कारगिल युद्ध को बीते 24 वर्ष हो गए। युद्ध के दौरान भारतीय सेना द्वारा दिखाए गए शौर्य और पराक्रम की गाथाएं आज भी हर भारतीय के दिल में जिंदा हैं। 3 मई 1999 देश की सीमा में पाकिस्तानी सेना ने घुसपैठ करना शुरू कर दिया था। हालाँकि शुरू में तो भारतीय सेना पाकिस्तानियों के इस घुसपैठ से पूरी तरह अंजान थी। एक यार्क भटक कर वंजू टॉप तक पहुंच गई थी और इस यार्क को खोजते हुए आए ताशी नामग्याल नाम के चरवाहे की नजर सरहद पार से आए घुसपैठियों के रूप में पाकिस्तानी सेना पर पड़ी। समय ना गंवाते हुए चरवाहे ने इस बात की जानकारी भारतीय सेना तक पहुँचाई और फिर शुरू हुआ कारगिल का महायुद्ध जिसमें भारतीय सेना के शूरवीरों ने पाकिस्तानी सैनिकों को धूल चटाने का काम किया।
दोनों सेनाओं के बीच संघर्ष
3 मई से 17 मई तक दोनों सेनाओं के बीच संघर्ष जारी रहा। अंततः भारतीय सेना के जांबाजों ने 18 मई 1999 को प्वाइंट 4295 और 4460 पर मौजूद सभी घुसपैठियों को मार गिराया और दोनों प्वाइंट को एक बार फिर अपने कब्जे में ले लिया। इस ऑपरेशन के बाद, घुसपैठियों के कब्जे से जो दस्तावेज मिले, वह भारतीय सेना को चौंकाने के लिए काफी थे। ये दस्तावेज इस बात के साक्ष्य थे कि मुठभेड़ में मारे गए ये आतंकवादी पाकिस्तान सेना-अर्धसैनिक बल के मुश्तकिल जवान थे, जिन्हें घुसपैठियों के भेष में सीमापार से भेजा गया था।
ऑपरेशन सफ़ेद सागर की शुरुआत
इस ऑपरेशन के बाद, भारतीय सेना को यह साफ हो गया कि पाकिस्तान एक छद्म युद्ध की तैयारी में जुटा हुआ है। पाकिस्तान के मंसूबों को भांपते हुए भारतीय सेना और भारतीय वायु सेना ने मिलकर एक योजना तैयार की। योजना के तहत, दोनों सेनाओं ने मिलकर दुश्मन के खिलाफ व्यापक अभियान शुरू करने का फैसला किया। दोनों सेनाओं के इस फैसले के बाबत केंद्र सरकार को अवगत कराया। कैबिनेट से अनुमति मिलते ही भारतीय वायुसेना ने 26 मई 1999 को ‘ऑपरेशन सफेद सागर’ की शुरूआत कर दी और दुश्मन को निशाना बनाना शुरू कर दिया।
ऑपरेशन सफ़ेद सागर के तहत भारतीय वायुसेना के जवानों ने पाकिस्तानी सैनिकों पर जमकर गोले बरसाए जिससे कई पाकिस्तानी सैनिकों की मौत हुई। इस ऑपरेशन की ख़ास बात यह थी कि ऑपरेशन को अंजाम देने वाले पायलट और इंजीनियर को महज़ एक सप्ताह की ट्रेनिंग मिली थी बावजूद इसके इन जवानों ने दुश्मनों के दांत खट्टे कर दिये। इस मिशन की ख़ास बात यह भी थी कि भारत ने पहली बार 32 हज़ार फीट की ऊँचाई पर वायु शक्ति का प्रयोग किया था।
उधर दूसरी तरफ़ भारतीय थल सेना द्वारा ऑपरेशन विजय की शुरुआत हुई और चुन चुन कर पाकिस्तानियों सैनिकों को मौत के घाट उतारते हुए उनके क़ब्ज़े से सभी प्वॉइंट को मुक्त कराये जाने लगा।
पाकिस्तानी सैनिकों के खिलाफ यह अभियान भारतीय सेना की 3 इन्फैंट्री डिवीजन द्वारा चलाया जा रहा था। जल्द ही, 3 इन्फैंट्री डिवीजन की मदद के लिए कश्मीर घाटी में आतंकवाद विरोधी अभियानों को अंजाम दे रही 8 माउंटेन डिवीजन को भी कारगिल सेक्टर में शामिल कर दिया गया। 3 इन्फैंट्री डिवीजन को बटालिक और काकसर क्षेत्रों में ऑपरेशन की जिम्मेदारी सौंपी गई। द्रास और मुश्कोह घाटी में दुश्मन के खिलाफ ऑपरेशन की जिम्मेदारी 8 माउंटेन डिवीजन को सौंपी गई। इसी के साथ, ऑपरेशन विजय में अतिरिक्त पैदल सेना बटालियन, आर्टिलरी रेजिमेंट और इंजीनियरों की इकाइयों को शामिल किया गया।
इसके बाद शुरू हुआ भारतीय सेना का विजय अभियान। इस अभियान में भारतीय सेना को दूसरी बड़ी सफलता 13 जून को तोलोलिंग और प्वाइंट 4590 पर दोबारा कब्जे के बाद मिली। इसके बाद, लगातार प्वाइंट 5410, प्वाइंट 4700, ब्लैक रॉक, थ्री पिंपल, प्वाइंट 5000, प्वाइंट 5287, टाइगर हिल, प्वाइंट 4875 और जूलू सुपर कॉप्लेक्टस पर कब्जा करती गई। 26 जुलाई तक भारतीय सेना ने अपने सभी भारतीय इलाकों को दुश्मन सेना से मुक्त करा लिया और इसी दिन आधिकारिक तौर पर कारगिल युद्ध का अंत हो गया।