#RememberingOurHeroes ; “अम्मा वीर चक्र ले आऊँगा” : 29 मई 1999 कारगिल युद्ध के महानायक मारियप्प्न सर्वनन की शौर्यगाथा
   29-मई-2023

Mariyappan Saravanan
 
1999 में कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय सेना के सैकड़ों जवानों ने अपने शौर्य, पराक्रम और उत्तम युद्ध कौशल का परिचय देते हुए देश की सुरक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया था। इसी कड़ी में नाम आता है भारतीय सेना के सबसे प्रतिष्ठित बिहार रेजिमेंट (Bihar Regiment) के वीर सैनिक शहीद मेजर मरियप्पन सरवनन (Major Mariappan Saravanan) का जिन्होंने भारतीय इतिहास के सुनहरे पन्नों पर ऐसा नाम दर्ज कराया जिसे सदियों सदियों तक याद किया जाता रहेगा।
 

संक्षिप्त परिचय
 
मेजर एम सरवनन का जन्म 10 अगस्त 1972 को तमिलनाडु के रामेश्वरम में हुआ था। मेजर मरियप्पन अपने परिवार में सबसे बड़े थे, उनसे छोटे 2 भाई और बहन थे। मेजर मरियप्पन के पिता जी भी सेना में लेफ्टिनेंट कर्नल थे, जिनका नाम कर्नल ए मरियप्पन था। वे सेना में डॉक्टर के पद पर थे। मेजर मरियप्प्न के पिता जी अपने बेटे को महज़ 5 साल की उम्र में सेना की ट्रेनिंग देने लगे थे जैसे- बंदूक पकड़ना, घुड़सवारी करना, निशानेबाजी आदि।
 
मेजर मरियप्पन मात्र 16 साल के थे जब उनके पिता का निधन हो गया। पिता के देहांत के बाद परिवार की सारी जिम्मेदारी मेजर मरियप्पन पर आ गई। उन्होंने 1994 में त्रिची के सेंट जोजेफ कॉलेज से ग्रेजूएशन किया। इसके बाद उन्होंने OTA , चेन्नई में दाखिला लिया। ट्रेनिंग पूरी होने के बाद उन्हें बिहार रेजिमेंट में नियुक्ति मिल गई। OTA से पास आउट होने के बाद, कारगिल जाने से पहले उन्हें तमुलपुर, कूच बिहार और भूटान में तैनात किया गया था। उन्हें 1996 में कप्तान और 1999 में मेजर के पद पर पदोन्नत किया गया था।
 

Mariyappan Saravanan 
 
कारगिल युद्ध में मेजर मरियप्पन की शौर्यगाथा
 
28-29 मई 1999 पाकिस्तान ने अपनी नापाक साज़िश को अंजाम देते हुए कारगिल की सामरिक रूप से महत्वपूर्ण चोटियों पर क़ब्ज़ा कर लिया था। भारतीय सेना पाकिस्तान को सबक़ सिखाने के लिए मोर्चे पर डटी थी। दूसरी तरफ़ भारतीय वायु सेना के विमान भी दुश्मनों पर गोले बारूद गिराकर कई बंकरों को ध्वस्त कर चुके थे।मेजर मरियप्पन को कारगिल युद्ध में बटालिक का नायक कहा जाता है।
 
पॉइंट 4268 को मुक़्त कराने की ज़िम्मेदारी
युद्ध के दौरान मेजर एम सरवनन की यूनिट को असम से जम्मू-कश्मीर ले जाया गया था। उन्होंने अपनी मां को एक पत्र में लिखा था कि “माँ मैं ऐसे ही एक मौके का इंतजार कर रहा था। मैं जब घर आऊंगा तो एक "वीर चक्र" लेकर लौटूँगा। ऑपरेशन विजय को 26 मई को लॉन्च किया गया था और उनकी यूनिट को बटालिक सेक्टर के पश्चिमी तरफ स्थित जुबार रिज में पॉइंट 4268 को पाकिस्तानी सैनिकों से मुक्त कराकर उसे पुनः अपने क़ब्ज़े में करने का काम सौंपा गया था। यह पॉइंट सियाचिन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे ऊंचा युद्धक्षेत्र है।
 
मेजर की टुकड़ी पेट्रोलिंग के दौरान करीब 14,229 फीट की ऊंचाई पर स्थित पॉइंट 4268 के समीप पहुँचने वाले थे। ऊँचाई पर मौजूद होने के कारण पाकिस्तानी सैनिकों को मेजर मरियप्प्न की टुकड़ी की आहट मिल गई। देखते ही दुश्मनों ने फायरिंग शुरू कर दी थी। कारगिल के सामरिक रूप से महत्वपूर्ण इलाकों पर कब्जा करने के बाद दुश्मन पहाड़ियों पर बम बरसाते थे। नतीजन हमारे जवानों ने भी तुरंत बैकफायर किया। सैन्य मुख्यालय से मदद लिए बिना बिहार रेजिमेंट के जांबाज मेजर मरियप्पन ने अपने कंधे पर 90 एमएम राकेट लॉन्चर उठा कर दुश्मनों के ठिकानों पर हमला बोला। इस जवाबी हमले में पाकिस्तान के कई सैनिक मौके पर ही ढेर हो गए थे।
 
कुछ आँकड़ों के मुताबिक़ मेजर सरवन ने अपने कार्रवाई में क़रीब 11 पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था। वे जब लड़ाई पर जा रहे थे उस वक्त न तो बड़े हथियार थे न कोई कवर देने वाला इसके बावजूद भी मेजर सरवन ने दुश्मन को लहु में मिला दिया था। हालाँकि इस दौरान मेजर मरियप्पन भी गोली लगने के कारण गंभीर रूप से घायल हो चुके थे। अंततः 29 मई को वे दुश्मनों से लोहा लेते हुए वे वीरगति को प्राप्त हो गये।
 

Mariyappan Saravanan 
 
बिहार रेजिमेंट ने मेजर सरवन की शहादत के बाद शपथ ली कि पाकिस्तानियों को बटालिक व समूचे कारगिल से खदेड़ना है, इसके बाद उनकी यूनिट ने “जय बजरंग बली” का उद्घोष करते हुए प्वाइंट 4058 पर चढ़ाई कर दी और कुछ दिनों के संघर्ष के बाद पाकिस्तानी सैनिकों से पॉइंट 4058 को मुक्त करा लिया। मेजर सरवनन के साथ, दो अन्य नायक गणेश प्रसाद और सिपाही प्रमोद कुमार के पार्थिव शव भी बर्फ में लिपटा हुआ बरामद हुआ था।
 
 
माँ को किया वादा पूरा किया
जब मेजर सरवन अपने मिशन के लिए जा रहे थे तो उनके कंमाडिंग ऑफिसर ने उन्हें कहा था कि ध्यान रखना और लौट कर आना है। इस पर मेजर सरवन मुस्कुराए और जवाब में बोले कि फिक्र न करें सर आपके चंगेज को कुछ नहीं होगा। मेजर सरवन का सेना में कोड नेम चंगेज था, वीर चंगेज तो वापस आया लेकिन तिरंगे में लिपटा हुआ। हालाँकि उन्होंने अपनी मां से किया हुआ वादा अवश्य पूरा किया और वो वादा था “वीर चक्र”। युद्ध भूमि में अपना सर्वस्व अर्पण करने के लिए मेजर मरियप्पन को मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया गया। देश के ऐसे महानायक को हमारा कोटि कोटि वंदन।