पाकिस्तान में 2 वर्षों बाद हिंगलाज माता महोत्सव का आयोजन ; भारत से भी हिंदू श्रद्धालु हुए शामिल
पाकिस्तान के अशांत बलूचिस्तान प्रांत में सदियों पुराना वार्षिक हिंगलाज माता महोत्सव जोश और उत्साह के साथ सोमवार को संपन्न हुआ। सदियों पुराने इस धार्मिक उत्सव में पाकिस्तान और भारत के साथ-साथ अन्य देशों के हिंदू श्रद्धालुओं ने हिस्सा लिया। बलूचिस्तान प्रांत के लासबेला जिले के कुंड मालिर इलाके में स्थित प्राचीन हिंगलाज माता मंदिर हिंदू सभ्यता के सबसे बड़े तीर्थ स्थलों में से एक माना जाता है। यह दुनिया भर के 5 प्राचीन हिंदू मंदिरों में से एक है। देवी को हिंगलाज देवी या हिंगुला देवी भी कहते हैं। इसके अलावा इस मन्दिर को 'नानी माता मन्दिर' के नाम से भी जाना जाता है। पिछले तीन दशकों में इस जगह ने काफी लोकप्रियता पाई है और यह पाकिस्तान के कई हिंदू समुदायों के बीच आस्था का केन्द्र बन गया है।
51 शक्तिपीठों में से एक
मान्यता के अनुसार हिंदू देवी सती को समर्पित हिंगलाज मंदिर, 51 शक्तिपीठों में से एक है। पाकिस्तान के हंगुल नदी के तट पर एक गुफा में बने हंगलाज माता के मंदिर की हिंदू धर्म में विशेष मान्यता है। हिंगलाज माता मंदिर दुनिया भर के 5 प्राचीन हिंदू मंदिरों में से एक है। माता उत्सव को लेकर बलूचिस्तान के सीनेटर दानेश कुमार ने कहा कि कोरोना महामारी के कारण दो वर्षों तक यहां हिंगलाज माता उत्सव नहीं हो पाया था। लेकिन अब जब स्थिति सामान्य हो गई तो इस महोत्सव का आयोजन हुआ है जिसमें हिंदू तीर्थयात्रियों की एक बड़ी भीड़ देखने को मिली।
पहले से बेहतर सुविधा
सीनेटर दानेश कुमार ने मीडिया से बातचीत में कहा कि भारत से सैकड़ों हिंदू इस धार्मिक महोत्सव में शामिल होने आते हैं। इसके अलावा विदेशों से भी यहां तीर्थयात्री पहुँचते हैं। बेहतर सुविधा ना होने के कारण पहले, भक्तों के लिए मंदिर तक पहुंचना बेहद मुश्किल हुआ करता था। लेकिन अब ऐतिहासिक मंदिर मकरान तटीय राजमार्ग के माध्यम से शहरी पाकिस्तान से जुड़े होने के बाद अब आसानी से सुलभ हो गया है। पहले, भक्तों के लिए मंदिर तक पहुंचना बहुत मुश्किल हुआ करता था क्योंकि यह किरथर पर्वत श्रृंखला की तलहटी में है। दुर्गम पहाड़ी से होते हुए भक्त मंदिर तक पहुँचते थे।
लोककथा और महत्ता
मान्यता के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि सती के वियोग मे क्षुब्ध भगवान शिव जब माँ सती के पार्थिव देह को लेकर तीनों लोकों का भ्रमण करने लगें तो, भगवान विष्णु ने सती के शरीर को 51 खंडों मे विभक्त कर दिया। जहाँ जहाँ सती के अंग-प्रत्यंग गिरे उस स्थान को शक्तिपीठ कहा गया। जैसे कि जिस स्थान पर माँ का केश गिरा उसे महाकाली, नैन गिरने से नैना देवी, कुरूक्षेत्र मे गुल्फ गिरने से भद्रकाली, सहारनपुर के पास शिवालिक पर्वत पर शीश गिरने से शाकम्भरी आदि शक्तिपीठ बन गए। ठीक इसी प्रकार सती माता के शव को भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र से काटे जाने पर यहां उनका ब्रह्मरंध्र यानि (सिर) गिरा था। जिसे हिंगलाज माता के रूप में जाना गया।
हिंगलाज माता को एक शक्तिशाली देवी के रूप में जाना जाता है, जो अपने सभी भक्तों की मनोकामनाओं को पूर्ण करती है। जबकि हिंगलाज उनका मुख्य मंदिर है, मंदिरों के पड़ोसी भारतीय राज्य गुजरात और राजस्थान में भी उनके लिए समर्पित मंदिर बने हुए हैं। मंदिर को विशेष रूप से संस्कृत में हिंदू शास्त्रों में हिंगुला, हिंगलाजा, हिंगलाजा और हिंगुलता के नाम से जाना जाता है। कहते हैं कि हिंगलाज माता के इस मंदिर में मनोरथ सिद्धि के लिए गुरु गोरखनाथ, गुरु नानक देव ओर दादा मखान जैसे आध्यात्मिक संत भी यहां आ चुके हैं। यहाँ के स्थानीय मुस्लिम भी हिंगलाज माता पर अपनी आस्था रखते हैं और मंदिर को सुरक्षा प्रदान करते हैं।