#RememberingourKargilHeroes : कैप्टन सौरभ कालिया की वीरगाथा, जिनके बलिदान से कारगिल में दुश्मनों का हुआ पर्दाफ़ास, यातना के वो 22 दिन

09 Jun 2023 12:35:04
 
Kargil War 1999 Capt. Saurabh Kalia
 
 
कैप्टन सौरभ कालिया

जन्म 29 जून, 1976 - अमृतसर, पंजाब
 
देश की सीमाओं को दुश्मनों के नापाक हाथों से बचाने के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले अमर बलिदानी सैनिकों की गौरवमयी परंपरा रही है। माँ भारती के ऐसे ना जाने कितने अनगिनत वीर सपूत रहे हैं जिन्होंने देश की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। कुछ ऐसे ही वीर बलिदानी सपूतों में से एक 22 वर्षीय कैप्टन सौरभ कालिया थे, जिनके अमर बलिदान को कृतज्ञ राष्ट्र कभी विस्मृत नहीं कर सकता।
 
 
कैप्टन कालिया की वीरगाथा
 
 
कैप्टन सौरभ कालिया भारतीय थलसेना के ऐसे जांबाज़ ऑफिसर थे, जिनकी कहानी के बिना 'कारगिल युद्ध' की कहानी शुरू ही नहीं हो सकती। जिन्होंने कारगिल युद्ध के दौरान अपने अदम्य-साहस और वीरता की मिसाल कायम की थी। वही कैप्टन सौरभ कालिया जिन्हें कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा बंदी बनाकार बुरी तरह से यातनाएं देकर बलिदान कर दिया गया। कारगिल युद्ध की शुरूआत यूँ तो 3 मई, 1999 से हो गई थी। जब ताशी नामग्याल नाम के एक चरवाहे ने भारतीय सीमा में पाकिस्तानी सैनिकों के घुसपैठ की जानकारी भारतीय सेना को दी, जानकारी के फ़ौरन बाद अधिकारियों के आदेश पर 1999 में कारगिल युद्ध से पहले कारगिल जिले के काक्सर लांगपा क्षेत्र में गश्त अभियान चलाया गया था।
 
 
सौरभ कालिया लेफ्टिनेंट के पद पर थे। सैन्य अधिकारियों से मिले आदेश के बाद 14 व 15 मई को कैप्टन सौरभ अपने 5 साथियों 'अर्जुन राम, भंवरलाल, भीका राम, मूला राम और नरेश सिंह' के साथ पेट्रोलिंग पर निकले थे। उन्होंने काक्सर क्षेत्र में घुसपैठ को रोकने के लिए 13000-14000 फीट की ऊंचाई पर बजरंग पोस्ट का गार्ड संभाला। उन्हें इस बात की फिक्र नहीं थी कि दुश्मन कितनी संख्या में है। उन्हें तो बस अपने देश की और अपनी ड्यूटी की फिक्र थी। दुश्मनों तक तेजी से पहुंचने के लिए सौरभ अपने साथियों के साथ आगे बढ़े। वह जल्द ही उस स्थान पर पहुंच गए जहां दुश्मन के होने की खबर थी। पहले तो सौरभ को लगा कि उन्हें मिला इनपुट गलत हो सकता है, लेकिन दुश्मन की हलचल ने अपने होने पर मुहर लगा दी।
 
यातना के वो 22 दिन
 
जब वे बजरंग चोटी पर पहुंचे तो उन्होंने वहां हथियारों से लैस पाकिस्तानी सैनिकों को देखा। । दोनों तरफ से बराबर का मुकाबला हुआ लेकिन कुछ ही क्षण बाद कैप्टन कालिया और टुकड़ी के सैनिकों के पास गोलियां खत्म हो गईं, सौरभ और उनके साथी पाकिस्तानी सैनिकों से लड़ते हुए घायल हो गए थे। घायल होने के उपरान्त कैप्टन सौरभ और उनके 5 अन्य साथियों को पाकिस्तानी सैनिकों ने युद्धबंदी बना लिया और उन्हें कई तरह की यातनाएँ दी गईं। कैप्टन सौरभ के भाई बताते हैं कि पाकिस्तानी सेना द्वारा प्रताड़ना के समय कैप्टन के कानों को गर्म लोहे की रॉड से छेदा गया, आँखें निकाल ली गईं थीं। नाक, कान और अन्य निजी अंग काट दिए गए। 22 दिनों तक पाकिस्तानी सैनिकों ने उन्हें खूब तड़पाया।
 
 Saurabh Kalia 1999 kargil war
 
 
कैप्टन का क्षत-विक्षत शव 22 दिनों बाद पहुंचा घर
 
 
तमाम यातनाएं सहने के बावजूद जब कैप्टन सौरभ कालिया ने अपना मुंह नहीं खोला और सेना की निजी जानकारी उन्हें नहीं बताई तो अंत में पाकिस्तानियों ने उन्हें मार डाला। मानवीयता की सारी हदें पार करने के बाद पाकिस्तान ने कैप्टन सौरभ कालिया का पार्थिव शरीर 8 जून, 1999 को भारत को सौंपा। 9 जून को जब कैप्टन कालिया का पार्थिव शरीर तिरंगे में लिपटा घर पहुंचा तो उनका क्षत-विक्षत शव देखकर परिवार समेत पूरा देश सहम उठा। देश के लोगों के मन में एक अलग तरह का आक्रोश पैदा हो उठा। पाकिस्तानियों ने कैप्टन के शव को इस तरह से क्षत-विक्षत किया था कि उनके शव को पहचान पाना भी मुश्किल हो रहा था।
 
 
Saurabh Kalia 1999 kargil war.. 
 
Saurabh Kalia
 
 
सौरभ कालिया का परिचय
 
 
सौरभ कालिया का जन्म 29 जून 1976 को अमृतसर, में हुआ था। इनकी माता का नाम विजया कलिया व पिता का नाम डॉ॰ एन॰ के॰ कालिया है। इनकी प्रारंभिक शिक्षा DAV पब्लिक स्कूल पालमपुर से हुई। इन्होंने स्नातक उपाधि (BSc मेडिकल) HP कृषि विश्वविद्यालय, पालमपुर, हिमाचल प्रदेश से सन् 1997 में प्राप्त की। वे अत्यंत प्रतिभाशाली छात्र थे, और अपने स्कूल के वर्षों में कई छात्रवृत्तियाँ प्राप्त कर चुके थे।
 
 
अगस्त 1997 में संयुक्त रक्षा सेवा परीक्षा द्वारा सौरभ कालिया का चयन भारतीय सैन्य अकादमी में हुआ, और 12 दिसंबर 1998 को वे भारतीय थलसेना में कमीशन अधिकारी के रूप में नियुक्त हुए। उनकी पहली तैनाती 4 जाट रेजिमेंट (इन्फ़ॅण्ट्री) के साथ कारगिल सॅक्टर में हुई। 31 दिसंबर 1998 को जाट रेजिमेंटल सेंटर, बरेली में प्रस्तुत होने के उपरांत वे जनवरी 1999 के मध्य में कारगिल पहुँचे।
 
 
 
देश की रक्षा में अपने प्राणों की आहुति देने वाले ऐसे वीर बलिदानी को हमारा नमन
 
 
 
 
 
 
 
 
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