#RememberingOurRealHeroes : अशोक चक्र विजेता लेफ्टिनेंट कर्नल जगन्नाथ रावजी चिटनिस की वीरगाथा

लेफ्टिनेंट कर्नल जगन्नाथ रावजी चिटनिस का जन्म 20 अगस्त 1918 को सतारा, महाराष्ट्र में हुआ था। लेफ्टिनेंट कर्नल चिटनिस को 12 अप्रैल 1942 को गोरखा राइफल्स की तीसरी बटालियन में कमीशन मिला। OTS बैंगलोर से पास आउट होने के बाद, कर्नल जगन्नाथ चिटनिस ने विभिन्न ऑपरेशन में अपनी बटालियन के साथ सेवाएं दी। 1956 तक, लेफ्टिनेंट कर्नल चिटनिस ने लगभग 14 साल की सेवा पूरी कर ली थी और उन्हें लेफ्टिनेंट कर्नल के पद पर पदोन्नत किया गया था। 1956 में, वे 1/3 गोरखा राइफल्स के कमांडिंग ऑफिसर बन गए थे और देश की उत्तरपूर्वी सीमा में सेवा दे रहे थे।
नागा हिल्स अटैक: 14 जून 1956
1956 के दौरान, लेफ्टिनेंट कर्नल जगन्नाथ रावजी चिटनिस को 1/3 गोरखा राइफल्स के कमांडिंग ऑफिसर के रूप में नागालैंड में तैनात किया गया था। 14 जून, 1956 को लेफ्टिनेंट कर्नल चिटनिस, सूबेदार मेजर नैन सिंह के साथ बटालियन के वेतन से भरे खजाने के साथ मोकोकचुंग से जुन्हेबेटो की ओर जा रहे थे। एस्कॉर्ट के रूप में एक प्लाटून के साथ कुल 8 जीपों का काफिला था। मोकोकचुंग से जुन्हेबेटो की ओर जाते वक्त अभी उनका काफिला 21 किलोमीटर ही पहुंचा था कि, जनरल काइतो सेमा की संघीय सेना से संबंधित लगभग 100 नागा विद्रोहियों ने उनके काफिले की बीच वाली जीप पर हमला कर दिया। ये आतंकी LMG (लाइट मशीन गन), स्टेन गन और राइफलों से भारी हथियारों से लैस थे। अचानक हुए हमले के परिणामस्वरूप तीन जीपें अलग-थलग पड़ गईं।
लेफ्टिनेंट कर्नल चिटनिस ने समय ना गंवाते हुए तुरंत स्थिति का आकलन किया और काफिले में शामिल अन्य 5 जीपों को रोकने का आदेश दिया। दुश्मनों के हमले में वह अपने 4 सैनिकों के साथ पहले ही घायल हो चुके थे। किन्तु घायल के बावजूद उन्होंने अपने सैनिकों को इकट्ठा किया और हमलावरों पर जवाबी कार्रवाई शुरू की। अपनी बटालियन का नेतृत्व करते हुए उन्होंने अपने पलटन के साथ जारी गोलाबारी के बीच आतंकियों की स्थिति की ओर बढ़ना शुरू किया। लेफ्टिनेंट कर्नल चिटनिस ने पैर में जख्म होने के बावजूद अपने प्लाटून को आतंकियों के बंकरों पर हमला करने का निर्देश दिया। लेफ्टिनेंट कर्नल की इस जवाबी कार्रवाई में 1 आतंकी मारा गया जबकि कई घायल हुए। इसके बाद जब आतंकियों ने अपने एलएमजी से कर्नल की टुकड़ी पर गोलियां चलाईं, तो उन्होंने फिर से एलएमजी पोस्ट पर सटीक निशाना लगाते हुए फायरिंग की इस हमले में पोस्ट पर मौजूद कई आतंकी मारे गए।
मरणोपरांत अशोक चक्र से सम्मानित
लेकिन दुश्मनों की गोली लेफ्टिनेंट कर्नल जग्गनाथ के पेट में लगी जिससे वह गंभीर रूप से घायल हो गए। उनकी गंभीर चोटों के परिणामस्वरूप, वह विद्रोही बंकर से 15 गज की दूरी पर गिर गए, लेकिन बावजूद इसके उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और घायल अवस्था में भी अपने जवानों को प्रोत्साहित करते हुए आतंकियों पर हमला जारी रखा। आख़िरकार लेफ्टिनेंट कर्नल चिटनिस दर्द को ज्यादा देर तक सहन नहीं कर सके थे और वीरगति को प्राप्त हो गए। लेकिन उनके प्रेरक नेतृत्व से प्रेरित उनके सैनिकों ने अंततः आतंकी ठिकानों को नष्ट करने में कामयाबी हासिल की और 20 आतंकियों को मार डाला। लेफ्टिनेंट कर्नल जगन्नाथ रावजी चिटनिस को उनके असाधारण साहस, अनुकरणीय नेतृत्व और कर्तव्य के प्रति अद्वितीय समर्पण के कारण शांतिकाल में भारत के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार, "अशोक चक्र" से सम्मानित किया गया।
लेफ्टिनेंट कर्नल जगन्नाथ रावजी चिटनिस के बलिदान दिवस पर हमारा नमन