Battale Of Longewala, 1971 ; जब महज 120 भारतीय सैनिकों ने घातक टैंकों और हथियारों से लैस 2000 पाकिस्तानी सैनिकों को घुटने टेकने पर कर दिया था मजबूर

07 Dec 2023 11:19:00

Story of 1971 war battale of longewala
 
 
भारत पर हमेशा से अपनी नापाक निगाहें रखने वाले पाकिस्तान के साथ वैसे तो कई युद्ध हुए जिसमें भारतीय शूरवीरों ने अपने शौर्य और पराक्रम का परिचय देते हुए पाकिस्तान को घुटने टेकने पर मजबूर किया। लेकिन इनमें 1971 का लोंगेवाला युद्ध बेहद महत्वपूर्ण माना जाता रहा है। भारत-पाकिस्तान के बीच 1971 में राजस्थान के जैसलमेर में लोंगेवाला पोस्ट पर हुए युद्ध को भारत ने अपने कुशल नेतृत्व और बहादुरी के साथ साथ एक मजबूत और अटल हौसले से जीता था। रेगिस्तान में लड़े गए इस युद्ध का जिक्र सदियों तक होता रहेगा और युद्ध में बहादुरी दिखाने वाले हमारे शूरवीरों की कहानियां हमें सदैव प्रेरित करती रहेंगी।   
 
 
Battale Of Longewala 1971 : लोंगेवाला युद्ध की कहानी 
 
 
कहानी शुरू होती 4 दिसंबर 1971 से, राजस्थान के जैसलमेर में भारत-पाकिस्तान सीमा 'लोंगेवाला पोस्ट' पर सीमा सुरक्षा की जिम्मेदारी भारतीय सेना की पंजाब रेजिमेंट निभा रही थी। पंजाब रेजिमेंट की 'A' कंपनी अपने महज 120 जवानों के साथ तैनात थी। इस बटालियन की कमांड संभाल रहे थे मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी। 4 दिसंबर 1971 रात करीब 9 बजे मेजर चांदपुरी को अपने गश्ती दल से सूचना मिली कि पाकिस्तान की एक बड़ी सेना लोंगेवाला चौकी की तरफ तेजी से बढ़ रही है। हालाँकि उन दिनों राजस्थान के लोंगेवाला पोस्ट पर ज्यादा जवान तैनात नहीं थे। वहां जवानों की चौकसी तो होती थी लेकिन युद्ध के स्तर पर अतिरिक्त तैयारियां नहीं थीं। किसी को अंदेशा भी नहीं था कि पाकिस्तान कभी उस रास्ते से भी भारत में घुसने की कोशिश कर सकता है। लेकिन पाकिस्तान ने भारत को इस मोर्चे पर कमजोर समझ वो गलती कर दी जिसका भुगतान उसे बुरी तरह से भुगतना पड़ा। भारत को कमजोर समझ पाकिस्तान ने  पूरी योजना के तहत लोंगेवाला पोस्ट पर चढ़ाई शुरू कर दी। मेजर चांदपुरी को जब पाकिस्तान के इस कदम की जानकारी मिली तो उन्होंने तुरंत अपने कमांडिंग ऑफीसर को संदेश भेज मदद मांगी।
 
 
Battale of Longewala 1971 
 
लोंगेवाला पोस्ट पर भारतीय सेना के 12वीं इंफ्रेंट्री डिविजन की 23 पंजाब कंपनी-A के मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी के नेतृत्व में महज 120 जवान 2 मीडियम मशीन गन, 81 मिमी के दो मार्टार, 4 रॉकेट लॉन्चर्स, 2 आरसीएल गन के साथ तैनात थे। जबकि वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तानी सेना  40-45 टैंक, एक फील्ड रेजिमेंट और 2 आर्टिलरी बैटरी समेत कुल 2000 से ज्यादा सैनिकों के साथ लोंगेवाला पोस्ट की  तरफ बढ रही थी।  CO ने स्पष्ट कह दिया सुबह होने से पहले कोई मदद भेजना संभव नहीं है। क्योंकि उस दौर में हमारी एयर फाॅर्स के लड़ाकू विमानों में रात में लड़ने या दुश्मनों पर हमला करने की क्षमता नहीं थी।लोंगेवाला में तैनात उस टुकड़ी के पास फौजी ट्रक या गाड़ियाँ तक न थीं इसलिए मेजर चांदपुरी को आदेश मिला कि पोस्ट छोड़ के पैदल ही रामगढ़ की ओर कूच करें।.मेजर के पास सिर्फ 2 एंटी टैंक गन्स थीं , कुछ मोर्टार और शेष राइफल्स. जबकि सामने दुश्मन के पास 45 शरमन टैंक्स और 500 से ज़्यादा बख्तरबंद गाड़ियाँ और 2000 से ज़्यादा सैनिक। लोंगेवाला चौकी पे एक पूरी आर्मड ब्रिगेड ने हमला किया था और उनका इरादा लोंगेवाला से आगे बढ़ के रामगढ़ और फिर जैसलमेर तक कब्जा करने का था। 
 
