ISRO ने स्थापित नया कीर्तिमान ; चंद्रमा से पृथ्वी की कक्षा में लौटा चंद्रयान-3 का प्रोपल्शन मॉड्यूल, जानें पूरा मामला

    05-दिसंबर-2023
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Chandrayaan-3 propulsion module


23 अगस्त 2023 यह वह तारीख थी जब ISRO यानि 'भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन' ने इतिहास रचा और प्रज्ञान रोवर को चन्द्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतारा था। चंद्रयान-3 की इस सफलता के बाद चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहुँचने वाला भारत विश्व का पहला देश बन गया। ठीक इसके बाद सितम्बर माह में जब विक्रम लैंडर ने हॉक टेस्ट किया तो एक नई उम्मीद जगी कि हम मिशन को सिर्फ अंतरिक्ष में भेज ही नहीं सकते बल्कि उसे वापस पृथ्वी की कक्षा में वापस ला भी सकते हैं। लिहाजा अब इसी कड़ी में ISRO ने चांद के चारों तरफ चक्कर लगा रहे 'प्रोपल्शन मॉड्यूल' (Propulsion Module - PM) को वापस पृथ्वी की कक्षा में स्थापित कर एक बार फिर नया कीर्तिमान स्थापित कर दिया है। इस नए कारनामे से ISRO ने पूरी दुनिया को हैरान कर दिया है। अब इसके अंदर लगे SHAPE पेलोड के जरिए धरती की स्टडी की जाएगी। यानि आसान शब्दों में समझे तो ISRO चंद्रयान-3 के प्रोपल्शन मॉड्यूल को वापस पृथ्वी पर ला रहा है, इसके लिए ISRO ने रिटर्न मैनुअल किया था।
 

ISRO के मुताबिक 'प्रोपल्शन मॉड्यूल' ने 10 नवंबर को चंद्रमा से धरती की यात्रा शुरू की थी। गौरतलब है कि चंद्रयान-3 मिशन का प्रमुख उद्देश्य चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र के समीप सॉफ्ट लैंडिंग करना और लैंडर ‘विक्रम’ तथा रोवर ‘प्रज्ञान’ पर उपलब्ध उपकरणों का इस्तेमाल कर नए-नए प्रयोग करना था। जोकि ISRO ने इस उद्देश्य को बखूबी पूरा किया और यह सफलता हासिल करने वाला विश्व का पहला देश बन गया। इस अंतरिक्ष यान का एलवीएम3-एम4 रॉकेट के जरिए सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से 14 जुलाई 2023 को प्रक्षेपण किया गया था। इसमें प्रणोदन मॉड्यूल यानि 'प्रोपल्शन मॉड्यूल' का मुख्य उद्देश्य 'जियोस्टेशनरी ट्रांसफर ऑर्बिट' (GTO) से लैंडर मॉड्यूल को चंद्रमा की अंतिम ध्रुवीय गोलाकार कक्षा तक पहुंचाना और लैंडर को अलग करना था। ISRO के मुताबिक लैंडर को अलग करने के बाद प्रणोदन मॉड्यूल में पेलोड ‘स्पेक्ट्रो-पोलरीमेट्री ऑफ हैबिटेबल प्लेनेट अर्थ’ को भी संचालित किया गया।

 
Chandrayaan-3 propulsion module
 

इस बीच ISRO की शुरुआती योजना इस पेलोड को 'प्रोपल्शन मॉड्यूल' के जीवनकाल के दौरान करीब 3 महीने तक संचालित करनी थी। लेकिन चंद्रमा की कक्षा में काम करने के एक महीने से भी अधिक समय बाद 'प्रोपल्शन मॉड्यूल' में 100 किलोग्राम से अधिक ईंधन उपलब्ध है। लिहाजा ISRO ने 'प्रोपल्शन मॉड्यूल' में उपलब्ध ईंधन का इस्तेमाल भविष्य के चंद्र मिशन के लिए अतिरिक्त सूचना जुटाने में करने का फैसला किया है।ISRO के मुताबिक SHAPE पेलोड के जरिए धरती की स्टडी करने के लिए 'प्रोपल्शन मॉड्यूल' को धरती के नजदीक और उसकी सही ऑर्बिट में लाना था। लिहाजा यह फैसला हुआ कि उसे चांद की 100 किलोमीटर ऊंचाई वाली गोलाकार ऑर्बिट से वापस लाया जाए। इसके बाद 9 अक्टूबर 2023 को ISRO वैज्ञानिकों ने 'प्रोपल्शन मॉड्यूल' को अपनी ऑर्बिट बदलने का निर्देश दिया।

