#RememberingOurKargilHeroes : 8 जून, 1999 - पॉइंट 5302 को मुक्त कराते हुए पाकिस्तान के 6 से ज्यादा सैनिकों को ढेर करने वाले कैप्टन अमोल कालिया की वीरगाथा

08 Jun 2023 11:19:13
 
Capt Amol Kalia Kargil
 
 
Operation Vijay - बटालिक सेक्टर पॉइंट 5302
 
8 जून 1999 
 
 
वर्ष 1999 में हुआ कारगिल युद्ध न सिर्फ पाकिस्‍तान पर भारत की विजय गाथा का उदाहरण है, बल्कि इसके साथ ही उन तमाम देश के वीर सपूतों का बलिदान स्तंभ भी है, जिन्होंने देश की रक्षा के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया। वैसे तो इस युद्ध में माँ भारती के कई वीर सपूत देश की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे, परंतु उन रणबांकुरों में से भारत का एक लाल ऐसा भी था, जिसकी कुर्बानी को सदियों तक याद रखा जाएगा।
 
 
कैप्टन अमोल कालिया और उनकी वीरगाथा
 
 
कैप्टन अमोल कालिया और उनकी टुकड़ी के सैनिकों को बटालिक सेक्टर की 18 हजार फुट ऊंची पहाड़ी पर पैराशूट की मदद से उतारा गया। मिशन था-सामने की पहाड़ी पर चौकी नंबर 5302 को पाकिस्तानी सेना के कब्जे से मुक्त करवाना। ऐसे मुकाबलों के लिए हर तरह से प्रशिक्षित इस टुकड़ी पर सेना के वरिष्ठ अधिकारियों को पूरा विश्वास था। और टुकड़ी ने उस विश्वास का ऐसा जवाब दिया जो एक मिसाल बन गया। वीरता की ऐसी मिसाल जिसे भारतीय युद्ध की कहानियों में एक खास जगह हमेशा मिलती रहेगी।
 
 
दुश्मनों तक पहुँचने के लिए 2 हजार फुट ऊंचाई करनी थी तय
 
 
पैराशूट से येल्डोर में उतरने के साथ ही इस टुकड़ी के हर एक सदस्य के सामने एक बात स्पष्ट थी कि दुश्मन से लड़ाई आमने-सामने की है। दूर-दूर तक बर्फ से ढके दुर्गम पहाड़ों के अलावा सबसे बड़ी चुनौती थी 75 फुट ऊंची वह बर्फीली सपाट दीवार जिसके पार पाकिस्तानी सेना का बेस था। लेकिन उस दीवार तक पहुंचने के लिए भी 2 हजार फीट की ऊंचाई तय करनी थी।
 
 
दुश्मन की गिद्ध निगाह हर वक्त उस रास्ते पर थी इसलिए दिन में वहां किसी भी तरह की हरकत करना मुमकिन नहीं था। टुकड़ी ने पूरा दिन बर्फीली चट्टानों की ओट में बिताने का फैसला किया। कैप्टन अमोल ने इस दौरान तमाम हालात का जायजा लिया, ऊपर चढ़ने का वो रास्ता तय किया जो रात को तय करना था और साथ ही मुकाबले की सम्पूर्ण रणनीति तय की।
  

Amol Kalia Story Kargil War 
 
 
पाकिस्तानी सैनिकों को पहुंचा था नुकसान
 
 
इसी रणनीति के तहत यह टुकड़ी रात भर दुश्मन की गोलीबारी झेलती, उसका जवाब देती आगे बढ़ती रही। पर टुकड़ी के लिए सबसे बड़ी दिक्कत थी उसकी अपनी पोजीशन। दुश्मन ऊंचाई पर था, न सिर्फ आसानी से देख सकता था बल्कि सटीक हमला भी कर सकता था। खैर उस रात लड़ाई रोकनी पड़ गई। हालांकि उस रात के मुकाबले में नुकसान दोनों पक्षों को पहुंचा। पर अपने इस नुकसान की भरपाई के लिए पाकिस्तानी घुसपैठियों ने उसी रात और सैन्य मदद का संदेश अपने साथियों तक पहुंचा दिया। पर भारतीय सैनिकों के लिए ऐसा कर पाना संभव न था।
 
 
भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तानी सैनिकों के छुड़ा दिए छक्के
 