 
Battale of Longewala 1971
 
 
पाकिस्तान से हर मोर्चे पर मुकाबला करने का फैसला 
 
 
कमांडिंग अफसर द्वारा मेजर चांदपुरी को मिले पीछे हटने का निर्देश उन्हें मंजूर नहीं था। अंततः मेजर चांदपुरी ने अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए अपने 120 सैनिकों को एकत्रित किया और उनमें जोश भरने का काम किया। इसके अलावा उन्होंने अपने साथियों के समक्ष प्रस्ताव भी रखा कि जो भी इस युद्ध से दूर होना चाहे वो हो सकता है। लेकिन उनके साथी भी कहाँ पीछे हटने वाले थे। सभी ने एक सुर में भारत माता की जय के नारे लगाए और पाकिस्तान को एक बार फिर युद्ध के मैदान में धूल चटाने के लिए तैयार हो गए। मिले आदेश को मेजर चांदपुरी ने अपने सैनिकों का उत्साह बढ़ाया और निर्णय लिया कि हम अपनी पोस्ट छोड़ेंगे नही , बल्कि लड़ेंगे।  पाकिस्तान आगे बढ़ा आ रहा था और इधर सब एकदम शांत था। पाकिस्तानी सेना अभी पोस्ट से कोसों दूर थी तब तक मेजर चाँदपूरी ने समझदारी दिखाते हुए दुश्मनों को विचलित करने का प्लान बनाया। 
 
 
Battale of longewala 1971
 
 
मेजर चांदपुरी की टुकड़ी के पास 3 से 4 लैंड माइंस थे। लिहाजा मेजर चांदपुरी ने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि वे लैंड माइंस को रेत में लगा दें,लेकिन माइंस इतनी नहीं थी जिससे पाकिस्तान के सभी टैंक ध्वस्त किए जा सके। लिहाजा मेजर चांदपुरी ने आदेश दिया कि माइंस के साथ टिफिन बॉक्स में ईट रखकर रास्ते में बिछा दें। प्लान के तहत जब तक पाकिस्तानी सेना का टैंक लोंगेवाला पोस्ट के करीब पहुँचता तब तक रात के अँधेरे में सैनिकों ने रेत में माइंस और कुछ टिफिन बॉक्स बिछा दिए। इसके अलावा 120 सैनिकों को कई हिस्सों में बांटकर अलग अलग जगहों पर तैनात कर दिया गया, जिससे कि दुश्मनों का ध्यान भंग किया जा सके और उन्हें देर तक उलझाये रखा जा सके। 5-6  दिसंबर की रात पाकिस्तानी सेना लोंगेवाला पोस्ट के करीब पहुंची। इधर भारतीय सैनिकों को आदेश था कि वो तब तक आक्रमण ना करें जब तक दुश्मन उनकी रेंज में ना आ जाएँ।   
 
 
Longewala 1971 war story
 
 
मेजर साब ने तब तक इंतज़ार किया जब तक दुश्मन एकदम नज़दीक नही आ गया। यानि सिर्फ 100 मीटर दूर और फिर तभी भारत की एंटी टैंक गन्स ने अपना कमाल दिखाया और एक एक कर पाकिस्तानी सेना के 4 टैंक द्वस्त हो गए। मेजर चांदपुरी की जो प्लानिंग थी उसने अपना काम कर दिया था। टैंक्स के ध्वस्त होते ही पाकिस्तानी फ़ौज ठिठक गई। हमला इतना अचानक और इतना तीव्र हुआ कि पाकिस्तानी हतप्रभ हो गए। तभी उनका सामना A कंपनी की कंटीली तारो की फेंसिंग से हुआ। उनको लगा पूरे इलाके में माइंस बिछी हैं और दुश्मन वहीं रुक गया। इधर चांदपुरी की एंटी टैंक गन्स ने 2 और पाकिस्तानी टैंक को ध्वस्त कर दिए तो उनपे लदे डीज़ल के बैरल धूं धूं कर जलने लगे। पाकिस्तानियों ने यह सोचकर कि राह में माइंस बिछे हैं उन्हें निकालने के लिए इंजिनियर बुलाये और माइंस निकालने का आदेश दिया। पाकिस्तानी सेना के इंजीनियरों को आने और रेत में बिछाए गए टिफिन जिसे पाकिस्तानी माइंस समझ रहे थे उसमें काफी वक्त लगा। तब तक उंचाई पर मौजूद भारतीय सेना ने एक कर कई पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। 
 
