मई 1999 में पाकिस्तानी सेना अपने नापाक इरादे लिए भारतीय सीमा में घुसपैठ कर कारगिल की सामरिक रूप से महत्वपूर्ण चोटियों पर अपना कब्ज़ा जमा लिया था। दुश्मनों के नापाक इरादों की भनक जैसे ही भारतीय सेना को लगी तो भारतीय शूरवीरों ने ऐसा जवाबी हमला किया कि बर्फीली चोटियों पर बैठे पाकिस्तानी सैनिक जान बचाकर भागने को मजबूर हो गए। कारगिल युद्ध के दौरान यूँ तो माँ भारती के सैंकड़ों वीर सपूतों ने अपनी बहादुरी का परिचय देते हुए अपने प्राणों की आहुति दी थी। किन्तु उनमें से एक शूरवीर ऐसा भी था जो एक नहीं बल्कि चार-चार लड़ाइयों की जीत का सूत्रधार बना। लिहाजा आज की कड़ी में हम बात करेंगे कारगिल युद्ध के नायक, 41वीं फील्ड आर्टिलरी ब्रिगेड के मेजर अमरिंदर सिंह कसाना की।
तोलोलिंग पर दुश्मनों का कब्ज़ा
कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना ने सामरिक द्ष्टि से सबसे महत्वपूर्ण चोटी तोलोलिंग पर कब्जा कर लिया था। लिहाजा अब भारतीय सेना के समक्ष इस चोटी को दुश्मनों के कब्जे से मुक्त कराने का पहला लक्ष्य था। लक्ष्य को पूरा करने की जिम्मेदारी 2 राजपूताना राइफल्स, 18 ग्रिनेडियर्स और 13 जम्मू कश्मीर राइफल्स को मिली थी। वहीं, बैटरी कमांडर मेजर अमरिंदर को आर्टिलरी फायरिंग की मदद से दुश्मन के ठिकानों को तबाह करने का टास्क सौंपा गया था।
मेजर अमरिंदर सिंह कसाना की वीरगाथा
तोलोलिंग फीचर पर मौजूद पाकिस्तानी सैनिकों का खात्मा करने और उनके कब्जे से भारत भूमि को मुक्त कराने के लिए भारतीय शूरवीर बिना देर किए आगे बढ़ें। लेकिन तोलोलिंग तक पहुँचाना इतना आसान भी नहीं था। क्योंकि, वहां तक पहुंचने का रास्ता सीधे दुश्मनों के मशीनगन की जद में था। दुश्मन सेना लगातार गोलीबारी कर रही थी जिससे अपने लक्ष्य तक पहुँचने में भारतीय सैनिकों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था। दुश्मन की गोलियों से बचने के लिए ढलान पर पड़े कुछ पत्थरों के अलावा कुछ भी नहीं था। तभी मेजर अमरिंदर सिंह कसाना की तोपों से निकले गोलों ने दुश्मन को झुकने के लिए मजबूर कर दिया। इसका फायदा उठाकर राजपूताना राइफल्स के शूरवीर आगे बढ़ते गए।
तोलोलिंग, हंप, रॉकी नॉब और प्वाइंट 5140 दुश्मनों से मुक्त
तोलोलिंग फीचर पर दुश्मन से सीधी लड़ाई के दौरान राजपूताना राइफल्स के जवान वायरलेस सेट से दुश्मन की लोकेशन भेजते और मेजर अमरिंदर निशाने पर बेहद सटीक गोलाबारी कर दुश्मनों के ठिकाने को पूरी तरह तबाह कर देते थे। देखते ही देखते राजपूताना राइफल्स की बहादुरी और मेजर अमरिंदर के अचूक निशाने ने तोलोलिंग पर भारतीय सेना का विजय पताका फहरा दिया। हालाँकि मेजर अमरिंदर की तोपों का निशाना सिर्फ तोलोलिंग तक ही सीमित नहीं था। 12/l3 जून की रात उनकी तोपों ने तोलोलिंग में कहर बरपाया था। 13/l4 जून की रात हंप में, l6/17 जून की रात रॉकी नॉब में और 19/20 जून की रात प्वाइंट 5140 पर दुश्मन के ठिकानों को तबाह व बर्बाद करने में मेजर अमरिंदर के तोपों ने अहम भूमिका निभाई।
लिहाजा ऑपरेशन विजय के दौरान इस मिशन में मेजर अमरिंदर सिंह कसाना की सटीक आर्टिलरी फायरिंग की मदद से 2 राजपूताना राइफल्स, 18 ग्रिनेडियर्स और 13 जम्मू कश्मीर राइफल्स ने एक के बाद एक तोलोलिंग, हंप, रॉकी नॉब और प्वाइंट 5140 को दुश्मनों से मुक्त कराकर भारतीय ध्वज फहराया था। इस बीच एक वक्त पर तोलोलिंग को मुक्त कराने निकले भारतीय सेना के जवान, पाकिस्तान के बिछाए माइन फील्ड में फंस गए थे। इस घटना में कुछ जवान वीरगति को प्राप्त हो गए और कई गंभीर रूप से घायल। लिहाजा ऐसे वक्त में, मेजर अमरिंदर ने अपने प्राणों की परवाह ना करते हुए अपने साथी जवानों को बचाने के लिए माइन फील्ड में दाखिल हो गए और कई साथियों को सुरक्षित निकाला।
वीरचक्र से सम्मानित
तोलोलिंग, हंप, रॉकी नॉब और प्वाइंट 5140 पर हुए ऑपरेशन के दौरान, मेजर अरिवंदर सिंह कसाना ने असाधारण वीरता और कर्तव्य का प्रदर्शन किया। मेजर अरिवंदर सिंह कसाना के अद्भुत युद्ध कौशल और साहस को देखते हुए युद्धोपरांत उन्हें ‘वीर चक्र’ से सम्मानित किया गया था।