9 जून 1999 Kargil War : जब बटालिक सेक्टर की चौकियों पर भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सैनिकों को खदेड़कर फहराया था तिरंगा
    09-जून-2023

Kargil War story full event
 
 
24 वर्ष पूर्व कारगिल की दुर्गम ऊँची पहाड़ियों पर भारत और पाकिस्तान के बीच कारगिल का युद्ध हुआ था। इस युद्ध की शुरुआत तब हुई थी जब पाकिस्तानी सैनिकों ने अवैध तरीके से भारतीय क्षेत्र कारगिल की ऊँची पहाड़ियों पर घुसपैठ करके अपने ठिकाने बना लिए थे। भारतीय सेना के विजय के साथ 26 जुलाई 1999 के दिन ‘ऑपरेशन विजय’ समाप्त हुआ था। आज यानि 9 जून के दिन ही भारतीय सेना ने बटालिक सेक्टर में अपनी 2 चौकियों को दुश्मनों के कब्जे से मुक्त कराया था और तिरंगे के साथ वहां पर अपना कब्जा जमाया था।
 
 
चरवाहे से मिली पाकिस्तानी घुसपैठ की जानकारी 
 
 
कारगिल युद्ध के शुरूआती दिनों की बात करें तो 3 मई 1999 के दिन कारगिल के बटालिक सेक्टर के ही गारकॉन गांव का रहने वाले चरवाहा ताशी नामग्याल सबसे पहले कारगिल की पहाड़ियों पर पाकिस्तानी घुसपैठियों को देखा था। ताशी जब अपनी याक की तलाश में कारगिल की ऊंचाई वाले क्षेत्र पर पहुंचा था, तो उसकी नजर वहां पर मौजूद काले कपड़े पहने हुए बंदूकधारियों पर पड़ी थी। जो पत्थरों को हटा कर रहने की जगह बना रहे थे। जिसके बाद ताशी ने ये बात स्थानीय भारतीय सैनिकों तक पहुंचाई थी। उसके बाद सेना की ओर से एक दल को वहां पर जांच के लिए भेजा गया था। इस तरह पहली बार भारतीय सैनिकों को कारगिल में घुसपैठ की जानकारी मिली थी।
 
14 मई 1999 
 
 
वहीं 14 मई 1999 के दिन पाकिस्तानी सैनिकों की मौजूदगी की सूचना मिलने के बाद कैप्टन सौरभ कालिया अपने 4 जाट रेजिमेंट के 5 जवानों अर्जुन राम, भंवर लाल, भीखा राम, मूला राम व नरेश सिंह के साथ सामरिक रुप से महत्वपूर्ण काक्सर के पास बजरंग पोस्ट की तरफ निकल पड़े। लेकिन भारी बर्फबारी के कारण सभी जवान जब अगले दिन 15 मई को बजरंग पोस्ट पर पहुंचने वाले थे, तभी घात लगाकर बैठे पाकिस्तानी सैनिकों ने उन पर हमला कर दिया। भारतीय सेना के जवानों ने तुरंत जवाबी कार्रवाई में फायरिंग शुरू कर दी। लेकिन थोड़े ही देर के बाद उनकी बंदूकों में गोलियां खत्म हो गई। जिसके बाद पाकिस्तानी सैनिकों ने सभी जवानों को बंधक बना लिया था।
 
 
पाकिस्तानी सैनिकों के घुसपैठ की आधिकारिक पुष्टि 
 
 
15 मई के दिन जब 4 जाट रेजिमेंट के जवान वापस अपने कैंप पर लौटकर नहीं आए, तो कैप्टन अमित 30 जवानों की टीम के साथ उन्हें ढूंढने के लिए बजरंग पोस्ट की तरफ निकल पड़े। जब उनकी टीम बजरंग पोस्ट के पास पहुंची तो कैप्टन अमित को इस बात का आभास हुआ कि पाकिस्तानी सैनिक बड़ी संख्या में घात लगाकार बैठे हैं। ऐसे समय में उन्होंने अपनी टुकड़ी को एक सुरक्षित स्थान से मोर्चा संभालाने का आदेश दिया, जिससे नीचे कैंप तक पाकिस्तानी घुसपैठियों की सूचना पहुंच सके। लेकिन साहस के साथ पाकिस्तानी घुसपैठियों की गोलीबारी का जवाब देते हुए कैप्टन अमित 17 मई के दिन वीरगति को प्राप्त हो गए। 25 मई 1999 के दिन भारतीय सेना ने आधिकारिक रूप से यह माना था कि पाकिस्तानी सेना की तरफ से कारगिल की पहाड़ियों पर बड़े स्तर पर घुसपैठ हुई है। इस घुसपैठ के जरिए करीब 600 से 800 पाकिस्तानी घुसपैठियों ने LOC पार किया है और कारगिल समेत आसपास की पहाड़ियों में उन्होंने अपना ठिकाना बना लिया है।
 
