Indo-Pakistan War,1971 : साल 1971 के नवंबर और दिसंबर का माह भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के इतिहास में काफी अहमयित रखता है। यह वही वर्ष था जब भारत ने पाकिस्तान (Pakistan) को वह जख्म दिया था, जिसे पाकिस्तान कभी भूले से भी नहीं भूल सकता। यह वही वर्ष था जब विश्व के नक़्शे पर बांग्लादेश (Bangladesh) के एक स्वतंत्र देश के रूप में उभरा। 1971 में इतिहास बदलने वाले भारत-पाकिस्तान युद्ध (India-Pakistan War 1971) की शुरुआत 3 दिसंबर, 1971 को हुई थी। 3 दिसंबर को जंग शुरू हुई और 16 दिसंबर 1971 को भारत ने 93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों को आत्मसमर्पण करा कर विश्व इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ दिया। इसी युद्ध के बाद पश्चिमी पाकिस्तान से पूर्वी पाकिस्तान अलग होकर एक नए राष्ट्र बांग्लादेश (Bangaladesh) के रूप में आस्तित्व में आया।
1971 युद्ध में भारतीय नौसेना की बहादुरी के किस्से
1971 में भारत पाकिस्तान के बीच शुरू हुआ युद्ध कई मोर्चो पर लड़ा गया था। लेकिन 1971 युद्ध का जब कभी भी जिक्र होता है तो हम सब के जहन में अक्सर 2 तस्वीरें उभर कर सामने आती हैं। पहली तस्वीर, भारतीय सीमा पर पाकिस्तानी सैनिकों की कब्रगाह बनाते भारतीय थल सेना (Indian Army) के जांबाजों की और दूसरी तस्वीर, पाकिस्तानी के घातक टैंकों व लड़ाकू विमानों को ध्वस्त करते भारतीय लड़ाकू विमानों (Indian Air Force Action) की। लेकिन इन दोनों तस्वीरों के साथ-साथ 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध की एक तीसरी तस्वीर भी है और वह तस्वीर है 'भारतीय नौसेना' (Indian Navy) की। इस युद्ध में भारतीय नौसेना ने जो कारनाम किया था उसे सदियों तक याद किया जाता रहेगा। 1971 के युद्ध में पाकिस्तान (Pakistani Army) की सेना को घुटने टेकने पर मजबूर करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका भारतीय नौसेना (Indian Navy) के जवानों और युद्ध पोतों ने भी निभाई थी। ऐसा पहली बार था जब नौसेना किसी युद्ध में सीधे तौर पर उतरी थी।
13 दिन चले इस युद्ध में पाकिस्तान का हाल :
1971 के भारत-पाक युद्ध में पाकिस्तानी नौसेना इस युद्ध के लिए खुद को तैयार करती, इससे पहले भारतीय नौसेना ने पाकिस्तानी नौसेना बेडे़ में तबाही मचानी शुरू कर दी थी। 13 दिन चले इस युद्ध में पाकिस्तान के 18 माल वाहक जहाज, 7 तोप नावों, 3 गश्तीदल वाहक नावों, 3 तटरक्षक गश्ती जहाज, 2 विध्वंशक युद्धपोत, 1 माइन स्वीपर, 1 पनडुब्बी (PNS गाजी) और आपूर्ति संचार पोत को जलमग्न कर दिया गया था। इतना ही नहीं, अनवर बख़्श, पास्नी एवं मधुमति नाम के 3 मर्चेंट और 10 छोटे जहाजों को भारतीय नौसेना ने अपने कब्जे में ले लिया था। साथ ही पाकिस्तान का पोर्ट सिटी कहे जाने वाला कराची शहर भी भारतीय नौसेना के आक्रमण से 7 दिनों तक आग की लव में धधकता रहा।
INS निपत, जिसने ऑपरेशन ट्राइडेंट और पायथन के दौरान कराची पर हमला किया था। (तस्वीर: भारतीय नौसेना)
‘ऑपरेशन त्रिशूल- Operation Trident'
भारतीय नौसेना ने 4/5 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान के कराची बंदरगाह से अपनी कार्रवाई की शुरूआत की थी। नौसेना के इस कार्रवाई को ‘ऑपरेशन त्रिशूल’ नाम दिया गया था। नौसेना प्रमुख एडमिरल एसएम नंदा के नेतृत्व में ऑपरेशन ट्राइडेंट का प्लान बनाया गया था। इस ऑपरेशन का नेतृत्व पश्चिमी मोर्चे पर भारतीय नौसेना की पश्चिमी नेवल कमान के वाइस एडमिरल सुरेंद्र नाथ कोहली ने किया था। इस ऑपरेशन के तहत, भारतीय नौसेना ने कराची बंदरगाह पर ओसो मिसाइल नावों से हमला किया था। इस हमले में भारतीय नौसेना ने पाकिस्तान के घातक युद्धपोत PNS खायबर, PNS मुहाफिज और माइन स्वीप को जलमग्न कर दिया था। इस हमले में पाकिस्तानी नौसेना का PNS शाहजहां भी बुरी तरह क्षतिग्रस्त किया गया था। इस ऑपरेशन की सफलता के लिए ही हर वर्ष भारतीय नौसेना 4 दिसंबर को 'नौसेना दिवस' Indian Navy Day मनाती है।