 
अगली रात कैप्टन अमोल कालिया की टुकड़ी ने न सिर्फ उस विशाल बर्फ की ऊंची दीवार लांघने में कामयाबी हासिल की बल्कि दुश्मन के छक्के छुड़ा दिए। घुसपैठिए बौखला गए। उन्हें अपनी पोजीशन छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा। परंतु घुसपैठिए इस दौरान भी भारतीय सैनिकों पर 2 तरफ से गोलाबारी व फायरिंग करते रहे।
 
 
बर्फीली जमीन पर लगातार 7 घंटे तक चले उस संघर्ष में अमोल के 2 जांबाज मशीनगनधारी वीरगति को प्राप्त हो गए। कुछ और जवानों को भी गोलियां लग गई। अमोल खुद भी घायल हो गए। पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। किसी तरह उन्होंने दूर पड़ी वह लाइट मशीनगन अपने कब्जे में कर ली जिसे चला रहा उनका साथी बलिदान हो गया था।
 

Amol Kalia Story Kargil War 1999 
 
 
मशीनगन हाथ में आते ही दुश्मन पर कर दी गोलियों की बौछार
 
 
कैप्टन अमोल ने मशीनगन हाथ में आते ही दुश्मन पर ताबड़तोड़ गोलियों की बौछार कर दी। एक बार में ही उन्होंने 6 पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट उतार डाला। कुल मिलाकर इस संघर्ष में 2 दर्जन पाकिस्तानी सैनिक मारे गए। अमोल और उनके साथ 13 जांबाज भारतीय सैनिक भी अंत तक वीरगति को प्राप्त हो चुके थे। किन्तु अमोल कालिया और उनकी टुकड़ी के बलिदान से भारतीय सेना ने सामरिक रूप से महत्वपूर्ण उस चौकी पर पुन: अपना कब्जा कर लिया।
 
 
अमोल का परिवार और देश सेवा से लगाव
 
 
26 फरवरी 1974 को जन्में अमोल का परिवार हिमाचल प्रदेश के उना जिले का रहने वाला था। लेकिन अमोल की स्कूली शिक्षा नांगल में ही हुई। पिता सतपाल शर्मा हेडमास्टर थे और मां उषा शर्मा नंगल स्थित उप लेखा परीक्षक निदेशालय में वरिष्ठ लेखा परीक्षक थी। वो अमोल के बारे में ज्यादा बातचीत नहीं कर पाती लेकिन जो कुछ भी उन्होंने कहा वो किसी वीर बालक की मां ही कह सकती है, ‘मुझे फख्र है कि मैं अमोल की मां हूं।’ पर इस मां ने एक नहीं दो वीर सपूतों को जन्म दिया है। उषा शर्मा का दूसरा बेटा अमन कालिया वायु सेना में फ्लाइट लेफ्टिनेंट है।
 

Amol Kalia veer chalra 
 
 
फोटोग्राफी और तबला बजाने के शौकीन थे कैप्टन अमोल
 
 
फोटोग्राफी और तबला बजाने के शौकीन अमोल ने 12वीं पास करते ही राष्ट्रीय सुरक्षा अकादमी (NDA) के जरिए भारतीय सेना में प्रवेश पा लिया था। सेना में रहकर उसने हर वो कोर्स किया जो एक मजबूत और समझदार फौजी अफसर बनने के लिए महत्वपूर्ण था। उसने कमांडो ट्रेनिंग ली, माउंटेनियरिंग वार कोर्स किया, हाई ऐल्टिट्यूड वारफेयर स्कूल पूरा किया, बर्फीले स्थानों पर युद्ध करने की ट्रेनिंग ली।
 
 
मौत को छू कर वापस लौटे थे कैप्टन कालिया
 
 
ऐसा लगता है अमोल कारगिल में देशसेवा के लिए ही पैदा हुए थे, क्योंकि वो पहले भी मौत को गच्चा दे चुके थे। 25 जनवरी 1996 की बात है। अमोल खेमकरण सेक्टर से लौट रहा था कि अचानक उसकी जीप के दो पहिए निकल गए थे। जीप पलट गई। जीप का चालक और दो जवान उस दुर्घटना में मारे गए। अमोल के सिर में भी चोट आई। उसे फिरोजपुर स्थित सेना अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां 14 दिन के बाद उसे होश आया था।
 
 
कारगिल युद्ध की इस लड़ाई में वीरगति को प्राप्त हुए इन सभी रणबांकुरों को हमारा नमन।
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
Powered By Sangraha 9.0