 Chandrayaan-3 propulsion module
 

'प्रोपल्शन मॉड्यूल' चांद के चारों तरफ आगे बढ़ा, उसने अपनी कक्षा 150x5112 km कर ली। पहले वह 100 km वाली ऑर्बिट में चांद के चारों तरफ एक चक्कर 2.1 घंटे में लगा रहा था। फिर यह 7.2 घंटे में लगाने लगा। इसके बाद ISRO वैज्ञानिकों ने PM में मौजूद फ्यूल की जांच की, इसके बाद 13 अक्टूबर को दूसरा ऑर्बिट बदलकर 1.8 लाख x 3.8 लाख किलोमीटर किया गया, इसे ट्रांस-अर्थइंजेक्शन (TEI) मैन्यूवर कहा जाता है। इसके बाद 22 नवंबर को इसके ऑर्बिट में ISRO द्वारा सुधार किया गया और इसकी पेरिजी 1.15 लाख किलोमीटर की गई जबकि एपोजी 3.8 लाख किलोमीटर ही है। फिलहाल अब वह ऐसी सुरक्षित जगह से धरती पर नजर रख रहा है, जहां उसे किसी अन्य ग्रह, सैटेलाइट, उल्कापिंड या मेटियोर से खतरा नहीं है। अब प्लान के मुताबिक SHAPE पेलोड को धरती की तरफ घुमाया गया है। ISRO के मुताबिक अब इसके अंदर लगे SHAPE पेलोड के जरिए धरती की स्टडी की जाएगी।

 
 
 
 
कब कितना खर्च हुआ ईधन ?
 

INDIA TODAY की एक रिपोर्ट्स के मुताबिक चंद्रयान-3 का प्रोपल्शन मॉड्यूल परमाणु तकनीक यानि (Nuclear Technology) से ऊर्जा हासिल कर रहा है। रिपोर्ट्स में बताया गया है कि कुछ दिन पहले एटॉमिक एनर्जी कमीशन के चेयरमैन अजित कुमार मोहंती ने इस बात की पुष्टि की थी। उन्होंने बताया कि प्रोपल्शन मॉड्यूल में 2 'रेडियो आइसोटोप हीटिंग यूनिट्स' (Radioisotopes Heating Units - RHU) लगाए गए हैं। जो एक वॉट की ऊर्जा पैदा कर रहा है। इससे यान को चलते रहने के लिए जरूरी तापमान मिल रहा है। ISRO के मुताबिक जब चंद्रयान-3 की लॉन्चिंग हुई थी.तब प्रोपल्शन मॉड्यूल में 1696.4 kg ईधन था। इसके बाद प्रोपल्शन मॉड्यूल के सहारे ही पृथ्वी के चारों तरफ 5 बार ऑर्बिट बदले गए। 

 
ऑर्बिट करेक्शन को मिलाकर कुल 6 बार इंजन ऑन किया गया। इसके बाद चंद्रयान-3 चांद के ट्रांस-लूनर ट्रैजेक्टरी में पहुंचा। फिर चंद्रमा के चारों तरफ 6 बार प्रोपल्शन मॉड्यूल ऑन हुआ। पृथ्वी के चारों तरफ 6 बार प्रोपल्शन मॉड्यूल के थ्रस्टर्स को ऑन किया गया। तब 793 kg फ्यूल खर्च हुआ। चांद के चारों तरफ 6 बार ऑर्बिट घटाने के लिए थ्रस्टर्स ऑन किए गए तब 753 kg फ्यूल खर्च हुआ। यानि इस बीच कुल मिलाकर 1546 kg फ्यूल की खपत हुई। बहरहाल इसके बावजूद भी अभी प्रोपल्शन मॉड्यूल में 150 kg फ्यूल बचा हुआ है। जोकि सिर्फ 3 से 6 महीने ही नहीं बल्कि कई सालों तक काम कर सकता है।