्यवस्था में एकीकरण के लिए चलाया गया था। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद प्रजा परिषद् आंदोलन भारत में सबसे पहला और सबसे बड़ा जन-आंदोलन था। इस आंदोलन की शुरुआत जम्मू में शेख अब्दुल्ला द्वारा फैलाई गई अराजकता और अलगाववाद के खिलाफ हुई थी। शेख अब्दुल्ला के दो विधान, दो प्रधान और दो निशान के खिलाफ शुरू यह आन्दोलन देखते ही देखते एक जनांदोलन के रूप में परिवर्तित हो गया। आंदोलनकारियों की सीधी माँग थी कि भारत का पूरा संविधान पूरे जम्मू कश्मीर में लागू किया जाए। इस आंदोलन को पूरे राज्य की पहचान बनाने में सबसे बड़ी भूमिका श्री प्रेमनाथ डोगरा की थी और इसे पूरे देश में फैलाने का श्रेय श्री श्यामाप्रसाद मुखर्जी को जाता है। श्री मुखर्जी ने इस जन-आंदोलन को समूचे देश में राष्ट्रवादी पहचान दी।
 
 
Chhamb Hatyakand Praja Parishad
 
 पंडित श्री प्रेमनाथ डोगरा
 
प्रजा परिषद् आन्दोलन और शेख की दमनकारी नीति
 
 
वर्ष 1950 में भारतीय संविधान में आर्टिकल 370 जोड़ा गया और ये आर्टिकल परिणाम था शेख अब्दुल्ला की विभाजनकारी नीतियों का और नेहरू द्वारा शेख को अंध-समर्थन देने का। 1947 में जम्मू कश्मीर का भारत में अधिमिलन हुआ और भारत का सम्पूर्ण संविधान जब वहाँ लागू करने की बात आई तब शेख अब्दुल्ला ने इसे अपनी कुटिल चालों से रोकने का प्रयत्न किया। आर्टिकल 370 की आड़ में जम्मू कश्मीर में दो विधान, दो निशान, दो प्रधान की नीति अपनाई जा रही थी, साथ ही ऐसी कई नीतियाँ बनाई जा रही थीं जो देश के संविधान के विरुद्ध थी। आलम यह था कि अपने ही देश में तिरंगा उठाने वालो को गोलियों से भुन दिया जाता था, आन्दोलनकारियों को जेल में डाल दिया गया। यहाँ तक महिलाएं और बच्चों के साथ भी जुल्म किए गए। कल्पना कीजिये कि एक तरफ देश आज़ाद हुआ था, देश के बाकी हिस्सों में आजादी का जश्न मन रहा था, वहीँ दूसरी तरफ जिस तिरंगे को हाथ में लेकर स्वतंत्रता संग्राम हुआ, उसी तिरंगे को जम्मू कश्मीर में फहराने पर लोगों को गोली मार दी जा रही थी। प्रजा परिषद् आंदोलन में जुटे नेता शांतिपूर्ण ढंग से सिर्फ एक ही मांग पर अड़े थे, और वो था एक विधान, एक प्रधान और एक निशान। लेकिन जम्मू कश्मीर की तत्कालीन दमनकारी सरकार को यह मंजूर नहीं था और उसने यह कुकृत्य किया।
 
 
Chhamb Hatyakand Praja Parishad
 
 
 
शेख अब्दुल्ला ने महाराजा हरिसिंह के ध्वज को हटाकर, नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) के झंडे में थोड़े परिवर्तन कर उसे जम्मू कश्मीर राज्य का झंडा घोषित कर दिया। प्रजा परिषद् ने इसका विरोध किया और जम्मू कश्मीर के नौजवानों ने तिरंगे को फहराना शुरू कर दिया। नेहरू से अभयदान पाए हुए शेख अब्दुल्ला और उसकी सरकार के अत्याचार का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि जम्मू कश्मीर के अलग अलग हिस्सों में 16 नौजवानों को गोलियों से भून दिया गया, क्योंकि उन्होंने अपने ही देश में तिरंगा फहराने का दुस्साहस किया था। 
 
