#Remembering Our Heroes; हवलदार हंगपन दादा की शौर्यगाथा, जिन्होंने नौगाम में वीरता का परिचय देते हुए 4 आतंकियों को उतारा मौत के घाट
जम्मू कश्मीर के नौगाम सेक्टर में देश के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करते हुए और साहस की उत्कृष्ट पराकाष्ठा का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए हवलदार हंगपन दादा ने 4 आतंकवादियों को अकेले मौत के घाट उतार दिया था। हालाँकि इस मुठभेड़ के दौरान 26 मई, 2016 को हंगपन दादा दुश्मनों से लोहा लेते हुए वीर गति को प्राप्त हुए। आज उनकी पुण्यतिथि पर उनके उस शौर्यता को याद करते है।
संक्षिप्त परिचय
हवलदार हंगपन दादा का जन्म 2 अक्टूबर 1979 को अरुणाचल प्रदेश के तिरप जिले के बोरदुरिया गाँव में हुआ था। उनके साथी प्यार से उन्हें दादा कह के पुकारते थे। 28 अक्टूबर 1997 को हवलदार दादा भारतीय सेना की घातक टुकड़ी पैराशूट रेजिमेंट की तीसरी बटालियन में भर्ती हुए। 6 साल बाद, वह असम रेजिमेंटल सेंटर में सेवा करने के लिए चले गए और 24 जनवरी 2008 को असम रेजिमेंट की चौथी बटालियन में शामिल हो गए।
2016 में, हवलदार दादा ने जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद विरोधी अभियानों में लगे राष्ट्रीय राइफल्स की 35वीं बटालियन के साथ स्वेच्छा से सेवा की। हवलदार दादा एक उत्कृष्ट सैनिक थे और उन्हें उनके साथियों के साथ सेना के वरिष्ठ अधिकारी भी सम्मान से देखते थे।
नौगाम सेक्टर ऑपरेशन (जम्मू और कश्मीर): 26 मई 2016
मई, 2016 के दौरान हवलदार दादा की यूनिट, 35 राष्ट्रीय राइफल्स को जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा जिले के नौगाम सेक्टर में तैनात किया गया था। जब आतंकवादी सेना के स्टॉप से संपर्क तोड़ने में कामयाब रहे, तब हवलदार हंगपन दादा और उनकी टुकड़ी को भागे हुए आतंकवादियों का पीछा करने और उन्हें पकड़ने का काम सौंपा गया था। हंगपन दादा की टुकड़ी ने बेहद कम वक्त में LOC के समीप शमशाबाद में क़रीब 13 हज़ार फीट की दुर्गम ऊँचाई वाले बर्फीली पहाड़ी पर इतनी तेज़ी से आगे बढ़े कि उनकी इस कदम ने आतंकवादियों के भागने के मार्ग को अवरुद्ध कर दिया और उन्हें चौंका दिया।

इसके बाद अपने सेक्शन पर हुई भारी गोलाबारी में अपनी सुरक्षा की परवाह न करते हुए छिपे हुए आतंकवादियों से भीड़ गये। जिसके परिणामस्वरूप उनके साथियों की जान बच गई। उन्होंने अनुकरणीय साहस और सूझबूझ का परिचय दिया और 2 आतंकवादियों को नजदीक से मार गिराया। जवाबी फायरिंग में वह गंभीर रूप से घायल हो गए। दादा ने बाकी आतंकवादियों का पीछा किया। इस प्रक्रिया में, वह तीसरे आतंकवादी के साथ आमने-सामने आए, और उसे भी उन्होंने घायल अवस्था में होने के बावजूद उस आतंकी को मार गिराया। इस प्रकार, हवलदार हंगपन दादा ने अकेले ही ऑपरेशन में 3 आतंकवादियों को मार गिराया और उनकी कार्रवाई से चौथे आतंकवादी का भी सफाया हो गया।
हवलदार हंगपन दादा को इस वीरता, साहसी कार्रवाई और देश के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान देने के लिए 15 अगस्त 2016 को शांतिकाल के सर्वोच्च सैन्य अलंकरण पुरस्कार - "अशोक चक्र" से मरणोपरांत सम्मानित किया गया। अपने कर्तव्य और राष्ट्र के प्रति उनके कार्य और समर्पण ने उन्हें पुरस्कार का सच्चा हकदार बना दिया। राष्ट्र उनके बलिदान को सदैव याद करेगा।