19 मई 1999 कारगिल युद्ध के महानायक सूबेदार लोबजांग छोटक की शौर्यगाथा ; जिन्होंने प्वाइंट 5283 को पाकिस्तानी सैनिकों से मुक्त कराने में निभाई थी अहम भूमिका
    19-मई-2023

Kargil War: Vir Chakra awardee Subedar Lobzang Chhotak story

 
 
Kargil War 1999 : जैसा कि हम जानते हैं कि कारगिल युद्ध की शुरुआत भारत पर हर वक्त नापाक नजर रखने वाले पाकिस्तान की तरफ से की गई थी। 3 मई वर्ष 1999 को पाकिस्तानी सेना ने लद्दाख (जो अगस्त 2019 से पहले तक जम्मू कश्मीर का हिस्सा हुआ करता था) के कारगिल में स्थित दुर्गम ऊंची पहाड़ियों के ऊपर पाकिस्तान ने अपने 5000 सैनिकों के साथ घुसपैठ कर सामरिक रूप से महत्वपूर्ण स्थानों पर कब्जा जमा लिया। इस बात की खबर जब भारतीय सेना को मिली तो स्थिति का आंकलन और सच्चाई का पता लगाने के लिए सेना की कुछ टुकड़ियों को पेट्रोलिंग के लिए भेजा गया। आखिरकार यह स्पष्ट हुआ कि पाकिस्तान की सेना ने घुसपैठ कर भारतीय सीमा में दाखिल हो गई है और कई महत्वपूर्ण चौकियों पर कब्जा कर लिया है। 
 
 
पूरी घटनाक्रम की जब जानकारी भारत सरकार को मिली तो भारत सरकार ने अपने शूरवीर सिपाहियों के साथ मिलकर ''ऑपरेशन विजय” चलाया और पाकिस्तानी सैनिकों को धूल चटा कर 26 जुलाई 1999 को कारगिल से मार भगाया और युद्ध में जीत हासिल की।  तब से लेकर आज तक इस दिन को पूरे भारतवर्ष में ''कारगिल विजय दिवस'' के रूप में मनाया जाता है। बताते चलें कि यह युद्ध करीब 18000 फीट की ऊंचाई पर कारगिल में लड़ा गया था। यह युद्ध लगभग 2 महीने तक चला था जिसमें भारतीय सेना के योद्धाओं ने बड़े हीं साहस और पराक्रम के साथ पाकिस्तानी सैनिकों को धूल चटाने का काम किया था। हालाँकि इस युद्ध में माँ भारती के सैकड़ों वीर सपूतों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी। उन्हीं वीर जवानों में से एक थे वीर चक्र से सम्मानित सूबेदार लोबजंग छोटक। 
 
 
सूबेदार लोबजांग छोटक की शौर्य गाथा 
 
 
सूबेदार लोबजांग छोटक सेना की इन्फैंट्री, यूनिट 3 लद्दाख स्काउट्स का हिस्सा थे जिनका जन्म 29 सितंबर 1958 को हुआ था। इंडस विंग लद्दाख स्काउट्स के सूबेदार लोबजांग छोटक को 'ऑपरेशन थंडरबोल्ट' में नियंत्रण रेखा के साथ स्थित प्वाइंट 5283 को पाकिस्तानी सैनिकों के कब्जे से मुक्त कराने वाली विशेष पेट्रोलिंग दल की जिम्मेदारी मिली थी। दुर्गम ऊँची पहाड़ियों को पार करते हुए सूबेदार लोबजांग अपनी टुकड़ी के साथ मिशन के ओर बढ़ रहे थे। 19 मई 1999 को करीब 03:30 बजे, सूबेदार लोबज़ंग छोटक ने पॉइंट 5283 के दक्षिण पूर्व में रिजलाइन के पास एक पाकिस्तानी बंकर देखा। दुश्मनों का बंकर देखते ही सूबेदार लोबज़ंग छोटक ने सिपाही त्सेरिंग दोरजे के साथ व्यक्तिगत सुरक्षा की परवाह ना करते हुए अपने हथियार से दुश्मनों पर फायरिंग शुरू कर दी।
 
 
 
 
 
पाकिस्तानी सैनिकों को घुटने टेंकने पर किया मजबूर  
 
 
अचानक हुए हमले से पाकिस्तानी सैनिक पूरी तरह से बौखला गए। आनन फानन में उन्होंने भी फायरिंग शुरू कर दी। दोनों तरफ से भीषण गोलीबारी शुरू हो गई। इस हमले में दुश्मन सेना के कई जवान बुरी तरह हताहत हुए। लेकिन इसी बीच दुश्मन की गोलियों से सूबेदार लोबजंग छोटक के माथे और चेहरे में चोट लग गई। बुरी तरह घायल होने के बावजूद भी उन्होंने अपने हथियार से फायरिंग जारी रखा और दुश्मनों को घुटने टेंकने पर मजबूर कर दिया। गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद जिस तरह से सूबेदार लोबजंग छोटक ने दुश्मनों पर फायरिंग जारी रखी उसकी मदद से सूबेदार लोबजंग छोटक की गश्ती दल के अन्य कर्मियों को एक फ्लैंक पर जाने में मदद मिली।
 
 
भारत भूमि की रक्षा के लिए किया सर्वस्व न्योछावर  
 
 
हालाँकि दुर्भाग्यवस सूबेदार लोबजंग छोटक ज्यादा समय तक दर्द ना सह सके, दुश्मनों से लोहा लेते हुए और भारत भूमि की रक्षा करते हुए युद्ध के मैदान में सूबेदार लोबजांग छोटक वीरगति को प्राप्त हो गए। अपनी बटालियन से मिले निर्देशों को उन्होंने बखूबी निभाया और अंत में देश के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर गए। इस कार्रवाई में सूबेदार लोबजंग छोटक ने पाकिस्तानी सेना के समक्ष सर्वोच्च साहस, वीरता और मानसिक शक्ति का परिचय दिया और देश की सीमाओं की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। युद्ध के मैदान में सर्वस्व न्योछावर करने के लिए उन्हें मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया गया। यह देश सूबेदार लोबजंग छोटक के अनुकरणीय साहस और देश के लिए दिए गए उनके बलिदान को सदैव याद रखेगा। देश के ऐसे वीर सपूत को हमारा नमन