स्वतंत्र भारत के पहले राष्ट्रवादी आंदोलन 'प्रजा परिषद्' में महिला वीरांगनाएं, जिन्होंने पुरुषों के कंधे से कन्धा मिलाकर इस जनांदोलन को बनाया सफल
1947 से लेकर 1953 तक चला प्रजा परिषद आन्दोलन जम्मू-कश्मीर के लोकतंत्रीकरण और उसके संघीय संवैधानिक व्यवस्था में एकीकरण के लिए चलाया गया था। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद प्रजा परिषद् आंदोलन भारत में सबसे पहला और सबसे बड़ा जन-आंदोलन था। इस आंदोलन की शुरुआत जम्मू में शेख अब्दुल्ला द्वारा फैलाई गई अराजकता और अलगाववाद के खिलाफ हुई थी। शेख अब्दुल्ला के दो विधान, दो प्रधान और दो निशान के खिलाफ शुरू यह आन्दोलन देखते देखते एक जनांदोलन के रूप में परिवर्तित हो गया। आंदोलनकारियों की सीधी माँग थी कि भारत का पूरा संविधान पूरे जम्मू कश्मीर में लागू किया जाए।
जनांदोलन में महिला वीरांगनाएँ
डॉ श्यामा प्रसाद मुख़र्जी और पंडित प्रेमनाथ डोगरा ने जम्मू कश्मीर में भारत के संविधान को पूरी तरह से लागू करने और '‘एक देश में दो विधान, दो प्रधान, दो निशान, के खिलाफ 1950 से 1953 तक जो संघर्ष किया उसमें जम्मू कश्मीर की महिलाओं ने भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया था। इस आन्दोलन को सफल बनाने में पुरुषों के कंधे से कन्धा मिलाकर जम्मू कश्मीर की वीरांगनाओं ने भी अपना योगदान दिया।
इनमें सबसे महत्वपूर्ण भूमिका थी प्रोफ़ेसर शक्ति शर्मा की। उनके साथ कंधे से कन्धा मिलाकर श्रीमती सुशीला मेंगी , पार्वती देवी, श्रीमती प्रकाशो देवी , श्रीमती चत्रु राम डोगरा, बिमला डोगरा, श्रीमती सुशीला देवी, श्रीमती तारो देवी, श्रीमती विनोद कुमारी शर्मा, श्रीमती दर्शन देवी, श्रीमती बृंदा देवी, श्रीमती शीला चौहान और अनगिनत अन्य महिलाओं ने इस आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
पार्टी ने अपना पहला ‘औपचारिक’ सत्याग्रह 14 नवंबर 1952 को शुरू किया जिसमें जम्मू-कश्मीर को पूरी तरह भारत में सम्मिलित करने की मांग की गई थी। आंदोलन की प्रमुख मांग ये थी कि जम्मू कश्मीर के लिए कोई विशेष संवैधानिक प्रावधान और अलग झंडा न हो। लिहाजा लोकप्रिय स्तर पर इन मांगों को प्रतिबिंबित करने वाला नारा, प्रजा परिषद पार्टी के आंदोलन के लिए युद्ध का नारा बन गया। वो नारा था - ‘एक देश में दो विधान, दो प्रधान, दो निशान, नहीं चलेंगे, नहीं चलेंगे’।
दर्शना देवी
वहीं शेख अब्दुल्ला की सरकार ने सत्याग्रहियों को मारने-पीटने की सभी हदें पार कर दी थी। तब प्रजा परिषद् ने निर्णय लिया कि दिल्ली जाकर केंद्रीय नेताओं को शेख सरकार के लोकतंत्र-विरोधी रवैये से अवगत कराया जाए। जिसके बाद कविराज विष्णु गुप्त और चतुरु राम डोगरा समेत कुछ लोग दिल्ली पहुँचे। प्रतिनिधिमंडल में श्रीमती शक्ति शर्मा और सुशीला मैंगी भी शामिल थी। दिल्ली में प्रतिनिधिमंडल ने कई नेताओं से मुलाकात की और जम्मू में शेख अब्दुल्ला सरकार की हरकतों के बारे में बताया। जाहिर है कि इसके बाद जम्मू की स्थिति को लेकर दिल्ली में नेताओं की चिंता बढ़ी।
बिमला डोगरा
जम्मू कश्मीर में भारतीय संविधान को लागू करने को लेकर जम्मू कश्मीर की महिलाओं ने जो संघर्ष किया उसका परिणाम हुआ कि संविधान की बहुत से बातें जम्मू कश्मीर में लागू हो गईं। जम्मू कश्मीर की राजनीति से शेख अब्दुल्ला जैसे अलगाववादी नेता पतन हुआ। लेकिन दलितों, महिलाओं, ओबीसी और एसटी के साथ-साथ राज्य के बहुत से वर्गों के अधिकार अभी भी मिलने बाक़ी थे। श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान के बाद भी राज्य की जनता संघर्ष रत रही जिसका परिणाम अनुच्छेद हटने और अनुच्छेद में संशोधन के रूप में हुआ। ऐसे में जम्मू कश्मीर की महिला आंदोलनकारी महिलाओं के योगदान को याद करना ज़रूरी है।
सुशीला देवी
शिला चौहान
प्रो. शक्ति शर्मा
सुशीला मेंगी
वृंदा देवी
प्रकाशो देवी
दर्शाना देवी
विनोदा शर्मा