 
पहला तिरंगा हत्याकांड हुआ 14 दिसंबर 1952 को, जब छम्ब में मेला राम नमक युवा की पुलिस ने तिरंगा फहराने पर गोली मार कर हत्या कर दी। सरकार विरोधी आंदोलन वहाँ इतना बढ़ गया की अंतिम संस्कार के लिए मेला राम का पार्थिव शरीर जम्मू लाना पड़ा।
 

Chhamb Hatyakand Praja Parishad 
 कठुआ ज़िले के हीरानगर में स्थित भीख्म सिंह की समाधी स्थल
 
 
सरकार द्वारा दूसरा हत्याकांड किया गया 11 जनवरी 1953 को कठुआ ज़िले के हीरानगर में। छान मोरियाँ गाँव के बिहारी लाल और गढ़ मुंडियां के भीकम सिंह की तिरंगा फहराने का दुस्साहस करने पर पुलिस ने नृशंस हत्या कर दी। इस गोलीबारी में कई और लोग भी बुरी तरह घायल हुए और एक व्यक्ति ज्ञानचंद संग्रा की आँखों की रौशनी चली गयी। पुलिस की बर्बरता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि, हत्याकांड के बाद पुलिस दोनों का शव अपने साथ ले गयी, बाद में उनके अधजले शरीर एक सुनसान इलाके से द्वारका नाथ को मिले, जो प्रजा परिषद् आंदोलन में शामिल थे।
 
 
Chhamb Hatyakand Praja Parishad
 
  कठुआ ज़िले के हीरानगर में स्थि बिहारी लाल जी की  समाधी स्थल
 
 
तीसरा हत्याकांड - जोरियाँ हत्याकांड - 30 जनवरी 1953 को अखनूर तहसील से 55 कि मी दूर जोरियाँ कस्बे में तिरंगा फहराने लोग एकत्रित हो गए। राज्य की फ़ोर्स के साथ आयी पुलिस ने पहले आंसू गैस छोड़ी और फिर फायरिंग शुरू कर दी, जिसमें 7 युवा वीरगति को प्राप्त हुए और कई लोग बुरी तरह घायल हो गए। दिवंगत लोगों में नानक चाँद , बसंत राम , बलदेव सिंह राठी , सैन सिंह, वर्यम सिंह और त्रिलोक सिंह प्रग्वाल शामिल थे। लोगों को आतंकित करने के लिए पुलिस ने आस पास के गावों में जाकर लोगो के घर उजाड़ दिए और उनको बेरहमी से पीटा।
 
 
Chhamb Hatyakand Praja Parishad
 
 जोरियाँ में स्थित अमर शहीद स्मारक
 
चौथा हत्याकांड- सुंदरबनी हत्याकांड- यहाँ एक सरकारी इमारत पर तिरंगा फहराने पर तीन लोगों की, जिनके नाम थे , किशन लाल, बाबा रामजी और बेली राम, पुलिस ने गोली मार कर हत्या कर दी।
 
 
Chhamb Hatyakand Praja Parishad
 
 सुंदरबनी में स्थित किशन लाल, बाबा रामजी और बेली राम की समाधी स्थल
 
 
पाँचवाँ हत्याकांड- रामबन हत्याकांड- 1 मार्च 1955 में पुलिस ने एक बार फिर तीन युवाओं, शिब राम, देवी शरण और भगवान दास की तिरंगा फहराने का दुस्साहस करने पर हत्या कर दी। इन सभी वीरगति को प्राप्त बलिदानियों की स्मृति में इन स्थानों पर स्मारक बने हुए हैं
 
 
 
Chhamb Hatyakand Praja Parishad
 
 रामबन में स्थित शिब राम, देवी शरण और भगवान दास की समाधी स्थल
 
आज से 7 दशक पहले देश की अखंडता और सम्प्रभुता के लिए और शेख अब्दुल्ला की विभाजनकारी नीतियों के विरुद्ध, जो प्रजा परिषद् आंदोलन शुरू हुआ और जिसमें कई लोगों की जाने गयीं, जिनकी याद में ये स्मारक बने हैं, उनकी आत्मा को शांति अब मिली होगी। जब जम्मू कश्मीर से 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 व आर्टिकल 35 A को हटाया गया। इसका सारा श्रेय जाता है, प्रजा परिषद् आंदोलन के जनक श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पंडित प्रेमनाथ डोगरा को।  
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
Powered By Sangraha 9.0