ISRO के मुताबिक 'प्रोपल्शन मॉड्यूल' ने 10 नवंबर को चंद्रमा से धरती की यात्रा शुरू की थी। गौरतलब है कि चंद्रयान-3 मिशन का प्रमुख उद्देश्य चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र के समीप सॉफ्ट लैंडिंग करना और लैंडर ‘विक्रम’ तथा रोवर ‘प्रज्ञान’ पर उपलब्ध उपकरणों का इस्तेमाल कर नए-नए प्रयोग करना था। जोकि ISRO ने इस उद्देश्य को बखूबी पूरा किया और यह सफलता हासिल करने वाला विश्व का पहला देश बन गया। इस अंतरिक्ष यान का एलवीएम3-एम4 रॉकेट के जरिए सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से 14 जुलाई 2023 को प्रक्षेपण किया गया था। इसमें प्रणोदन मॉड्यूल यानि 'प्रोपल्शन मॉड्यूल' का मुख्य उद्देश्य 'जियोस्टेशनरी ट्रांसफर ऑर्बिट' (GTO) से लैंडर मॉड्यूल को चंद्रमा की अंतिम ध्रुवीय गोलाकार कक्षा तक पहुंचाना और लैंडर को अलग करना था। ISRO के मुताबिक लैंडर को अलग करने के बाद प्रणोदन मॉड्यूल में पेलोड ‘स्पेक्ट्रो-पोलरीमेट्री ऑफ हैबिटेबल प्लेनेट अर्थ’ को भी संचालित किया गया।
इस बीच ISRO की शुरुआती योजना इस पेलोड को 'प्रोपल्शन मॉड्यूल' के जीवनकाल के दौरान करीब 3 महीने तक संचालित करनी थी। लेकिन चंद्रमा की कक्षा में काम करने के एक महीने से भी अधिक समय बाद 'प्रोपल्शन मॉड्यूल' में 100 किलोग्राम से अधिक ईंधन उपलब्ध है। लिहाजा ISRO ने 'प्रोपल्शन मॉड्यूल' में उपलब्ध ईंधन का इस्तेमाल भविष्य के चंद्र मिशन के लिए अतिरिक्त सूचना जुटाने में करने का फैसला किया है।ISRO के मुताबिक SHAPE पेलोड के जरिए धरती की स्टडी करने के लिए 'प्रोपल्शन मॉड्यूल' को धरती के नजदीक और उसकी सही ऑर्बिट में लाना था। लिहाजा यह फैसला हुआ कि उसे चांद की 100 किलोमीटर ऊंचाई वाली गोलाकार ऑर्बिट से वापस लाया जाए। इसके बाद 9 अक्टूबर 2023 को ISRO वैज्ञानिकों ने 'प्रोपल्शन मॉड्यूल' को अपनी ऑर्बिट बदलने का निर्देश दिया।
'प्रोपल्शन मॉड्यूल' चांद के चारों तरफ आगे बढ़ा, उसने अपनी कक्षा 150x5112 km कर ली। पहले वह 100 km वाली ऑर्बिट में चांद के चारों तरफ एक चक्कर 2.1 घंटे में लगा रहा था। फिर यह 7.2 घंटे में लगाने लगा। इसके बाद ISRO वैज्ञानिकों ने PM में मौजूद फ्यूल की जांच की, इसके बाद 13 अक्टूबर को दूसरा ऑर्बिट बदलकर 1.8 लाख x 3.8 लाख किलोमीटर किया गया, इसे ट्रांस-अर्थइंजेक्शन (TEI) मैन्यूवर कहा जाता है। इसके बाद 22 नवंबर को इसके ऑर्बिट में ISRO द्वारा सुधार किया गया और इसकी पेरिजी 1.15 लाख किलोमीटर की गई जबकि एपोजी 3.8 लाख किलोमीटर ही है। फिलहाल अब वह ऐसी सुरक्षित जगह से धरती पर नजर रख रहा है, जहां उसे किसी अन्य ग्रह, सैटेलाइट, उल्कापिंड या मेटियोर से खतरा नहीं है। अब प्लान के मुताबिक SHAPE पेलोड को धरती की तरफ घुमाया गया है। ISRO के मुताबिक अब इसके अंदर लगे SHAPE पेलोड के जरिए धरती की स्टडी की जाएगी।
INDIA TODAY की एक रिपोर्ट्स के मुताबिक चंद्रयान-3 का प्रोपल्शन मॉड्यूल परमाणु तकनीक यानि (Nuclear Technology) से ऊर्जा हासिल कर रहा है। रिपोर्ट्स में बताया गया है कि कुछ दिन पहले एटॉमिक एनर्जी कमीशन के चेयरमैन अजित कुमार मोहंती ने इस बात की पुष्टि की थी। उन्होंने बताया कि प्रोपल्शन मॉड्यूल में 2 'रेडियो आइसोटोप हीटिंग यूनिट्स' (Radioisotopes Heating Units - RHU) लगाए गए हैं। जो एक वॉट की ऊर्जा पैदा कर रहा है। इससे यान को चलते रहने के लिए जरूरी तापमान मिल रहा है। ISRO के मुताबिक जब चंद्रयान-3 की लॉन्चिंग हुई थी.तब प्रोपल्शन मॉड्यूल में 1696.4 kg ईधन था। इसके बाद प्रोपल्शन मॉड्यूल के सहारे ही पृथ्वी के चारों तरफ 5 बार ऑर्बिट बदले गए।