 
26 मई 1999 भारतीय वायुसेना को कार्रवाई का आदेश  
 
 
जिसके बाद थलसेना और वायुसेना के अतिरिक्त जवानों को देश के अलग-अलग हिस्सों से करगिल के लिए रवाना किया गया था। 26 मई 1999 के ही दिन रॉ के सचिव अरविंद दवे ने सेनाध्यक्ष वीपी मलिक को सूचना दी थी कि भारतीय खुफिया एजेंसी को 2 पाकिस्तानी सैनिकों के वार्तालाप का ऑडियो टेप मिला है। जांच में यह सामने आया कि वह ऑडियो टेप पाकिस्तान चीफ ऑफ जनरल स्टॉफ मोहम्मद अजीज खान और सेनाध्यक्ष परवेज मुशर्रफ की बातचीत का है। जिसके बाद सेना को यह स्पष्ट हो गया कि कारगिल अभियान जिहादी अभियान नहीं है, बल्कि सैन्य आक्रमण था। जिसकी योजना पाकिस्तानी सेना द्वारा तैयार की गई थी। 26 मई 1999 के दिन भारतीय वायुसेना को पाकिस्तानी घुसपैठियों के ठिकाने पर कार्रवाई के निर्देश मिले थे। जिसके बाद भारतीय वायुसेना के मिग-27 और मिग-29 लड़ाकू विमानों ने कारगिल की पहाड़ियों पर छिपे घुसपैठियों के ठिकाने पर गोलाबारी शुरू की थी।
 
 
ऑपरेशन सफेद सागर
 
 
जिससे पाकिस्तानी घुसपैठियों को बड़ा नुकसान पहुंचा था। हालांकि ऑपरेशन के दौरान पाकिस्तानी सैनिक कारगिल की ऊंची पहाड़ियों पर छिपे हुए थे, जिस कारण थल और वायुसेना को उनके खिलाफ कार्रवाई में बड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ा था। 27 मई 1999 के दिन नियंत्रण रेखा पर ऑपरेशन सफेद सागर के अंतर्गत वायु सेना ने पाकिस्तानियों का पता लगाने के लिए टोही मिशन शुरू किया था। इस ऑपरेशन के तहत मिग-27 फ्लाइट में लेफ्टिनेंट नचिकेता थे, दूसरे विमान मिग-21 में स्कवैड्रन लीडर अजय आहूजा फ्लाइट कमांडर थे। इस बीच अजय आहूजा को सूचना मिली थी कि मिशन में साथी फ्लाइट लेफ्टिनेंट नचिकेता के विमान में आग लगने की वजह से वह संभवत: पैराशूट के जरिए दुश्मन के कब्जे वाले क्षेत्र में लैंड किए हैं। अजय जब जान की परवाह किए बिना अपने साथी की खोज में निकले तो पाकिस्तानी सेना ने उनके विमान पर गोलाबारी शुरू कर दी, जिससे विमान में आग लग गई।
 
 
 
अजय जब पैराशूट के जरिए कूदे तो वह पाकिस्तान के कब्जे वाले क्षेत्र में पहुंच गए थे। वहीं पाकिस्तानी सैनिकों ने नचिकेता को भी बंदी बनाकर बहुत क्रूरतापूर्वक प्रताड़ित किया था, लेकिन लेफ्टिनेंट नचिकेता ने साहस का परिचय देते हुए पाकिस्तानी सेना को एक भी खुफिया जानकारी नहीं दी थी। भारतीय सेना द्वारा लगातार दबाव के बाद विवश होकर पाकिस्तानी सेना को 8 दिन बाद लेफ्टिनेंट नचिकेता को रिहा करना पड़ा था। लेकिन पाकिस्तान सेना की कैद में स्कवैड्रन लीडर अजय आहूजा शहीद हो गए थे। पाकिस्तान ने 29 मई को अजय के पार्थिव शरीर को सौंपा था। जांच में पता चला था कि अजय आहूजा जिंदा लैंड किए थे, लेकिन पाकिस्तानी सेना ने गिरफ्तार करने के बाद उनकी हत्या कर दी थी।
 
 
बटालिक सेक्टर की 2 चौकियां पाकिस्तानियों से हुईं मुक्त 
 
 
वहीं 28 मई 1999 के दिन जब एक मिग-17 हेलीकॉप्टर कारगिल की पहाड़ियों में पाकिस्तानी सैनिकों के ठिकानों की पहचान करने के लिए अपनी उड़ान पर था। उसी वक्त घात लगाकर बैठे घुसपैठियों ने हेलीकॉप्टर को निशाना बनाकर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। जिसके कारण मिग-17 हेलीकॉप्टर क्रैश हो गया था। उस वक्त हेलीकॉप्टर में मौजूद पायलट समेत 4 जवान वीरगति को प्राप्त हो गये थे। भारतीय सेना अपने साहसी जवानों को खोने के बाद फिर से मजबूती के साथ 6 जून 1999 के दिन बटालिक सेक्टर में ऑपरेशन शुरू किया। सबसे पहले भारतीय सेना ने 9 जून को बटालिक सेक्टर की 2 भारतीय चौकियों पर फिर से अपना कब्जा जमाया था। जिसके बाद फिर युद्ध के आगामी दिनों में द्रास और तोलोलिंग सेक्टर में भारतीय झंडे को फहराया था।