‘ऑपरेशन पायथन’
‘ऑपरेशन त्रिशूल’ के ठीक बाद नेवी ने अपने अगले मिशन को नाम दिया था ‘ऑपरेशन पायथन’। 'ऑपरेशन पायथन' भी ऑपरेशन ट्राइडेंट का ही अनुवर्ती था। 1971 में हुए युद्ध के दौरान भारतीय नौसेना ने 'ऑपरेशन त्रिशूल' के तहत पाकिस्तान के व्यापारिक पोतों के साथ ईधन भंडारण को भी नष्ट कर दिया था। भारतीय नौसेना के इस ऑपरेशन त्रिशूल ने न केवल पाकिस्तान की सैन्य क्षमता को, बल्कि आर्थिक तौर पर एक बड़ी चोट दी थी। लिहाजा कराची बंदरगाह पर 'ऑपरेशन ट्राइडेंट' के पहले हमले के बाद, पाकिस्तान ने अपने तट की हवाई निगरानी तेज कर दी थी। क्योंकि उसे एहसास हो चुका था कि भारतीय नौसेना अगला हमला भी कर सकती है। लिहाजा अब पाकिस्तानी युद्धपोतों ने मर्चेंट शिपिंग के साथ मिलकर भारतीय नौसेना को मात देने की कोशिश की। पाकिस्तान के इन चालों का मुकाबला करने के लिए, 8/9 दिसंबर 1971 की रात को भारतीय नौसेना ने अपना 'ऑपरेशन पायथन' शुरू किया था।
8/9 दिसंबर 1971 की रात भारतीय नौसेना ने स्टाइक्स प्रक्षेपास्त्र से हमला किया। 'ऑपरेशन पायथन' को एक छोटी मिसाइल नाव आईएनएस विनाश द्वारा अंजाम दिया गया। कराची बंदरगाह पर दूसरे हमले के लिए एक अन्य मिसाइल नाव INS विजेता को भी इसके साथ जाना था। हालाँकि, INS विजेता में तकनीकी खराबी आने के कारण उसे रुकना पड़ा। यहां तक कि कराची की ओर जाते समय रात करीब 8 बजे आईएनएस विनाश में भी बिजली गुल हो गई। इसके रडार ने काम करना बंद कर दिया और यह अपने निर्धारित रास्ते से 7 से 8 मील दूर चला गया। जिसका पता कमांडर को रात 11 बजे तब चला जब बिजली बहाल हुई।
भारत के हमले के बाद कराची बंदरगाह का दृश्य
भारतीय नौसैनिक बेड़े को कराची से 250 किमी की दूरी पर रोका गया और शाम होने तक 150 किमी और पास जाने का आदेश दिया गया। हमला करने के बाद सुबह होने से पहले तेजी से बेड़े को 150 किमी वापस आना था, ताकि वह पाकिस्तानी हमले व उनके रडार की पहुंच से दूर हो जाएं। रात 9 बजे के करीब भारतीय नौसेना ने कराची की तरफ बढ़ना शुरू किया। रात 10:30 पर कराची बंदरगाह पर पहली मिसाइल दागी गई। 90 मिनट के भीतर पाकिस्तान के 4 नेवी शिप डूब गए। 2 बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए और कराची बंदरगाह पूरी तरह से आग की लपटों से घिर गया। कराची तेल डिपो में लगी आग की लपटों को 60 किलोमीटर की दूरी से भी देखा जा सकता था। इस हमले में बड़े ईंधन टैंक, तीन पाकिस्तानी व्यापारी बेड़े और कराची बंदरगाह में खड़े विदेशी जहाज को भी क्षतिग्रस्त कर दिया गया था। इस पूरे ऑपरेशन के दौरान भारत को कोई नुकसान नहीं हुआ। कराची के तेल डिपो में लगी आग को स7 दिनों और 7 रातों तक नहीं बुझाया जा सका। एक अनुमान के मुताबिक भारत की इस कार्रवाई से पाकिस्तान को उस वक्त करीब 3 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ था।
हमले के बाद आग की लपटों में घिरा कराची बंदरगाह
पाकिस्तान का टोही विमान PNS ज़ुल्फ़िकार
भारतीय नौसेना की कार्रवाई के बाद, पाकिस्तान ने हमले के लिए पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइंस के टोही युद्धक विमान को रवाना किया। इस टोही युद्धक विमान ने पाकिस्तान के अपने ही PNS ज़ुल्फ़िकार पर हमला कर दिया। इस हमले में पाकिस्तान का PNS ज़ुल्फ़िकार बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया था। साथ ही, इस युद्धपोत में सवार पाकिस्तानी नौसेना के अधिकारी एवं सैकड़ों कर्मचारी गंभीर रूप से हताहत हो गए थे। यानि कुल मिलाकर युद्ध के दौरान पाकिस्तान को लाखों करोड़ रूपये और जनहानि का भी सामना करना पड़ा था। भारतीय नौसेना का यह ऑपरेशन ऐसा ऑपरेशन था जिसे शायद पाकिस्तानी कभी नहीं भूल सकता।