प्रजा परिषद् आन्दोलन ; सत्याग्रहियों के खिलाफ शेख अब्दुल्ला की दमनकारी नीति और कार्यकर्ताओं पर धारा 50 के तहत अत्याचार (भाग-4)

10 Jun 2023 13:21:26
 
Atrocities under section 50 on PP Activists
 
 
 
 (Praja Parishad Movement)
 
संपूर्ण राष्ट्र में 'एक विधान और एक निशान' को लागू करने के उद्देश्य से शुरू हुआ प्रजा परिषद् आन्दोलन 1947 से लेकर 1953 तक जम्मू-कश्मीर के लोकतंत्रीकरण और उसके संघीय संवैधानिक व्यवस्था में एकीकरण के लिए चलाया गया था। आंदोलन की शुरुआत जम्मू कश्मीर में शेख अब्दुल्ला द्वारा फैलाई गई अराजकता और अलगाववाद के खिलाफ हुई थी। अब्दुल्ला के 'दो विधान, दो प्रधान और दो निशान' के खिलाफ शुरू हुआ यह आन्दोलन देखते ही देखते एक जनांदोलन के रूप में कब परिवर्तित हो गया इसका एहसास तक नहीं हुआ। सत्याग्रहियों की सीधी माँग थी कि संपूर्ण भारतीय संविधान को पूरे जम्मू कश्मीर में लागू किया जाए।
 
 
धारा 50 के तहत सत्याग्रहियों पर अत्याचार 
 
 
आन्दोलन के समर्थन में बड़ी संख्या में लोग एकत्रित होने लगे थे और शेख अब्दुल्ला की दमनकारी नीतियों के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करने लगे थे। 1952-53 के दौरान जम्मू-कश्मीर में तिरंगा फहराने पर शेख अब्दुल्ला की सरकार ने दर्जनों राष्ट्रवादी नेताओं और प्रजा परिषद् आंदोलन से जुड़ें नेताओं की गोली मारकर हत्या करा दी थी। अनेक नेताओं को गिरफ्तार करवा लिया था। बावजूद इसके आन्दोलनकारियों का साहस कम नहीं हुआ। शेख अब्दुल्ला की सरकार आंदोलन को रोकने के लिए पहले ही कश्मीर सुरक्षा नियमों की धारा 50 के तहत आंदोलनात्मक गतिविधियों पर रोक लगाई हुई थी। 23 जून को जब परिषद् के कार्यकर्ताओं ने धारा 50 का उल्लंघन कर “बंदी नेता रिहा करो”, “प्रेमनाथ डोगरा को छोड़ दो” के नारे लगाते हुए जम्मू में प्रदर्शन किया, तब पुलिस ने 10 प्रदर्शनकारियों को बंदी बना लिया।
 
 
Roop chand nanda
 
 
 
पुलिस की इस कार्रवाई के बाद अनेक कार्यकर्ता अंडरग्राउंड हो गए और कई कार्यकर्ता राज्य के अन्य भागों से पकड़े गए थे। उसके 2 दिन बाद ही सरकार ने परिषद् के अध्यक्ष रूपचंद नंदा को सुरक्षा नियमों की धारा 24 के तहत जम्मू नगर से निष्कासित कर दिया। उन्हें 100 मील दूर डोडा में अपनी उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए कहा गया, जहाँ उन्हें नजरबंद किया जाना था। लेकिन रूपचंद नंदा बाद में स्वयं ही सत्याग्रह करके गिरफ्तार हो गए थे। आत्मसमर्पण करने के बाद उन्हें सजा हुई लेकिन वह पैरोल पर छूटकर वापस बाहर आ गए। सत्याग्रह की नीति पैरोल पर छूटने के पक्ष में नहीं थी। लिहाजा नंदा के इस कदम से कार्यकर्ताओं में कुछ निराशा फैली परंतु तभी उनके लड़के माधो लाल ने सत्याग्रह से जुड़ने के लिए आगे आए।  
 
 
धारा 144 के उल्लंघन मामले में गिरफ़्तारी  
 
 
जम्मू के हरि टॉकीज के सामने मुलख राज, नरसिंह दयाल शर्मा, चौधरी चग्गर सिंह और माधो लाल ने धारा 144 का उल्लंघन करते हुए सत्याग्रह किया। धारा 144 के उल्लंघन मामले में हेड कांस्टेबल गांधर क्ली ने सभी को गिरफ्तार कर लिया और जम्मू के सिटी थाना में ले जाकर हवालात में बंद कर दिया। गिरफ्तारी के बाद रात को करीब डेढ़-2 बजे हवालात से निकालकर उनके साथ मारपीट भी की गई थी। हेड कांस्टेबल चाहता था कि सभी लड़के माफी मांग लें। लेकिन चारों में से कोई भी टस से मस नहीं हुआ था। सुबह होते ही चारों को जेल भेज दिया गया था। इस सत्याग्रह की पूरे शहर में बहुत दिनों तक चर्चा होती रही, क्योंकि माधो लाल ने पिता के मना करने पर भी सत्याग्रह किया था।
 
 
PP Movement Atrocities
 
 
वहीं शेख अब्दुल्ला की सरकार ने सत्याग्रहियों को मारने-पीटने की सभी हदें पार कर दी थी। तब प्रजा परिषद् ने निर्णय लिया कि दिल्ली जाकर केंद्रीय नेताओं को शेख सरकार के लोकतंत्र-विरोधी रवैये से अवगत कराया जाए। जिसके बाद कविराज विष्णु गुप्त और चतुरु राम डोगरा समेत कुछ लोग दिल्ली पहुँचे। प्रतिनिधिमंडल में श्रीमती शक्ति शर्मा और सुशीला मैंगी भी शामिल थी। दिल्ली में प्रतिनिधिमंडल ने कई नेताओं से मुलाकात की और जम्मू में शेख अब्दुल्ला सरकार की हरकतों के बारे में बताया। जाहिर है कि इसके बाद जम्मू की स्थिति को लेकर दिल्ली में नेताओं की चिंता बढ़ी।
 
 
प्रज्ञा परिषद् के आंदोलन को लेकर चौधरी चरण सिंह ने कहा था कि इस आंदोलन के दौरान सरकार ने बहुत सख्तियाँ की थी। लेकिन जम्मू के शेर टस से मस नहीं हुए थे। आखिर आंदोलन खत्म हुआ और सभी सत्याग्रहियों को रिहा किया गया। पं. प्रेमनाथ डोगरा को भी सम्मान सहित रिहा किया गया। जेल से बाहर आने पर पं प्रेमनाथ का जगह-जगह पर स्वागत किया गया था। आंदोलन के बाद प्रजा परिषद का नाम राजनीतिक दल के तौर पर जम्मू-कश्मीर के बाहर जाने लगा था और प्रजा परिषद् से लगातार लोग जुड़े रहे थे।
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
Powered By Sangraha 9.0