 Battale of Longewala story 1971
 
वायुसेना का स्ट्राइक
 
 
सिर्फ दो घंटे में हमारे सैनिकों ने 12 Tank मार गिराए थे। लोंगेवाला चौकी को सबसे बड़ा लाभ ये था कि वो एक ऊंचे टीले पे थी और पाकिस्तानी सेना नीचे थी जिसपे ऊपर से आसानी से निशाना लगाया जा सकता था। 120 सैनिकों ने पूरे 6 घंटा पाकिस्तान को रोके रखा। तब तक 7 दिसंबर को सुबह की पहली किरण के इंतज़ार में बैठी भारतीय वायु सेना का वक्त आया। सुबह की पहली किरण के साथ ही एयर फाॅर्स ने पाकिस्तानी सैनिकों पर जोरदार हमला किया और 22 टैंक्स और 100 से ज़्यादा बख़्तरबंद गाड़ियाँ उड़ा दी। सभी गाड़ियों पे डीज़ल लदा था क्योंकि उनका इरादा तो जैसलमेर तक चढ़ने का था। पूरी युद्ध भूमि में 100 से ज़्यादा चिताएं जल रही थीं। भारतीय सैनिकों की शौर्य और पराक्रम देख पाकिस्तानी सैनिक अपनी 500 से ज़्यादा बख्तरबंद गाड़ियाँ छोड़ के पैदल ही अपनी जान बचाकर भागने को मजबूर हो गए। 
 
 
Battale of longewala story
 
 
क्यों है लोंगोवाल की लड़ाई अनोखी ?
 
 
दुनिया भर के सैन्य इतिहास में लौंगेवाला का युद्ध इस मामले में अनोखा माना जाता है कि सिर्फ 120 सैनिकों ने सिर्फ 2 M40 एंटी टैंक गन्स, चंद मोर्टार और MMG गन्स के सहारे एक पूरी आर्मर्ड ब्रिगेड को रात भर न सिर्फ रोके रखा बल्कि सैंकड़ों दुश्मनों को मौत के घाट उतार दिया। युद्ध के बाद पाकिस्तान में बाकायदे एक जांच कमीशन बैठा जिसने पाकिस्तान के 18 डिविजन के कमांडर मेजर जनरल मुस्तफा को क्रिमिनल निगलिजेंस का दोषी पाया और उसको नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया। वहीं इधर दूसरी तरफ युद्ध में निर्णायक भूमिका निभाने वाले मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी को दूसरे सबसे बड़े सम्मान महावीर चक्र से सम्मानित किया गया और वो ब्रिगेडियर पद पर पद्दोनत किया गया। जांच कमीशन ने पाया कि पाकिस्तानी सेना ने बिना किसी योजना के ही हमला कर दिया। उन्हें न रास्ते का ज्ञान था और न टेरेन का, ज़्यादातर टैंक और गाड़ियाँ इसलिए शिकार हुए कि वो रेत में फँस गए थे। पाकिस्तानी जनरल को ये आभास ही न था कि जब भारतीय एयर फाॅर्स मारेगी तो कहां छिपेंगे ?
 
 
Story of 1971 war battale of longewala
 
 
उन्होंने एक अनजान इलाके में रात में हमला करने की गलती की। इसके विपरीत मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी को पता था कि उनकी टुकड़ी एक ऐसे टीले पे तैनात है जिसका डिफेंस बहुत तगड़ा है।  एक तरफ जहां पाकिस्तानी सैन्य लीडरशिप बुरी तरह फेल हुई वहीं मेजर चांदपुरी ने शानदार ज़बरदस्त लीडरशिप का परिचय देते हुए इतिहास में अपना नाम दर्ज किया। युद्ध खत्म होने के 3 हफ्ते के भीतर दुनिया भर से सैन्य अधिकारी, अफसर और जनरल लौंगेवाला युद्ध का अध्ययन करने आने लगे। पाकिस्तान ने क्या क्या गलतियां की और भारतीय सेना ने क्या पराक्रम दिखाया, ये युद्ध दुनिया भर की मिलिट्री एकेडेमी में पढ़ाया जाता है।
 
 
Battale of longewala
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
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